भोपाल : मध्य प्रदेश में सोमवार से खेलो इंडिया यूथ गेम्स शुरू हो जाएंगे। खास बात यह है कि गेम्स में पहली बार पांच स्वदेशी गेम्स मल्लखंब, थांगटा, गतका, योगासन और कलरीपयट्टू शामिल की गई हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से प्रत्येक स्वदेशी खेल प्राचीन काल से ही भारत की पुरानी खेल संस्कृति को प्रदर्शित करते रहे हैं।
कहां होंगे स्वदेशी खेल
मल्लखंब (उज्जैन में) 6-10 फरवरी 2023
योगासन (उज्जैन में) 1-3 फरवरी 2023
गतका (मंडला में) 2-4 फरवरी 2023
थंगटा (मंडला में) 8-10 फरवरी 2023
कलारीपयट्टू (ग्वालियर में) 8-10 फरवरी 2023

मल्लखंब
मल्लखंब में जिमनास्ट जमीन से जुड़ी या फिर लटकती हुई चीजें जैसे लकड़ी के खंभे, बेंत या रस्सी के सहारे अपनी पकड़ बना कर हवा में योग या जिम्नास्टिक मुद्राएं करते हैं। मल्लखंब का जिक्र रामायण, प्राचीन चंद्रकेतुगढ़ मिट्टी के बर्तनों में पाए जा सकते हैं। इसके अलावा भारत में बौद्ध चीनी तीर्थयात्रियों के किताबों में भी इसका उल्लेख है। वैसे मलखम्भ का सबसे पहला प्रत्यक्ष वर्णन 12वीं शताब्दी की शुरुआत में मानसोलस नामक पाठ में पढ़ा जा सकता है, जिसे चालुक्य राजा सोमेश्वर द्वारा लिखा गया था। मध्यकाल में यह लंबे समय तक निष्क्रीय रहा लेकिन मराठा राजाओं द्वारा पेशवा सेना को प्रशिक्षित करने के लिए इस कला को पुनर्जीवित किया गया। तब से, यह खेल पूरी दुनिया में फैल गया। 2.6 मीटर ऊंचे लकड़ी के आधार, जिसकी चौड़ाई 55 सेमी होती है, पर होने वाले फिटनेस आधारित इस खेल के नियम काफी सरल और जिमनास्टिक के जैसे ही हैं। कुछ वर्षों से 3 प्रकार के मलखंब ने प्रतियोगिताओं में लोकप्रियता हासिल की है। वे हैं पोल मलखंब, हैंगिंग मलखंब और रोप मलखंब।

गतका
गतका की उत्पत्ति 15वीं शताब्दी में पंजाब में हुई थी। यह छड़ी-लड़ाई की एक शैली है, जिसमें तलवारों जैसी दिखने वाली लकड़ी की छाडिय़ां होती हैं। गटका में इस्तेमाल की जाने वाली छड़ी लकड़ी से बनी होती है और आमतौर पर लगभग 1/2 इंच (13 मिमी) की मोटाई के साथ 3-3.5 फीट (91-107 सेमी) लंबी होती है। इसमें 6-7 इंच (15-18 सेंटीमीटर) का फिटेड लेदर लगा होता है और इसे अक्सर पंजाबी शैली के बहुरंगी धागों से सजाया जाता है। खेल में इस्तेमाल किया जाने वाला दूसरा हथियार एक ढाल है, जिसे मूल रूप से फरी के नाम से जाना जाता है। गटका मुख्य रूप से सिखों द्वारा प्रचलित लड़ाकू खेलों का एक पारंपरिक रूप है और इसकी उत्पत्ति 15वीं शताब्दी में हुई जब इसका सिक्खों के छठे गुरु गुरु हरगोबिंद सिंह जी ने प्रचार और विकास किया था।

कलारीपयट्टू
कलारीपयट्टू भारतीय मार्शल आर्ट का एक रूप है जो दक्षिणी राज्य केरल से उत्पन्न हुआ इसे मार्शल आर्ट की जननी के रूप में जाना जाता है। कलारीपयट्टू में प्रहार, लात मारना, हाथापाई, पूर्व-निर्धारित विधियां, हथियारों का भंडार और उपचार के तरीके शामिल हैं। कलारी शब्द का अर्थ युद्धक्षेत्र है। इसे कथकली जैसी नृत्य शैलियों में भी उपयोग में लाया जाता है। यही कारण है कि कुछ पारंपरिक भारतीय और विदेशी नृत्य स्कूल अभी भी कलारीपयट्टू को अपने व्यायाम नियम के हिस्से के रूप में शामिल करते हैं।

योगासन
एक जीवनशैली के रूप में योगासन दुनिया को भारत की देन है। युवाओं में योगासन को बढ़ावा देने और शारीरिक सौष्ठता बनाए रखने के लिए खेल मंत्रालय ने साल 2020 में इसे प्रतिस्पर्धी खेल का दर्जा दिया। इसी के बाद योगासन को खेलो इंडिया गेम्स में शामिल किया गया। इसके अंतर्गत संगीत के साथ अपने प्रदर्शन को लयबद्ध तरीके से मिलाते हुए एथलीटों को तीन मिनट के लिए आसन करना पड़ता है। एथलीटों को अपने रूटीन में एक पूर्व निर्धारित सूची से 10 आसन शामिल करने होते हैं। इसमें लेग बैलेंस, हैंड बैलेंस, बैक बेंड, फॉरवर्ड बेंड और बॉडी ट्विस्टिंग शामिल हैं।

थंगटा
थंगटा का शाब्दिक अर्थ है- तलवार और भाला। थांग का अर्थ है तलवार और ता का मतलब है भाला। यह लगभग 400 साल पहले मणिपुर के राजा-महाराजों ने शुरू किया था। हालांकि, इस खेल की कहानी काफी रोचक है। तलवार और भाले के साथ खेले जाने वाले इस खेल पर अंग्रेजों ने बैन लगा दिया था। हालांकि, यह खेल अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहा और अब इसे नियमित तौर पर खेलो इंडिया गेम्स में भी शामिल किया जा रहा है। थांगटा की प्रतिस्पर्धी में खतरनाक स्थितियों से बचने के लिए तलवार के स्थान पर एक छड़ी का उपयोग किया जाता है और भाले के की जगह ढाल का उपयोग किया जाता है।