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नई दिल्ली : भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और विकेटकीपर बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी (Mahendra Singh Dhoni) ने कहा कि मैदान में भावनाओं पर नियंत्रण रखना ही उनके कूल रहने का राज है। धोनी ने कहा कि हर खिलाड़ी की तरह मैं भी उस वक्त निराश और गुस्सा हो जाता हूं जब हालात हमारे अनुकूल नहीं रहते हैं लेकिन तब मैं सिर्फ अपने खेल पर ध्यान देता हूं और नकारत्मक शक्ति से दूर रहता हूं।

धोनी ने बताया टेस्ट वनडे और ट्वेंटी फर्क 

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धोनी ने कहा- क्रिकेट के किसी भी प्रारुप में मैं स्थिति के हिसाब से अपने खेल पर ध्यान देता हूं। टेस्ट क्रिकेट में रणनीति बनाने के लिए आपके पास समय होता है लेकिन वनडे में समय सीमित होता है और यह आपके लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है। ऐसे ही ट्वंटी-20 में हर पल स्थिति बदलती है और आपको कम समय में सोच कर अपनी रणनीति तय करनी होती है इसलिए तीनों प्रारुप अलग-अलग हैं।

धोनी को याद आया  2007 का आईसीसी विश्वकप

वर्ष 2007 के आईसीसी विश्वकप (ICC World Cup) मुकाबले में चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ बॉल आउट को याद करते हुए उन्होंने कहा कि टीम इसके लिए तैयार थी और जो स्टंप्स को ज्यादा हिट कर सकते थे उन्हें गेंदबाजी का मौका मिला। धोनी ने कहा कि हमारे पास इससे पहले तक बॉल आउट का कोई अनुभव नहीं था। हम सिर्फ अभ्यास सत्र में इसका अभ्यास करते थे। हमने निर्णय लिया था कि अगर ऐसी स्थिति बनी तो हम उन खिलाडिय़ों से गेंदबाजी कराएंगे जो नेट सत्र के समय स्टंप्स पर ज्यादा गेंद हिट कराते हैं।

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धोनी ने 2007 टी-20 विश्वकप जीतने का श्रेय पूरी टीम को दिया। उन्होंने कहा कि मेरे ख्याल से सिर्फ कुछ खिलाड़ी आपको जीत नहीं दिला सकते और टीम में सभी खिलाडिय़ों का योगदान जरूरी होता है और यही कारण है कि हम 2007 में जीत सके।