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बेंगलुरु : देश के सबसे प्रतिष्ठित घरेलू टूर्नामेंट के फाइनल में बुधवार को जब मुंबई और मध्यप्रदेश की टीमें यहां के चिन्नास्वामी मैदान पर उतरेंगी तो खिलाडिय़ों के साथ-साथ यह दो ऐसे कोच की टक्कर होगी, जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में एक खिलाड़ी के तौर पर मुंबई का प्रतिनिधित्व किया है। मध्यप्रदेश के कोच चंद्रकांत पंडित और मुंबई के उनके समकक्ष अमोल मजूमदार उस मजबूत मानसिकता के लिए जाने जाते हैं जो आम तौर पर मुंबई से जुड़े क्रिकेटरों में होती है। इन दोनों में एक और चीज समान है कि दोनों ने अपने खेल कौशल को दिग्गज कोच रमाकांत आचरेकर की देखरेख में निखारा है।

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खिलाड़ी के तौर पर लंबे समय तक मुंबई का प्रतिनिधित्व करने के बाद चंद्रकांत मध्यप्रदेश से जुड़े और उनकी कप्तानी में टीम ने 1998 में फाइनल तक का सफर तय किया। कोच के तौर पर मध्य प्रदेश की टीम को उन्होंने मुंबई के तौर तरीके से आगे बढ़ाया जिससे यह टीम फाइनल में पहुंच सकी। मध्यप्रदेश के सामने 41 बार की चैम्पियन मुंबई की चुनौती होगी जो पृथ्वी साव, यशस्वी जायसवाल, अरमान जाफर, सरफराज खान और सुवेद पारकर जैसे अगली पीढ़ी के बल्लेबाजों से सजी है। ये सभी बल्लेबाज 25 साल के कम उम्र के हैं और मध्य प्रदेश के गेंदबाजी आक्रमण को ध्वस्त करने के लिए तैयार हैं।

मध्य प्रदेश के पास कुमार कार्तिकेय के रूप में बाएं हाथ का शानदार स्पिनर है लेकिन कुछ अनुभवी खिलाडिय़ों की गैर मौजूदगी में दूसरे गेंदबाज उतने प्रभावी नहीं रहे हैं। मजूमदार कोच के तौर पर पहली बार टीम को चैंपियन बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोडऩा चाहेंगे तो वहीं पंडित छठी बार यह खिताब जीतना चाहेंगे। कोच के तौर पर उन्होंने विदर्भ और मुंबई के लिए पांच रणजी खिताब जीते हैं।

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पंडित ने कहा कि अमोल को मेरे सोचने और तरीके के बारे में पता है। इसी तरह मैं भी उसके बारे जानता हूं। हम दोनों मुंबई क्रिकेट के तरीके को अपनाते रहे हैं। मजूमदार ने कहा कि मुझमें और चंदू में कोई अंतर नहीं है। हम दोनों एक जैसी परिस्थितियों में ही आगे बढ़े हैं। फाइनल मुकाबला खिलाडिय़ों के बारे में अधिक है, जो मैदान पर होंगे और अपनी टीम के लिए खिताब जीतना चाहेंगे।

 

पंडित ने कहा कि मैं मुंबई से हूं और मुंबई में खिताब जीतने को हम अच्छा सत्र मानते हैं जबकि उससे कम किसी भी चीज को बुरा माना जाता है। पंडित ने खिलाड़ी के तौर पर अपना आखिरी सत्र मध्य प्रदेश के साथ खेला था। जहां इसी मैदान पर खेले गए फाइनल में उनकी टीम को हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा कि यह वही एम चिन्नास्वामी स्टेडियम है जहां मेरी कप्तानी में मध्यप्रदेश को रणजी फाइनल में कर्नाटक से हार का सामना करना पड़ा था। 23 साल के बाद इसी मैदान में टीम को चैंपियन बनने का एक और मौका मिला है।