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नई दिल्ली : पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान रानी रामपाल अब मैदान पर शायद दोबारा राष्ट्रीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए नजर नहीं आएं लेकिन उन्हें ‘कोई मलाल नहीं' है क्योंकि वह जो भी मौका मिले उसका पूरा फायदा उठाने में विश्वास रखती हैं। रानी की अगुआई में भारत ने 2021 में तोक्यो ओलंपिक खेलों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चौथा स्थान हासिल किया था। उन्हें 2020 में मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया जबकि इसी साल उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री भी मिला। 

भारत की लड़कियों की अंडर-17 टीम को कोचिंग देने की तैयारी कर रही रानी ने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में कहा, ‘अब मुझे कोई मलाल नहीं है, मुझे पता है कि मैंने अपना काम कर दिया है और अब भी कर रही हूं। जीवन में अगर एक दरवाजा बंद हो जाए तो भगवान दूसरा खोल देता है। आप जीवन में उलझते नहीं हो। मैंने महसूस किया है कि जीवन में आपको नीचे खींचने के लिए ढेरों लोग हैं लेकिन आपको स्वयं को ऊपर उठाना होता है।' 

उन्होंने कहा, ‘हॉकी ने मुझे पहचान दी, हॉकी के कारण लोग मेरी बात सुनते हैं, मेरे से बात करते हैं। इसलिए मैं किसी भी भूमिका में हॉकी के लिए काम करना चाहती हूं, आप खेल सकते हैं, बच्चों का मार्गदर्शन कर सकते हैं, उनके सिखा सकते हैं। कोई भी मेरे से हॉकी के प्रति मेरे जुनून को नहीं छीन सकता।' रानी का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने कई प्रतिकूल हालात से उबरकर हॉकी में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने कहा, ‘सफर अच्छा लेकिन काफी संघर्षों से भरा रहा। इस सफर में काफी अच्छे लम्हे आए और मैंने काफी कुछ सीखा। यह सब कुछ कड़ी मेहनत करने और अपना सर्वश्रेष्ठ करने पर निर्भर करता है, बाकी सब कुछ भगवान पर छोड़ देना चाहिए।' 

रानी ने कहा, ‘मैंने सात साल की उम्र में हॉकी खेलना शुरू किया। मैं 22 साल पहले की बात कर रही हूं। उस समय हरियाणा में लड़कियों का खेल से जुड़ना अच्छा नहीं माना जाता था लेकिन अब इसमें काफी बदलाव आ गया है। अब हरियाणा में माता-पिता अपनी बेटी को खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।' उन्होंने कहा, ‘जब मैंने पहली बार अपने माता-पिता को कहा था कि मैं हॉकी खेलना चाहती हूं तो उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं हो सकता, लोग क्या सोचेंगे, लड़कियां खेल नहीं खेलती।' 

रानी ने हालांकि अपना समर्थन करने का श्रेय अपने पिता और कोच बलदेव सिंह को दिया। उन्होंने कहा, ‘मेरे सभी रिश्तेदारों से आपत्ति जताते हुए कहा कि उसे शॉर्ट, स्कर्ट पहननी होगी और इससे परिवार का नाम खराब होगा। उस समय मेरे पिता ने मेरा समर्थन किया लेकिन कहा कि कुछ ऐसा मत करना जिससे हमें निराशा हो। उनमें यह भरोसा जगाने के लिए कि मैं कुछ हासिल कर सकती हूं, मुझे वर्षों लगे।' रानी ने कहा, ‘आज मैं जो हूं उसमें मेरे कोच बलदेव सर का योगदान भी काफी अधिक है।'