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नई दिल्ली : उत्तराखंड की पैरा-शूटर दिलराज कौर को आजीविका चलाने के लिए नमकीन-बिस्किट बेचने पड़ रहे हैं। वह अभी मां के साथ किराए के मकान में रहती हैं जिसका किराया मां की पेंशन से जाता है। आजीविका चलाने के लिए पहले भाई था, जिसका बीते दिनों निधन हो गया। अब मजबूरी में उन्हें देहरादून की सड़कों पर नमकीन-बिस्किट बेचने पड़ रहे हैं। 

नौकरी के लिए खा रही धक्के: दिलराज ने बताया कि उनके पास 28 गोल्ड के अलावा 8 रजत और 3 कांस्य पदक भी है। लेकिन मौजूदा स्थिति ऐसी है कि महीने की 20 तारीख तक उनके पास मां की पेंशन का कुछ नहीं बचता। मैंने कई बार सरकारी अधिकारियों से शिक्षा और खेल में अपनी योग्यता के में बताया और एक अदद नौकरी का अनुरोध किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

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28 गोल्ड मैडल नैशनल स्तर पर जीत चुकी है दिलराज
सरकारी नौकरी के लिए खा रही दर-दर की ठोकरें

दिलराज कौर ने कहा-
जब मैदान में खिलाड़ी मैडल जीतते हैं तो देश के लोगों को गर्व होता है और वो ताली बजाकर उत्साह बढ़ाते हैं लेकिन ये कोई नहीं पूछता है कि वो अपना घर कैसे चलाते हैं। 

दिलराज की उपलब्धियां...

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- 29वीं नॉर्थ जोन शूटिंग चैम्पियनशिप 2005 में ब्रॉन्ज
- चौथी उत्तराखंड स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में जीता सिल्वर
- 15वीं जीवी मावलेंकर शूटिंग चैम्पियनशिप में चौथा रैंक
- 49वीं नैशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में हासिल किया गोल्ड
- तीसरी उत्तरांचल स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप 2004 में गोल्ड
- 14वीं ऑल इंडिया जी.वी.एम. शूटिंग चैम्पियनशिप: 12वां रैंक

पैरों से दिव्यांग हैं दिलराज कौर
दून की रहने वाली दिलराज ने ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान शूटिंग शुरू की। पैरों से दिव्यांग दिलराज जब इंटरनैशनल स्तर पर छा जाने को तैयार थी तब उनके पिता बीमार रहने लगे। इलाज के दौरान प्रैक्टिस छूट गई और वह कर्जे के नीचे आ गए। कुछ दिनों पहले भाई का निधन होने से आजीविका चलाना मुश्किल हो गया था। इसलिए देहरादून के एक पार्क के पास चिप्स और स्नैक्स बेचने के लिए मजबूर हो गई।