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स्पोर्ट्स डेस्क: सैन्य अधिकारी त्रिलोकचंद रैना को आयुध फैक्ट्री में बम बनाने में महारत हासिल थी लेकिन इसके लिए उन्हें सिर्फ दस हजार रुपए का मासिक वेतन मिलता था। यह राशि बेटे सुरेश रैना के क्रिकेटर बनने के सपने को पंख देने के लिए काफी नहीं थी। संघर्ष के उन दिनों में हालांकि की गयी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प रैना के काम आया, जिसमें भाग्य के भी उनका साथ दिया। 

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दरअसल, रैना ने निलेश मिसरा के ‘द स्लो इंटरव्यू' के साक्षात्कार में बताया कि उनके परिवार में आठ लोग थे और उस समय दिल्ली में क्रिकेट अकादमियों का मासिक शुल्क पांच से 10 हजार रूपये प्रति महीना था। इस दौरान लखनऊ के गुरू गोविंद सिंह खेल कॉलेज में उनका चयन हुआ और फिर सब कुछ इतिहास का हिस्सा बन गया। रैना ने कहा, ‘पापा सेना में थे, मेरे बड़े भाई भी सेना में हैं। पापा अयुध फैक्ट्री में बम बनाने का काम करते थे। उन्हें उस काम में महारत हासिल थी।' 

रैना के बचपन का नाम है सोनू... 
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रैना ने कहा, ‘पापा वैसे सैनिकों के परिवारों की देखभाल करते थे, जिनकी मृत्यु हो गई थी। उनका बहुत भावुक काम था। यह कठिन था, लेकिन वह सुनिश्चित करते थे कि ऐसे परिवारों का मनीऑर्डर सही समय पर पहुंचे और वे जिन सुविधाओं के पात्र है वे उन्हें मिले।' जम्मू कश्मीर में 1990 पंडितों के खिलाफ अत्याचार होने पर उनके पिता परिवार को सुरक्षित महौल में रखने के लिए रैनावाड़ी में सब कुछ छोड़कर उत्तर प्रदेश के मुरादनगर आ गए। रैना ने कहा, ‘मेरे पिता का मानना था कि जिंदगी का सिद्धांत दूसरों के लिए जीना है। अगर आप केवल अपने लिए जीते हैं तो वह कोई जीवन नहीं है।'  

क्रिकेट के शुरूवाती करियर को किया याद....
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क्रिकेट के बारे में बात शुरू होने पर रैना ने सचिन तेंदुलकर और धोनी की उस सलाह को याद किया जो उन्होंने 2011 विश्व कप के लिए दी थी। इन दोनों खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय टीम की किसी भी रणनीति को इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के विदेशी साथी खिलाड़ियों से साझा नहीं करने को कहा था। उन्होंने कहा, ‘धोनी ने इसकी शुरुआत की, सचिन तेंदुलकर ने भी कहा कि किसी को कुछ भी नहीं बताना है, क्योंकि विश्व कप आ रहा था।' उन्होंने कहा, ‘इसकी शुरूआत 2008-09 में हो गई थी। 2008 में हमने ऑस्ट्रेलिया में त्रिकोणीय श्रृंखला जीती। 2009 में, हमने न्यूजीलैंड में जीत हासिल की। 2010 में हमने श्रीलंका में जीत हासिल की। और फिर विश्व कप।'