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स्पोर्ट्स डेस्क : भारत की बल्लेबाज प्रतिका रावल ने ICC महिला विश्व कप 2025 में देश की ऐतिहासिक जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके बल्ले से निकले रन और संघर्ष ने भारत को फाइनल तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया। लेकिन किस्मत ने उनके साथ एक अलग खेल खेला। नवी मुंबई में फाइनल जीतने के बाद भी उन्हें विजेता पदक नहीं मिला। चोट के कारण टूर्नामेंट के अंतिम चरण से बाहर होने के चलते वह आधिकारिक टीम का हिस्सा नहीं रहीं। इसके बावजूद प्रतिका ने टीम की जीत को पूरे दिल से जिया और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ दी। 

चोट से टूटी उम्मीदें, लेकिन नहीं टूटा हौसला

प्रतिका रावल का सफर 2025 विश्व कप में प्रेरणादायक रहा। नवी मुंबई में बांग्लादेश के खिलाफ मैच के दौरान उनके घुटने और टखने में गंभीर चोट लगी, जिसके बाद उन्हें टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा। भारतीय टीम प्रबंधन ने सेमीफाइनल से पहले उनकी जगह शेफाली वर्मा को शामिल किया। 

नियमों के अनुसार फाइनल में केवल आधिकारिक 15 सदस्यीय स्क्वाड के खिलाड़ियों को ही पदक दिए जाते हैं, इसलिए प्रतिका पदक पाने की पात्र नहीं रहीं। यह घटना उस 2003 पुरुष विश्व कप की याद दिलाती है, जब ऑस्ट्रेलिया के जेसन गिलेस्पी, जिन्होंने शुरुआती मैचों में 8 विकेट लिए थे, चोट के कारण बाहर हो गए थे और उन्हें भी पदक नहीं मिला था। 

टीम के साथ जश्न, दिल में गर्व

फाइनल में भारत की ऐतिहासिक जीत के बाद, प्रतिका रावल को व्हीलचेयर पर तिरंगे में लिपटे हुए मैदान में जश्न मनाते देखा गया। उनके चेहरे पर खुशी और आँखों में गर्व साफ झलक रहा था। बैसाखी के सहारे चलने के बावजूद उन्होंने अपने साथियों के साथ भारत की पहली विश्व कप जीत का उत्सव मनाया। 

मैच के बाद उन्होंने कहा, “मैं इस एहसास को शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मेरे कंधे पर यह झंडा मेरे लिए सब कुछ है। चोटें खेल का हिस्सा हैं, लेकिन इस टीम के साथ इस पल को जीना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है।”

टूर्नामेंट में दमदार प्रदर्शन

प्रतिका रावल का प्रदर्शन टूर्नामेंट के ग्रुप चरण में भारत के लिए निर्णायक रहा। उन्होंने सात मैचों में 51.33 की औसत और 77.77 के स्ट्राइक रेट से 308 रन बनाए। उनकी सर्वश्रेष्ठ पारी न्यूजीलैंड के खिलाफ आई, जहां उन्होंने 122 रनों की शानदार पारी खेली। यह मैच भारत के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ क्योंकि इससे पहले टीम लगातार दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया से तीन हार झेल चुकी थी। प्रतिका की उस शतकीय पारी ने भारत को वापसी की राह दिखाई और टीम को सेमीफाइनल की ओर बढ़ाया।

टीम स्पिरिट की मिसाल

प्रतिका रावल का रवैया इस बात का प्रमाण है कि खेल केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों का नहीं, बल्कि सामूहिक भावना का प्रतीक है। भले ही उन्हें विजेता पदक नहीं मिला, लेकिन उनके समर्पण, जज़्बे और टीम भावना ने भारत की सफलता की नींव रखी। साथी खिलाड़ियों और दर्शकों ने भी उनकी भूमिका को भरपूर सराहा।