जकार्ताः भारत के धारूण अय्यासामी को उम्मीद है कि एशियाई खेलों में 400 मीटर बाधा दौड़ में रजत पदक की जीत उन्हें नौकरी दिलाने के लिए काफी होगी ताकि वह घर चलाने में अपनी मां की मदद कर सकें। धारूण केवल आठ साल के थे जब उनके पिता की मौत हो गई और तब से उनकी मां ने अकेले उन्हें पाल पोसकर बड़ा किया। तमिलनाडु के तिरूपुर के 21 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मैं आठ साल का था जब मेरे पिता गुजर गए। मेरी मां ने मेरे लिए काफी बलिदान दिए हैं। मेरे जीत की वजह वह ही हैं। वह शिक्षक के रूप में काम करती हैं और उन्हें केवल 14,000 रुपए का मासिक वेतन मिलता है।’’
धारूण अब अपनी मां की मदद करना चाहते हैं और उन्हें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद अब नौकरी मिलने की उम्मीद है। तमिलनाडु के खिलाड़ी ने 48.96 सेकेंड का समय लेकर खुद का राष्ट्रीय रिकार्ड तोड़ा और वह कतर के अब्दररहमान सांबा के बाद दूसरे स्थान पर रहे। धारूण 300 मीटर की दूरी तक चौथे स्थान पर था लेकिन आखिरी 100 मीटर में उन्होंने दो धावकों को पीछे छोड़कर रजत पदक हासिल किया।
महिलाओं की 3000 मीटर स्टीपलचेज में रजत पदक जीतने वाली अनुभवी खिलाड़ी सुधा सिंह ने पिछले एशियाई खेलों की निराशा को पीछे छोड़कर पदक जीतने से राहत की सांस ली। उत्तर प्रदेश के अमेठी की रहने वाली 32 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मैंने इंचियोन में अपना व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ समय दिया था लेकिन वह पदक के लिए काफी नहीं था। उसके कोई मायने नहीं थे।’’ सुधा ने चीन के ग्वांग्झू में 2010 के एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता था।