नई दिल्लीः अपने जमाने के प्रसिद्ध पहलवान रहे दारा सिंह ने अपने पूरे जीवनकाल में कुश्ती, अभिनय और राजनीति में झंडे गाढ़े। लेकिन उन्होंने असली पहचान तब मिली जब उन्होंने विश्व चैम्पियन किंगकांग को धूल चटा दी थी। दरअसल, दारा सिंह बचपन में छोटे भाई सरदारा सिंह के साथ गांवों-गांवों में पहलवानी करने जाते थे। धीरे-धीरे गांव के दंगलों से लेकर शहरों तक में ताबड़तोड़ कुश्तियां जीतकर वह विश्व चैम्पियन किंग कांग के सामने खड़े हो गए। दारा ने यह मुकाबला जीता। कहा जाता है कि दारा सिंह ने किंगकांग के मुंछ के बाल तक उखाड़ दिए थे।
तब दारा सिंह की उम्र 28 साल थी और उनका वजन 130 किलो था। जबकि उनके ऑस्ट्रेलियाई चैलेंजर किंग कांग करीब 200 किलो वजनी थे। किंग कांग का असली नाम एमिली काजा था। दारा सिंह ने लगभग 15-20 मिनट तक चले मुकाबले के बाद किंग कांग को अपने सिर के ऊपर उठाकर रिंग से बाहर फेंक दिया था।
मां पिलाती थी रोज 100 बादाम
दारा के पूरा नाम दारा सिंह रंधावा था। उनका जन्म 19 नवंबर 1928 को अमृतसर (पंजाब) के गांव धरमूचक में बलवन्त कौर और सूरत सिंह रंधावा के घर हुआ था। दारा की कम उम्र में ही बढ़ी आयु वाली लड़की से शादी कर दी गई। दारा की मां उसे सौ बादाम की गिरियां को शक्कर और मक्खन में मिलाकर दूध के साथ देती थी। इससे दारा का कद्द काठ तेजी से बढ़ा। 17 साल की उम्र में वह प्रद्युम्न रंधावा नामक बेटे के बाप बन गए।
कनाडा-न्यूजीलैंड के पहलवानों से दी खुली चुनौती
1947 में दारा सिंह सिंगापुर गए वहां से विभिन्न देशों में फ्री स्टाइल कुश्तियां जीतते हुए वह 1952 में अपने वतन भारत लौट आए। यहां 1954 में उन्होंने विश्व कप पहलवानों द्वारा चुनौतियां मिलीं। उन्होंने कलकत्ता में हुई कामनवेल्थ कुश्ती चैम्पियनशिप में कनाडा के चैम्पियन जार्ज गारडियान्का एवं न्यूजीलैण्ड के जान डिसिल्वा को धूल चटाकर यह चैम्पियनशिप भी अपने नाम कर ली।
1968 में बने विश्व चैम्पियन
दारा सिंह ने अमरीका के विश्व चैम्पियन लाऊ थेज को 29 मई 1968 को हराकर फ्रीस्टाइल कुश्ती का विश्व चैम्पियन बनने का मान हासिल किया था। दारा ने 55 साल तक पहलवानी की। 500 सौ से ज्यादा मुकाबले जीते। 1983 में उन्होंने अपने जीवन का अंतिम मुकाबला जीता और संन्यास ले लिया। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपराजेय पहलवान का खिताब भी दिया था।
हनुमान का किरदार सबसे यादगार
क्योंकि दारा का कुश्ती के कारण नाम बहुत था ऐसे में फिल्मी प्रोड्यूसर को उन्होंने जल्द ही आकर्षित कर लिया। साल 1962 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म की। इसके अलावा रामानंद सागर के शो रामायण में तो वह हनुमान का किरदार निभाकर अमर हो गए।
फिल्मों में भी छा गए
दारा सिंह ने अभिनय के साथ निर्देशन में भी कदम रखा। उन्होंने 1970 में पहली बार पंजाबी फिल्म ‘नानक दुखिया सब संसार’ को डायरेक्ट किया। यह फिल्म ब्लॉकबस्टर रही। दारा ने अपने जीवन की आखिरी फिल्म ‘जब वी मेट’ की थी जिसमें वह अभिनेत्री करीना कपूर के दादा जी के रोल में थे।
सांसद भी रहे
कुश्ती और फिल्मों के अलावा दारा राजनीति पारी खेलने में भी सफल रहे। 1998 में उन्होंने भाजपा ज्वाइंन की। साल 2003 में राज्यसभा ने उन्हें नॉमिनेट किया। वो पहले ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें राज्य सभा के लिए नॉमिनेट किया गया था।
जीवन की पहली बीमारी के कारण हुआ निधन
दारा सिंह के बारे में यह कहा जाता था कि वह इतने फिट थे कि कभी बीमार नहीं हुए। 12 जुलाई 2012 को उन्हें पहली बार दिल का दौरा पडऩे पर अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए तो उनके परिवार वाले उन्हें घर ले आए। यहीं, सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली थी।