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डोप टेस्ट : डोपिंग घोटाले केवल ट्रैक और फील्ड या साइकिलिंग तक ही सीमित नहीं हैं। क्रिकेट भी इससे अछूता नहीं है। डोप परीक्षण (Dope Test) मूल रूप से एथलीटों के शरीर में प्रतिबंधित पदार्थों का पता लगाने के लिए किया जाता है। सभी एथलीटों की तरह क्रिकेट खिलाड़ियों को भी इन परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। इसका उद्देश्य समान अवसर सुनिश्चित करना है।

 

 

क्रिकेट में यह क्यों महत्वपूर्ण है?
क्रिकेट सहनशक्ति की मांग करता है, खासकर लंबे प्रारूपों में। कुछ लोग प्रदर्शन-बढ़ाने वाली दवाओं का सहारा लेते हैं। परीक्षण निष्पक्ष खेल और खिलाड़ी सुरक्षा सुनिश्चित करता है। बहरहाल, जानें डोप टेस्ट की प्रक्रिया-

1. खिलाड़ी चयन : नियमित टेस्ट होते रहते हैं। कई बार विश्वसनीय जानकारी के आधार पर विशिष्ट खिलाड़ियों को लक्षित किया जा सकता है।

2. अधिसूचना : खिलाड़ी को तत्काल सूचना देकर बुलाया जाता है। वह टेस्ट तक टीम की नजर में रहता है।

3. सैंपल लेना : खिलाड़ी के मुख्य तौर पर मूत्र के नमूने लिए जाते हैं। मौके पर एक्सपर्ट भी होते हैं।

4. सैंपल को बांटना : सैंपल को ए और बी कंटेनरों में बांटा जाता है। यदि दोबारा टेस्ट होना हो तो बैकअप कंटेनर इस्तेमाल किया जाता है।

5. पैकेजिंग : प्रत्येक सैंपल को सील कर रखा जाता है। सुनिश्चित किया जाता है कि इससे लैब में जाने से पहले छेड़छाड़ न हो।

6. ट्रांसपोर्ट : सैंपल को विशेष मानकों के तहत विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (वाडा) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में ले जाया जाता है।

7. लैब टेस्टिंग : 'ए' सैंपल का पहले परीक्षण होता है। यदि यह सैंपल पॉजीटिव आता है तो पुष्टि के लिए 'बी' सैंपल की जांच की जाती है।

8. सूचना : खिलाड़ियों को उनके संबंधित क्रिकेट बोर्ड के माध्यम से निगेटिव टेस्ट की जानकारी मिलती है। पॉजीटिव रिपोर्ट में खूब डिटेल होती है।

 

 

खिलाड़ी पॉजीटिव आने पर क्या कर सकता है ?
यदि कोई खिलाड़ी पॉजीटिव आता है तो उसके पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं। जैसे-
वह 'बी' सैंपल के परीक्षण का अनुरोध करें।
'बी' सैंपल के टेस्ट वक्त मौजूद रहे।
एक विस्तृत लैब रिपोर्ट प्राप्त करें।
सकारात्मक परिणाम के विरुद्ध अपील करें।
क्योंकि दोषी पाए जाने वाले खिलाड़ियों को निलंबन और जुर्माने का सामना करना पड़ता है। ऐसे में खिलाड़ी खूब सतर्कता बरतता है।