स्पोर्ट्स डेस्क : भारतीय हॉकी ने अपनी गौरवशाली यात्रा के 100 साल पूरे कर लिए हैं। 7 नवंबर 1925 को बने हॉकी प्रशासन के पहले संस्थान से लेकर 8 ओलंपिक स्वर्ण पदकों तक का यह सफर इतिहास में दर्ज है। इस मौके पर 90 वर्षीय दिग्गज खिलाड़ी गुरबख्श सिंह ने कहा कि “यह खेल भारत की पहचान है, और इस मील के पत्थर को मनाना गर्व का क्षण है।”
1928 से 1959: भारत का स्वर्ण युग
भारतीय हॉकी का सुनहरा दौर 1928 से 1959 तक रहा, जब टीम ने लगातार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते। 1980 के दशक में गिरावट के बाद, 2020 टोक्यो ओलंपिक में मनप्रीत सिंह की कप्तानी में कांस्य जीत ने फिर से नई शुरुआत की। 2024 पेरिस में टीम ने एक और पदक जीतकर उस विरासत को जीवित रखा।
‘प्रोफेसर’ जिसने दो स्वर्ण भारत को दिलाए : गुरबख्श सिंह
1959 में भारत के लिए पदार्पण करने वाले गुरबख्श सिंह 1964 टोक्यो ओलंपिक और 1966 एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता रहे। पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने उन्हें चश्मा पहनने की वजह से ‘प्रोफेसर’ कहा। वे कहते हैं, “मेरे लिए हॉकी जीवन है। हमने तब ओलंपिक में विश्व खिताब वापस जीता था, वही पल आज भी मेरे दिल में है।”
भारत-पाकिस्तान, अब तक की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्विता
गुरबख्श के अनुसार, भारतीय हॉकी का सबसे रोमांचक अध्याय भारत-पाकिस्तान की भिड़ंत थी। उन्होंने कहा, “मैदान के बाहर कोई दुश्मनी नहीं थी, लेकिन मैदान पर बस एक ही लक्ष्य होता था- जीतना।” उनका मानना है कि इस प्रतिद्वंद्विता ने ही दोनों देशों की हॉकी को विश्वस्तर पर पहचान दिलाई।