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जालन्धर (जसमीत सिंह) : कॉमनवैल्थ गेम्स की वेटलिफ्ंिटग (48 किग्रा वर्ग) में भारत की ओर से मीराबाई चानू ने पहला गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिया। इंफाल की रहने वाली चानू से हालांकि कॉमनवैल्थ गेम्स शुरू होने से पहले ही उम्मीद की जा रही थी कि वह भारत की झोली में पक्का पदक डालेंगी। चानू ने ऐसा किया भी। चानू ने कुल 194 किग्रा वजन उठाया- स्नैच में 85 किग्रा तो क्लीन एंड जर्क में 109 किग्रा। गोल्ड जीतने के बाद चानू ने अपनी जीत का सीक्रेट भी शेयर किया। यकीनन इसे सीक्रेट को जानकर बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है।

डेढ़ साल स्मार्ट फोन से बनाई रखी दूरी
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23 साल की चानू ने इंफाल के जिस अकादमी में प्रैक्टिस शुरू की थी वहां खिलाडिय़ों के स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने पर रोक है। चानू जब नैशनल कैंप पहुंची तो वहां भी इसे सख्ती से लागू किया। देखते ही देखते कई और उभरते वेटलिफ्टर्स ने भी चानू का अनुसरण करना शुरू कर दिया। चानू बताती हैं- ऐसी नहीं है कि हमने मोबाइल से दूरी बना ली। दरअसल हम स्मार्ट फोन का इस्तेमाल नहीं कर रहे। हमारे पास अभी भी सिंपल फोन हैं जो सिर्फ कॉल सुनने या करने में काम आ सकते हैं। हमारे शैड्यूल में प्रैक्टिस के वक्त मोबाइल देखने की इजाजत नहीं होती। ऐसे में हम फोन स्विच ऑफ कर दिया करते थे। शुरुआत में फैमिली के कारण हमें थोड़ी दिक्कत जरूर हुई लेकिन जब हमारे सामने कॉमनवैल्थ और ओलंपिक में मेडल लाने का लक्ष्य था तो यह दिक्कत भी दूर हो गई। करीब डेढ़ साल वह स्मार्ट फोन से दूर हैं।

चानू ने बिना फिजियो के ही जीता मेडल
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भारत का नाम कॉमनवैल्थ में चमकाने वाली चानू ने बिना फिजियो के ही यह उपलब्धि हासिल की है। रिकॉर्डतोड़ प्रदर्शन के बाद चानू ने कहा- मेरे साथ यहां प्रतियोगिता के लिए कोई फिजियो नहीं था। उन्हें यहां आने की अनुमति नहीं मिली, प्रतियोगिता में आने से पहले मुझे पर्याप्त उपचार नहीं मिला। यहां कोई नहीं था, हमने अधिकारियों से इसके बारे में कहा लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- मैंने अपने फिजियो के लिए अनुमति मांगा था लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई, लेकिन हम एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। वहीं, पुरुषों के 56 किग्रा वर्ग में रजत जीतने वाले कर्नाटक के गुरूराजा ने कहा- मुझे कई जगह चोट लगी है। मेरा फिजियो मेरे साथ नहीं है, इसलिए मैं घुटने और सिएटिक नर्व का इलाज नहीं करा पाया।’’  

जीत के बाद बोली चानू- सोचकर आई थी रिकॉर्ड बनाउंगी
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मुझे रिकार्ड तोडऩे की उम्मीद नहीं थी लेकिन जब मैं यहां आई तो सोचा था कि रिकॉर्ड बनाउंगी। मैं शब्दों में नहीं बता सकती कि इस समय कैसा महसूस कर रही हूं। मेरा अगला लक्ष्य एशियाई खेल है। मैं इससे भी बेहतर करना चाहती हूं। वहां काफी कठिन स्पर्धा होगी और मुझे बहुत मेहनत करनी होगी। 

दो शब्द पेरेंट्स के लिए 
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चानू की सफलता के पीछे सबसे बड़ा राज उनका स्मार्ट फोन इस्तेमाल न करना था। आज से शायद चानू उन पेरेंट्स के लिए एक उदाहरण का काम करेंगी जिनके बच्चे मोबाइल की लत में खोकर खेलना भूल गए हैं। चानू की कहानी बच्चों को प्रेरित करेगी, ऐसा उम्मीद की जा सकती है।