नई दिल्ली : पेरिस ओलिम्पिक खेलों की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा में अर्जुन बबूता के चौथे स्थान पर आने के सदमे से उबरने में कोच दीपाली देशपांडे को एक घंटे का समय लगा। हजारों मील दूर बैठी दीपाली अपने सबसे मेहनती शिष्यों में से एक के दर्द को महसूस कर सकती थी जब वह अपने पहले ही ओलिम्पिक में पदक जीतने के इतने करीब था लेकिन भारी दबाव के बीच चौथे स्थान पर रहा। बबूता जब 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय टीम में आया था तब से उसे कोचिंग दे रही दीपाली को एक ऐसा निशानेबाज मिला जिसकी मुद्रा (पॉस्चर) ‘बहुत खराब' थी लेकिन उसकी नजर सटीकता और परफेक्ट होने पर थी।
वर्ष 2015 में जसपाल राणा के साथ जूनियर कोचिंग टीम का हिस्सा रही दीपाली को भरोसा है कि बबूता जल्द ही इस झटके से उबर जाएगा और 2028 लॉस एंजिल्स ओलिम्पिक की ओर उनका सफर पेरिस के पास शेटराउ निशानेबाजी रेंज में होने वाले घटनाक्रमों से प्रेरित होगा। बबूता एक समय रजत पदक जीतने की स्थिति में दिख रहे थे लेकिन घबराहट में खराब निशाना लगा बैठे। बुसान 2002 एशियाई खेलों की निशानेबाजी टीम स्पर्धा की रजत पदक विजेता दीपाली ने पिछले नौ साल में बबूता को परिपक्व होते हुए देखा है।
दीपाली ने कहा कि वह बहुत बुरे दौर से गुजरा था जब उसे पीठ में चोट लगी थी जिससे 3 साल पहले टोक्यो ओलिम्पिक में जगह बनाने की उसकी उम्मीदें खत्म हो गई थीं। निशानेबाजी के दौरान वह 2 बार रेंज में गिर गया था क्योंकि उसके पैर सुन्न हो जाते थे। जब बबूता को पूरी तरह से आराम करने की सलाह दी गई थी तब भी दीपाली को उनकी क्षमताओं पर भरोसा था। उन्होंने कहा कि कोविड महामारी ने उसे आराम करने और ठीक होने का समय दिया लेकिन हर बार वह फोन करके पूछता था कि क्या मैं (बबूता) ट्रेनिंग शुरू कर सकता हूं और हर बार मुझे उसे बताना पड़ता था कि उसे पहले फिट होने की जरूरत है।
दीपाली ने कहा कि आज का दिन मेरे लिए भी मुश्किल था और मैंने उसे फाइनल में दूसरे से चौथे स्थान पर आते देख अपना फोन फेंक दिया। मुझे पता है कि मैंने उसके जूनियर दिनों के दौरान उसके साथ कितनी मेहनत की है और चोट के दौर से गुजरने में उसकी कितनी मदद की है। उन्होंने कहा कि वह उन लोगों में से एक है जो फाइनल में लगातार 10.8 अंक बना सकता है और मुझे यकीन है कि उसका युग 2025 में शुरू होगा। निशानेबाजी के खेल के प्रति बबूता के प्यार ने उनके पिता को ओलिम्पिक स्वर्ण पदक विजेता निशानेबाज अभिनव बिंद्रा से मिलने का समय लेने के लिए प्रेरित किया। उस मुलाकात ने किसी दिन इस चैंपियन की तरह बनने की इच्छा को जन्म दिया और यही बबूता के लिए इन सभी वर्षों में प्रेरणा शक्ति रही।
बबूता ने सोमवार को स्वीकार किया कि बिंद्रा ने उन पर कितना गहरा प्रभाव डाला है। उन्होंने कहा कि मैंने उनसे कल और आज भी बात की। वह खेल गांव में आए थे और अपने विचार साझा किए। उन्होंने मुझे वर्तमान में रहने के लिए कहा। हम हमेशा वर्तमान में रहने की कोशिश करते हैं लेकिन जब बिंद्रा जैसे सीनियर खिलाड़ी ऐसा कहते हैं तो इसका एक अलग प्रभाव पड़ता है। बाबूता ने सोमवार को भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित वर्चुअल बातचीत में कहा कि उन्होंने मुझसे कहा ‘मैं भी चौथे स्थान पर था (2016 रियो में) और मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं'। उन्होंने कहा- उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आज निश्चित रूप से रो सकता हूं लेकिन मुझे आगे बढ़ना होगा।
भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा के साथ अपनी बातचीत के बारे में बबूता ने कहा कि उन्हें मेरे से बहुत उम्मीदें हैं। पिछले दो दिनों में अपनी प्रतिस्पर्धा के बारे में उन्होंने कहा कि यह उतार-चढ़ाव भरा रहा। यहां निशानेबाजों का स्तर अच्छा है। लेकिन भारतीय अब ऐसी स्थिति में हैं जहां हम सिर्फ ओलिम्पिक के लिए क्वालीफाई करने के बारे में नहीं सोचते बल्कि पदक जीतने का लक्ष्य रखते हैं। हर कोई सक्षम है और हर कोई (निशानेबाजी टीम में शामिल) पदक जीत सकता है। बबूता ने कहा कि ओलंपिक के लिए उनकी तैयारी काफी समय पहले शुरू हो गई थी लेकिन दबाव ने उन पर भारी असर डाला।