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नई दिल्ली : भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) पुरुष फ्रीस्टाइल राष्ट्रीय कोच हुसैन करीमी को बर्खास्त कर सकता है। इस ईरानी कोच को छह महीने पहले ही तोक्यो ओलंपिक तक टीम से जोड़ा गया था। ईरानी कोच फरवरी में राष्ट्रीय शिविर से जुड़ा था लेकिन वह यहां की व्यवस्था से तालमेल नहीं बिठा पाए हैं। भारत के नूर सुल्तान में विश्व चैंपियनशिप में अब तक सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद वह अवकाश पर चले गये हैं। विश्व चैंपियनशिप में भारत ने फ्रीस्टाइल में चार पदक जीते और तीन ओलंपिक कोटा हासिल किए।

डब्ल्यूएफआई सूत्रों ने कहा, ‘करीमी के दिन अब लद चुके हैं। उन्हें जल्द ही बर्खास्त किया जाएगा। डब्ल्यूएफआई उनसे खुश नहीं है।' पता चला है कि करीमी भी भारत की व्यवस्था से खुश नहीं हैं। वह सोनीपत के बहालगढ़ में राष्ट्रीय शिविर में अपना कार्यक्रम लागू करना चाहते थे लेकिन देश के एलीट पहलवानों ने अपने हिसाब से तैयारियां की। बजरंग पूनिया ने जार्जिया के शाको बेंटिनिडिस और सुशील कुमार ने रूस के कमाल मालिकोव के साथ अभ्यास किया। नूर सुल्तान में क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीतने वाले दीपक पूनिया और रवि दहिया दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम की देन हैं।

सूत्रों ने कहा, ‘वह शिविर में अन्य भारतीय कोचों के साथ घुलमिल नहीं पाये और अधिकतर समय अलग थलग रहे। वह यहां आने के बाद से ही नाखुश थे और लगातार शिकायतें करते रहे। डब्ल्यूएफआई को इस बारे में बता दिया गया है और उन्हें कभी भी बर्खास्त किया जा सकता है।' उन्होंने कहा, ‘उन्हें शिविर के नजदीक फ्लैट दिया गया क्योंकि वह साई परिसर में नहीं रहना चाहते थे जबकि अन्य कोच वहीं रह रहे थे। 'डब्ल्यूएफआई ने हालांकि कहा कि उन्होंने अभी करीमी को बर्खास्त करने का फैसला नहीं किया है। महासंघ के सहायक सचिव विनोद तोमर ने कहा, ‘वह अवकाश पर हैं। उन्हें वापस लौटने दो। हमने अभी फैसला नहीं किया है कि वह पुरुष फ्रीस्टाइल के कोच बने रहेंगे या नहीं।'

पता चला है कि करीमी ने नूर सुल्तान में एक अन्य सहयोगी स्टाफ के साथ कमरा साझा करने से इन्कार कर दिया था। सूत्रों ने कहा, ‘वह अन्य के साथ नहीं घुलमिल पा रहे थे इसलिए उन्होंने अकेले रहने के लिये कहा। उन्हें अलग कमरा दिया गया जबकि सहयोगी स्टाफ के तीन सदस्य एक कमरे में रहे और उनमें से एक को इतने दिनों तक सोफे में सोना पड़ा।'' एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘वह भारतीय कोच को खास तवज्जो नहीं देते हैं। शिविर में भी पहलवानों को उन्होंने केवल मौखिक गुर ही बताये और लगातार पसीना बहाने वाले पहलवानों से दूर रहे।'