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मनुष्य से देवता बनाने का एक नया प्रयास श्री गुरु नानक देव जी ने प्रारंभ किया। यह नया मार्ग प्रेम का है मगर इसे अपनाने के लिए अपने सिर को हथेली पर रख कर गुरु के पास आने की जरूरत है। परमात्मा जिसे कि अनेक नामों से याद किया जाता है और गुरु ही उस तक पहुंचने का सही राह दिखाता है। इस तरह गुरु के आदेश और उसके बताए मार्ग पर चलने से संत-सिपाही और सिद्ध पुरुष ही ब्रह्म ज्ञानी बन कर मुक्त हो जाते हैं। सिख पंथ को मानने वाले न तो किसी से डरते हैं और न ही किसी को डराते हैं। वे गर्व के साथ जीते हैं। इस तरह गुरु साहिबान ने 239 वर्ष अपने फलसफे की उदाहरणें, अपने जीवन के द्वारा पेश कीं तथा भारतीय समाज में से जात-पात के भेदभाव सहित सभी कमजोरियों को दूर कर एक नए, सेवा, सिमरन और ‘शूरवीर वचन के बली’ योद्धाओं की सेना तैयार की। खालसा अकाल पुरख की फौज है। 

इस नए पंथ की ओर चलने का सफर भी आसान नहीं था। मुगल सम्राट बाबर से लेकर औरंगजेब तक हर शहंशाह ने गुरु साहिबान के साथ टक्कर ली। श्री गुरु हरगोबिंद साहिब और श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को आत्मरक्षा और जुल्म के खिलाफ 21 के करीब युद्ध भी लडऩे पड़े। जीत के उपरांत भी गुरु साहिबान ने एक इंच जमीन पर कब्जा नहीं किया। मगर जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बाबा बंदा सिंह बहादुर को अपना आशीर्वाद दिया तो खालसे ने 2 साल में ही सिख राज की स्थापना कर मुगलसाम्राज्य के खात्मे की नींव रख दी। 1715 ईस्वी में जब बाबा बंदा सिंह बहादुर गुरदास नंगल की गढ़ी में बाहर से मदद की उम्मीद कर रहे थे तो विरोधी फूट डालने में सफल हो चुके थे और बाहर से कोई सहायता न मिल सकी। बाबा बंदा सिंह बहादुर की वर्ष 1716 ईस्वी में साथियों और परिवार सहित शहादत के बाद भी सिखों ने फिर से संगठित होने में ज्यादा समय नहीं लगाया और 1731 में मुगल साम्राज्य को नवाबी पेश करने के लिए बाध्य कर दिया। नवाब कपूर सिंह जैसे सेवक को कौम का नेतृत्व दिया गया। 

सिख मिसलों और सिखों की बहादुरी ने मुगल साम्राज्य की नाक में दम कर दिया। इसके पीछे केवल एक ही कारण था कि सिख गुरमति नियमों को मानने वाले थे। खालसा फौज पूरी तरह से अनुशासन में रह कर लोगों की जान-माल की रक्षा के लिए जिम्मेदार थी। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बाबा बंदा सिंह बहादुर को आदेश दिया था कि दुश्मन का धर्म स्थान कभी नहीं गिराना जिसका पालन बंदा सिंह बहादुर ने किया। मगर शायद अहमदशाह अब्दाली को ऐसी शिक्षा देने वाला गुरु नहीं मिला था। उसने श्री हरिमंदिर साहिब को भी ध्वस्त करवा दिया। मगर ऐसा जुल्म भी सिखों का मनोबल नहीं तोड़ सका। छोटे-बड़े घल्लूघारों की तबाही में से निकल कर सिख कौम ने अब्दाली के छक्के छुड़वा दिए और फिर से पंजाब के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। सिख मिसलें पहले तो दुश्मन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ती थीं मगर समय के साथ राज करने के मोह में फंस कर एक-दूसरे की विरोधी बन गईं। इसी कारण दिल्ली का राज्य जीत कर भी 1783 ईस्वी में शाह आलम को वापस कर दिया गया क्योंकि जस्सा सिंह आहलूवालिया सिख कौम में लड़ाई नहीं चाहते थे। 

चढ़त सिंह शुक्र चक्कियां बाबा जस्सा सिंह आहलूवालिया का भरोसेमंद साथी था। 18वीं सदी के अंत तक अहमदशाह अब्दाली के पौत्र को जंग के मैदान में ललकारने के लिए चढ़त सिंह का पौत्र रणजीत सिंह आगे बढ़ा तथा लाहौर राज्य स्थापित करने में कामयाब हो गया।  उनसे अंग्रेज और नेपोलियन दोनों ही संधि करना चाहते थे। जब सिख बहादुर शेर दिल्ली पर कब्जा करने वाले थे तो अपने ही विरोधी बन अंग्रेजों की कचहरी में कलकत्ते में हाजिर हुए। महाराजा के भाई कहलाने वाले लोगों को बादशाह बनने की बजाय अंग्रेजों के राजकुमार बनना अच्छा लगा और वे बिना लड़े ही गुलाम बन गए। महाराजा रणजीत सिंह के विरोधी उनके राज्य के विस्तार में अड़चन बन गए। यह आपसी फूट वक्त के साथ और बढ़ती गई। जब 1873 ईस्वी में मिशन स्कूल के 4 छात्रों को ईसाई बनाने के खिलाफ सिंह सभा लहर शुरू हुई तो अंग्रेजों ने चतुरता के साथ इसको चीफ खालसा दीवान बनाकर 1902 ईस्वी तक खत्म कर दिया। चीफ खालसा दीवान के 5 मंतव्व पढऩे-सुनने के लिए अच्छे हैं। पर क्या इस पर अमल हो रहा है और आज इसकी स्थिति क्या है? 

1920 ईस्वी की गुरुद्वारा सुधार मुहिम बड़ी कुर्बानियों से कामयाब हुई थी मगर यह भी सिख कौम की जीत को स्वतंत्रता की लड़ाई की पहली जीत कहने वाले कांग्रेसियों की झोली में पड़ गई। राजकुमारी बंबा जो उस समय लाहौर में थी, की न तो किसी ने मदद की और न ही उसको फिर से अपने पुरखों के धर्म के साथ जुडऩे के लिए प्रेरित किया। जबकि वह स्वतंत्रता संग्रामियों के सम्पर्क में थी। देश की आजादी में अपना भरपूर योगदान देने वाले सिखों को मानसिक तौर पर गुलाम बनाकर रखा गया। 

समय किसी को भी माफ नहीं करता और विश्लेषण निष्पक्ष होना चाहिए। पंजाब में सिख आबादी 63 से कम होकर 57 फीसदी हो गई है। पंजाब के बच्चे और बच्चियां दूसरे देशों का रुख कर रहे हैं जहां पर उनके हालात देख कर चिंता होती है। उच्च सरकारी पदों और दफ्तरों में से दस्तार गायब होती जा रही है। धर्म स्थानों के प्रबंधकों पर फिर से भ्रष्टाचार के दोष लग रहे हैं। भारत विरोधी विदेशी ताकतें और उनके एजैंट सिख कौम को झूठी कहानियों के साथ भड़का रहे हैं। ऐसा सिख कौम को बदनाम और कमजोर करने के लिए हो रहा है। समय आज विचार करने का है कि जहां पर श्री गुरु नानक देव जी तथा अन्य गुरु साहिबान ने प्रचार केंद्र स्थापित किए थे क्या हम वहां पर शोध केंद्र तथा यूनिवर्सिटियां बना चुके हैं? क्या पंथक संस्थानों के नाम पर चल रहे शिक्षा संस्थान सबसे उत्तम हैं? क्या गांव की गरीब बेटी की शादी के लिए हम कुछ करते हैं?-इकबाल सिंह लालपुरा