नई दिल्ली : भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) खेल मंत्रालय द्वारा लगाए निलंबन को अगले हफ्ते अदालत में चुनौती देगा और आगे की रणनीति पर चर्चा के लिए उसने 16 जनवरी को यहां कार्यकारी समिति की बैठक भी बुलाई है। सरकार ने राष्ट्रीय खेल संहिता और डब्ल्यूएफआई संविधान के उल्लंघन का हवाला देते हुए 24 दिसंबर को नवनिर्वाचित संस्था को महासंघ के चुनाव के तीन दिन बाद निलंबित कर दिया था।
डब्ल्यूएफआई कह चुका है कि वह न तो निलंबन को स्वीकार करता है और न ही कुश्ती का कामकाज देखने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) द्वारा गठित तदर्थ पैनल को मान्यता देता है। डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष संजय सिंह ने कहा, ‘हमें सुचारू रूप से काम करने वाले महासंघ की जरूरत है। हम इस मामले को अगले हफ्ते अदालत में ले जा रहे हैं। हमें यह निलंबन स्वीकार्य नहीं है क्योंकि हमारा चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हुआ था। हमने 16 जनवरी को कार्यकारी समिति की बैठक भी बुलाई है।'
वाराणसी के संजय सिंह ने बताया कि तदर्थ पैनल मुश्किल की घड़ी में काम करने के लिए किस तरह ठीक नहीं था। उन्होंने कहा, ‘आपने देखा होगा कि जगरेब ओपन के लिए किस तरह टीम की घोषणा की गई थी। पांच वजन वर्गों में प्रतिनिधित्व ही नहीं था। उचित महासंघ के बिना ऐसा ही होगा। अगर कुछ पहलवान अपने संबंधित वर्ग में उपलब्ध नहीं थे तो उनकी जगह किसी अन्य खिलाड़ी को क्यों नहीं लिया गया?'
संजय सिंह ने कहा, ‘जब महासंघ काम कर रहा था तो कभी भी किसी भी टूर्नामेंट में ऐसा कोई भी वजन वर्ग नहीं रहा जिसमें भारत ने प्रतिनिधित्व नहीं किया हो। और एशियाई खेलों में हिस्सा लेने वाली उसी टीम को चुनने के पीछे का औचित्य क्या था। अन्य दावेदार भी शामिल थे।' उन्होंने कहा, ‘मुझे उन पहलवानों के फोन आ रहे हैं जिन्हें लगा था कि वे भारतीय टीम में जगह बनाने के काबिल थे। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें ट्रायल्स के जरिये साबित करने का मौका दिया जाता तो वे टीम में जगह बना सकते थे। इसलिए आपको एक सुचारू रूप से काम करने वाले महासंघ की जरूरत है।'
इस बीच डब्ल्यूएफआई के एक सूत्र ने खुलासा किया कि कार्यकारी समिति के लिए नोटिस 31 दिसंबर को जारी किया गया था। इसमें जारी किये किये एजेंडे का एक बिंदु संविधान के कुछ प्रावधानों को परिभाषित और इनकी व्याख्या करना है। सर्कुलर में स्पष्ट रूप से संविधान का हवाला देते हुए जिक्र किया गया है कि ‘अध्यक्ष ही डब्ल्यूएफआई का मुख्य अधिकारी होगा। अगर उसे उचित लगता है तो उसके पास परिषद और कार्यकारी बैठक बुलाने का अधिकार होगा।'
खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई की 21 दिसंबर को आम परिषद की बैठक में महासचिव की अनुपस्थिति पर आपत्ति व्यक्त की थी। डब्ल्यूएफआई ने कहा कि उसने किसी भी नियम का उल्लघंन नहीं किया है और संविधान के अनुसार अध्यक्ष के पास फैसले लेने का अधिकार है और महासचिव उसके इन फैसलों को लागू करने के लिए बाध्य होगा। एक सूत्र ने कहा, ‘हम तदर्थ पैनल के गठन और विभिन्न आयु ग्रुप में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप की मेजबानी के बारे में भी चर्चा करेंगे।'
दिलचस्प बात यह है कि तदर्थ पैनल पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह तीन फरवरी से जयपुर में सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप और अगले छह हफ्तों के अंदर ग्वालियर में आयु ग्रुप की चैम्पियनशिप का आयोजन करेगा। देखना होगा कि पहलवान डब्ल्यूएफआई या तदर्थ समिति द्वारा आयोजित टूर्नामेंट में से किसमें हिस्सा लेते हैं।