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नई दिल्लीः आज राष्ट्रीय खेल दिवस है, जो हर साल 29 अगस्त को हाॅकी के जादूगर कहे जाने वाले महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद की जयंती के दिन मनाया जाता है। ध्यानचंद ने भारत को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलवाया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी को पहचान दिलाई। इलाहाबाद में पैदा हुए ध्यानचंद का जन्मदिन पूरे भारत में राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है, लेकिन जकार्ता में जारी एशियन गेम्स की वजह से इस समारोह के आयोजन की तारीख में बदलाव हुआ है और अब यह अगले महीने होगा। हर किसी के दिल पर उनका जादू एक जैसा था हर कोई उनके खेल की एक झलक पाने को बेकरार रहता था। जिस किसी ने उन्हें हाथ में स्टिक थामे देखा वो उनका मुरीद हो गया। इसी लय में जब ध्यानचंद ने जर्मन जैसी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ हाॅकी टीम को 8-1 से हराया तो हिटलर जैसा तानाशाह भी उनका मुरीद हो गया।

जर्मन के खिलाड़ी का तोड़ा था दांत 

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बता दें कि बर्लिन आलंपिक का फाइनल भारत और जर्मनी के बीच 14 अगस्त 1936 को खेला जाना था, लेकिन बारिश की वजह से मैच अगले दिन खेला गया। बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में उस दिन 40 हजार दर्शकों के बीच हिटलर भी मौजूद थे। हाफ टाइम तक भारत एक गोल से आगे था। इसके बाद ध्यानचंद ने अपने स्पाइक वाले जूते निकाले और खाली पांव कमाल की हॉकी खेली। इसके बाद, तो भारत ने एक के बाद एक कई गोल दागे। इसी टूर्नामेंट में उनके साथ खेले और बाद में पाकिस्तान के कप्तान बने आईएनएस दारा ने एक संस्मरण में लिखा- छह गोल खाने के बाद जर्मन काफी खराब हॉकी खेलने लगे। उनके गोलकीपर टीटो वार्नहोल्ट्ज की हॉकी स्टिक ध्यानचंद के मुंह पर इतनी जोर से लगी कि उनका दांत टूट गया।

हिटलर भी हो गए थे इनके मुरीद 
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भारत की आजादी से पूर्व हुए ओलंपिक खेल में सर्वश्रेष्ठ हॉकी टीम जर्मनी को 8-1 से हराने के बाद जर्मन तानाशाह हिटलर ने मेजर ध्यानचंद को अपनी सेना में उच्च पद पर आसीन होने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराकर भारत और भारतीयों का सीना सदा-सदा के लिए चौड़ा कर दिया था। शायद यही कारण है कि आज भी ध्यानचंद का नाम सुनते ही कई दशकों से राजधानी लखनऊ में हॉकी खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करके देश को दर्जनों अन्तर्राष्ट्रीय पदक जितवा चुके हॉकी कोच राम अवतार मिश्रा की आंखों में चमक आ जाती है। 

हिटलर ने ही दिया था 'हाॅकी के जादूगर' का नाम
हिटलर ने ही ध्यानचंद को हॉकी के जादूगर का नाम दिया था। इसका संदर्भ छेड़ते हुए कोच राम अवतार मिश्रा ने बताया कि ओलंपिक खेलों में जर्मनी के खिलाफ मेजर ध्यानचंद द्वारा एक के बाद एक गोल दागने पर दर्शक दीर्घा में बैठकर मैच देख रहा हिटलर हैरान था और मैच के दौरान ही उसने ध्यानचंद की हॉकी मंगवाकर चेक कराया कि कही उनकी हॉकी में स्टील तो नहीं लगा हुआ है, लेकिन जांच में स्टिक में कुछ नहीं मिला। हिटलर फिर भी जब संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने ध्यानचंद को खेलने के लिए दूसरी हॉकी स्टिक दिलवाई, लेकिन जब दूसरी हॉकी स्टिक से भी मेजर ध्यानचंद ने गोल दागकर अपनी टीम को जीत दिलवा दी तो हिटलर उनकी हॉकी की जादूगरी का मुरीद हो गया और यहीं पहली बार उसने उन्हें हॉकी के जादूगर कहा था।

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आज भी नहीं मिला वो सम्मान
भारत को ओलंपिक में 3 स्वर्ण पदक दिलवाने वाले ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न से नहीं नवाजा गया है। जबकि हमेशा से उन्हें भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिए जाने की मांग उठती रही है। हालांकि पहले खेल जगत की उपलब्धियों के आधार पर भारत रत्न दिए जाने का प्रावधान नहीं था। लेकिन सचिन तेंदुलकर को इस सम्मान से नवाजे जाने के लिए इस प्रावधान में संशोधन किया गया था। लेकिन उसके बाद भी आज तक ध्यानचंद को यह सम्मान नहीं दिया गया है।