खेल डैस्क : भारत की शान बैडमिंटन स्टार खिलाड़ी पीवी सिंधू इसी महीने 22 तारीख को शादी करने जा रही है। ओलम्पिक खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का रजत पदक जीतने वाली वे पहली खिलाड़ी हैं। वह अपनी गेम के प्रति इतनी समर्पित थी कि 17 साल की उम्र में एक बैडिमिंटन टूर्नामेंट के कारण उन्होंने अपनी बहन की शादी तक मिस कर दी थी। सिंधु तब सैयद मोदी इंटरनेशनल इंडिया ग्रां प्री गोल्ड में खेल रही थी। उन्होंने उसी दिन टियर थ्री इवेंट के अपने पहले फाइनल में जगह बनाई थी। सिंधु ने मैच जीतने के बाद कहा था कि हां, मैं उसकी (बहन पी. दिव्या) शादी में शामिल नहीं हो पाऊंगी। अब मैं फाइनल में पहुंच गई हूं, इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूं। की शनिवार को हैदराबाद में शादी हो रही है। मैं टूर्नामेंट जीतने की कोशिश करूंगी और उसे तोहफे के तौर पर दूंगी।
वालीबॉल खेल चुके हैं सिंधू के माता पिता
सिंधू का जन्म 5 जुलाई 1995 में पेशेवर वॉलीबॉल के खिलाड़ी पी.वी रमण और पी. विजया के घर हुआ। उनके माता-पिता भले ही वॉलीबॉल खिलाड़ी थे, लेकिन सिंधू ने बैडमिंटन के खेल में रूचि देना पसंद किया। जब वह 8 साल की थी तो उन्होंने 2001 के ऑल इंग्लैंड ओपन बैडमिंटन चैंपियन बने पुलेला गोपीचंद से प्रभावित होकर बैडमिंटन को अपना करियर चुना।
2010 में शुरू किया अपना अंतरराष्ट्रीय स्तर बैडमिंटन करियर
2010 में सिंधू ने जूनियर विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में अपने करियर की शुरूआत की। उसने कवार्टर फाइनल में पहुंच कर अपनी पहचान और भी मजबूत कर ली। इसके साथ ही सिंधू ने सीनियर टीम में अपनी जगह बना ली। ये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिंधू का पहला कदम था। 2013 में सिंधू ने मलेशिया ओपन का खिताब जीता और वो सुर्खियों में आ गई। उसी साल विश्व चैंपियनशिप में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। साल के अंत में मकाउ ओपन का खिताब जीता।
पीवी सिंधु की कुछ फोटोज
2016 ओलंपिक में किया भारत का नाम रोशन
रियो ओलंपिक में सिंधू फाइनल तक पहुंचने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं। सारी उम्मीदें सिंधू से थीं। सिंधू ने फैंस को निराश होने का कोई मौका नहीं दिया। फाइनल में स्पेन की दिग्गज कैरोलीना मारिन से कड़े मुकाबले के बाद हार तो मिली लेकिन वो रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई। वो ओलंपिक रजत पदक जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय खिलाड़ी भी बनी थी। पूरे देश में उनका सम्मान हुआ और उम्मीदें अब भी जारी हैं।
कामयाबी के पीछे है कोच का बड़ा हाथ
2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप का खिताब जीतने वाले पुलेला गोपीचंद की सफलता को देखकर सिंधू इतना प्रेरित हुई कि आठ साल की उम्र में ही उन्होंने बैंडमिंटन में अपनी रूचि दिखाई। गोपीचंद की वजह से सिंधु ने वॉलीबॉल की बैचमिंटन को चुना। गोपीचंद की बैडमिंटन अकादमी में दाखिल होने के बाद से सिंधू ने अपनी प्रतिभा के दम पर जलवा बिखेरना शुरू कर दिया था।