पैरालम्पियन को इतना सम्मान, वाकई देश बदल रहा है : दीपा

Edited By ,Updated: 26 Dec, 2016 08:59 AM

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रियो डी जेनेरो में इस साल आयोजित पैरालिंपिक में रजत पदक जीतने वाली दीपा मलिक ने यहां एक समारोह के दौरान क्रिकेटर गौतम गंभीर...

नई दिल्ली:  रियो डी जेनेरो में इस साल आयोजित पैरालिंपिक में रजत पदक जीतने वाली दीपा मलिक ने यहां एक समारोह के दौरान क्रिकेटर गौतम गंभीर से ज्यादा तालियां बटौरने के बाद भावुक होते हुए कहा कि वाकई देश बदल रहा है।   

दीपा के लिए लोगों ने बजाई सबसे ज्यादा तालियां
सरकार द्वारा डिजिटल भुगतान करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई ‘लकी ग्राहक योजना’ के शुभारंभ के मौके पर विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में जब दीपा का नाम पुकारा गया तो लोगों ने सबसे ज्यादा तालियां बजाई। उसी समारोह में क्रिकेटर गौतम गंभीर, केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ अन्य कई विशिष्ट हस्तियां मौजूद थीं। लेकिन, दीपा के हर वाक्य पर जिस तरह लोगों ने तालियां बजाई, वैसा सम्मान किसी और को नहीं मिला।   

दीपा ने कहा- मेरा भारत वाकई बदल रहा है
गोला फेंक खिलाड़ी दीपा ने भावुक होते हुए कहा कि बहुत अच्छा लग रहा है कि एक पैरालम्यिन को इतना सम्मान मिल रहा है। मेरा भारत वाकई बदल रहा है। कल तक लोग पैरालंपिक के बारे में जानते तक नहीं थे, आज आपने उसे क्रिकेट के बराबर ला दिया है।  दीपा ने अपनी जिंदगी की तुलना नोटबंदी से करते हुए कहा कि जब-जब हम सीखते हैं, तब-तब हम जीतते हैं।

हार न मान कर जिंदगी में हासिल किया मुकाम
उन्होंने तीन जून 1999 के उस दिन को याद किया जब सेना के दिल्ली स्थित रिसर्च एंड रेफेरल अस्पताल में डॉक्टरों ने एमआरआई के बाद कह दिया था कि उनका ट्यूमर इतना बड़ा है कि सर्जरी के बाद छाती से नीचे का उनका पूरा शरीर अपंग हो जाएगा। उन्होंने कहा कि उस दिन यदि वह हार मान लेतीं तो जिंदगी में यह मुकाम हासिल नहीं कर पातीं। मैंने नये हौसले, नये साहस, नये शरीर के साथ जीना सीखा। जब-जब हम सीखते हैं, तब-तब हम जीतते हैं।

10 साल से डिजिटल भुगतान के माध्यमों का इस्तेमाल कर रही हैं दीपा
पैरालंपियन ने कहा कि यदि उन्होंने बदलाव को नहीं अपनाया होता तो वह जीतती नहीं। इसके तीन चरण होते हैं - पहला, बदलाव को स्वीकार करना, दूसरा, सीखना और तीसरा, खुद को उसके अनुकूल ढालना। हल्के-फुल्के अंदाज में उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद जब कुछ पड़ोसी इस बात पर चिंतित थे कि अब कैसे काम होगा तो वह खुश थीं क्योंकि वह पिछले 10 साल से डिजिटल भुगतान के माध्यमों का इस्तेमाल कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मैंने सोचा, मैं कहीं तो बहुत ज्यादा सक्षम हूं।

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