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खेल डैस्क : 20 जून को जब शुभमन गिल नीले कोट में लीड्स के मैदान पर टॉस के लिए उतरेंगे, तो उनके पिता लखविंदर सिंह और दादा दीदार सिंह का सीना गर्व से चौड़ा होगा। पंजाब के फाजिल्का जिले के चाख खेरा वाला गांव से शुरू हुई शुभमन की कहानी अनुशासन, समर्पण और पारिवारिक त्याग की मिसाल है। नौ साल की उम्र में, जब लखविंदर ने शुभमन के क्रिकेट कौशल को पहचाना, तो उन्होंने मोहाली जाने का जोखिम भरा फैसला लिया। उस समय शुभमन का एकमात्र खिलौना उनके दादा का दिया हुआ बल्ला था।

लखविंदर का एकमात्र लक्ष्य शुभमन को भारतीय टीम तक पहुंचाना था। परिवार ने सामाजिक समारोहों से दूरी बनाई और आरामदायक जीवन छोड़कर शुभमन के क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित किया। लखविंदर ने साल 2018 में कहा था कि हमने सालों तक शादी समारोहों में हिस्सा नहीं लिया ताकि शुभमन का ध्यान न भटके। संसाधनों की कमी नहीं थी; दादा दीदार ने घर के आंगन में पिच बनवाई और लखविंदर परिवार को चंडीगढ़ ले गए।

 

शुभमन की प्रतिभा को 2011 में पूर्व भारतीय गेंदबाज करसन घावरी ने देखा। पंजाब क्रिकेट संघ के शिविर में अंडर-14 मैच के दौरान 12 साल के शुभमन की तकनीक ने उन्हें प्रभावित किया। घावरी की सिफारिश पर शुभमन को पंजाब की अंडर-14 टीम में चुना गया, जहां उन्होंने संदीप शर्मा जैसे गेंदबाजों का सहजता से सामना किया। 2018 में, जब एमएसके प्रसाद की चयन समिति अनमोलप्रीत सिंह को चुनने वाली थी, तब कोच राहुल द्रविड़ की सलाह पर शुभमन को इंग्लैंड दौरे के लिए भारत ए टीम में शामिल किया गया। उसी साल अंडर-19 विश्व कप में शुभमन ने पाकिस्तान के खिलाफ शतक समेत भारत की जीत में अहम भूमिका निभाई।

साल 2019 में वेस्टइंडीज ए के खिलाफ दोहरी शतकीय पारी ने शुभमन को स्थापित किया। टेस्ट में 32 मैचों में 1,893 रन (5 शतक) के साथ उनकी बल्लेबाजी में सुधार की गुंजाइश है, लेकिन उनकी लचीली कला