मुंबई : रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता पहलवान साक्षी मलिक का मानना है कि ओलंपिक पदक जीतने से सिर्फ खिलाड़ी की जिंदगी नहीं बदलती बल्कि इसका असर समाज पर भी पड़ता है जिससे बच्चों के लिए कई मौके बनते हैं। साक्षी रियो 2016 में कांस्य से ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली महिला पहलवान बनी थीं।
साक्षी (31 वर्ष) ने शुक्रवार को मुंबई में कहा कि ओलंपिक का सपना सिर्फ खिलाड़ी का सपना नहीं होता बल्कि यह पूरे परिवार का सपना होता है। ओलंपिक पदक जीतने से सिर्फ खिलाड़ी का जीवन नहीं बदलता है, बल्कि उसके परिवार, समाज और गांव का जीवन भी बदल जाता है। इस पहलवान ने दावा किया कि आठ साल पहले उनके पदक जीतने के बाद से उनके गृह शहर रोहतक में खेल के बुनियादी ढांचों में कई बदलाव हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे पदक जीतने के बाद कई अहम बदलाव हुए। रोहतक में छोटू राम स्टेडियम अब एसी हॉल में बदल गया है। मेरे गांव में एक स्टेडियम भी बनाया गया और उसका नाम मेरे नाम पर रखा गया है।
साक्षी ने कहा कि ओलंपिक पदक कई मौके बनाता है, विशेषकर बच्चों के लिए। जिससे उन्हें बेहतर सुविधाओं में ट्रेनिंग का करने को मिलती है। हरियाणा में कुश्ती का क्रेज बढ़ गया है। विश्व स्तर पर महिला पहलवान अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं और काफी लड़कियां इस खेल को अपना रही हैं। साक्षी ने कहा कि अब लड़कियां साबित कर रही हैं कि वे भी कुश्ती में आगे बढ़ सकती हैं। पेरिस ओलंपिक के लिए भारत के 6 पहलवानों ने क्वालीफाई किया है जिसमें से पांच महिला पहलवान हैं जो विनेश फोगट (50 किग्रा), अंतिम पंघाल (53 किग्रा), अंशु मलिक (57 किग्रा), निशा दहिया (68 किग्रा) और रीतिका हुड्डा (76 किग्रा) हैं। रियो ओलंपिक में पदक से चूकने वाली भारतीय जिमनास्ट दीपा करमाकर भी साक्षी के विचारों से सहमत थीं।
उन्होंने कहा कि 2016 के रियो ओलंपिक के बाद त्रिपुरा में बहुत कुछ बदल गया है। लोगों की सोच थी कि वे जिमनास्टिक में नहीं जा सकते। और अब त्रिपुरा में बहुत कुछ बदल गया। दीपा ने कहा कि उदाहरण के लिए, बुनियादी ढांचा, वॉल्ट, फोम पिट जो बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये पहले नहीं थे। करमाकर के गृहनगर में भी साक्षी की तरह जिमनास्टिक में काफी खिलाड़ी आ रहे हैं और कई ट्रेनिंग सेंटर भी बन गए हैं।