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खेल डैस्क : पटना के मोइन-उल-हक स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी खेल में मुंबई के खिलाफ प्रथम श्रेणी में पदार्पण करते ही वैभव सूर्यवंशी ने इतिहास बना दिया है। वह रणजी में डैब्यू करने वाले सबसे युवा खिलाड़ियों में से एक है। संजीव सूर्यवंशी छह या सात साल की उम्र में मुंबई के मैदानों पर क्रिकेट खेलते आए हैं। उनके पिता संजीव बेटे को यह उपलब्धि मिलती देख बेहद खुश हैं। उन्होंने कहा कि मैं खुद एक क्रिकेट ट्रैजिक था। लेकिन बिहार में क्रिकेट तो क्या, किसी भी खेल के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी। मैं 19 साल की उम्र में मुंबई चला गया और बहुत सारी नौकरियां कीं, जैसे कोलाबा में एक नाइट क्लब में बाउंसर के रूप में काम करना, सुलभ शौचालय में या बंदरगाह पर काम करना। मैं अपने अवकाश के दिन ओवल मैदान में बिताता था। वहां क्रिकेट खेलने वाले छोटे बच्चे पैड और हेलमेट से ढके देखे। उनमें से कुछ तो इतने अच्छे थे कि कोई भी उन्हें घंटों तक देख सकता था। मैंने तभी तय कर लिया था कि चाहे बेटा हो या बेटी, मैं अपने बच्चों को क्रिकेटर बनाऊंगा।


संजीव ने कहा कि मेरे लिए जीवन पूर्ण चक्र में आ गया है। मुंबई में, मैंने इसके बारे में सपना देखा था, और इतने वर्षों के बाद, मेरे बेटे ने मुंबई के खिलाफ पदार्पण किया है। संजीव का कहना है कि मुंबई में 12 साल बिताने के बाद अब वह अपने गृहनगर बिहार के समस्तीपुर लौट आएंगे। उनकी सबसे बड़ी संतान ने क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, लेकिन दूसरे (वैभव) ने बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में तब शुरूआत की जब उन्होंने उसके पांचवें जन्मदिन पर बल्ला लेकर दिया था।

 

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संजीव याद करते हुए कहते हैं कि जन्मदिन के अगले दिन जब अगली सुबह उसे थ्रो-डाउन दे रहा था तो तुरंत एहसास हुआ कि वह स्वाभाविक तौर पर ही अच्छा खेल रहा है। मैं उसे सुधाकर रॉय (भारत के पूर्व अंडर-19 क्रिकेटर अनुकूल रॉय के पिता) द्वारा संचालित एक स्थानीय क्रिकेट शिविर में ले गया और 15 मिनट तक उसे करीब से देखने के बाद, वह सहमत हो गया और कहा, 'ये तो अच्छा है। 


2019 में पटना में अच्छी क्रिकेट अकादमियों के बारे में पूछताछ करते हुए, उनकी मुलाकात कोच मनीष ओझा से हुई। शुरुआत में मनीष, वैभव को कोचिंग देने के लिए तैयार नहीं थे। ओझा याद करते हैं- वह तब बहुत छोटा था। पैड और हेलमेट पहनकर विकेटों के बीच दौड़ते समय वह लड़खड़ा जाता था। लेकिन संजीव ने जोर देकर कहा कि मैं उन्हें व्यक्तिगत कोचिंग दूं। चूँकि वे समस्तीपुर से आये थे, जो कि पटना से 100 किमी दूर है, मैं सहमत हो गया। वह सप्ताह में तीन बार अकादमी आते थे।