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आखिर प्रकृति भी कब तक बर्दाश्त करे। उसने भी जवाब दे दिया। पारा रिकॉर्ड बना रहा है। हालात वाकई में बद से बदतर हो गए हैं। अब भी आम और खास नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब हीट एमरजैंसी लगाना जरूरी होगा। वैसे भी भारत सहित दुनिया के बहुत से इलाकों में हालात ऐसे ही हैं। विकास की होड़ में हमारे द्वारा ग्रीन हाऊस गैसों का अत्यधिक उत्सर्जन, प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहा है। इसका असर कहीं समूची मानवता पर भारी न पड़ जाए। देश भर में कम से कम 50 शहरों में पारे ने 45 डिग्री को पार किया। वहीं दिल्ली के तापमान का 50 डिग्री छू जाना, पूरे देश में सनसनी जैसा था। इस हकीकत को भी स्वीकारना होगा कि यदि कस्बों और गांवों के तापमान का सही-सही आंकड़ा मिले तो साबित हो जाएगा कि प्रचंड गर्मी की तपिश का माहौल देश के आधे से ज्यादा भू-भाग पर आधा जून बीतने के बाद अब भी है जबकि अभी 3-4 दिन देश के कई हिस्सों—पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली सहित अन्य जगहों पर लू का अलर्ट है। 

जिस तरह से खासकर दक्षिण एशिया में इस बार गर्मी अपने अधिकतम रिकॉर्ड पर है, ये हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते। भारत के उत्तर, मध्य और पश्चिम में पारा 48 डिग्री सैल्सियस पार करना भले अब आम है लेकिन बेहद खतरनाक है। शायद हमने प्रकृति के साथ ज्यादा क्रूरता कर दी। जीवाश्म ईंधनों को बेहिसाब जलाकर धरती-आसमान तक का मिजाज बिगाड़ दिया है। लोग क्यों नहीं समझते कि जो तबाही भरी गर्मी है वह प्राकृतिक बिल्कुल नहीं है। तरक्की के नाम और कोयला, तेल तथा गैस ठिकानों द्वारा उत्पादन की होड़ में रात-दिन प्राकृतिक सम्पदाओं का बेहिसाब दोहन अकेला मुख्य कारण है। 

गर्म द्वीप के शहर में तबदील होती दिल्ली के औसत तापमान पर कभी गौर किया है? यह 10 साल में 7 डिग्री बढ़ा है। साल 2014 में मई का औसत तापमान लगभग 30.33 डिग्री के बीच था जो अब कहां पहुंच गया, 40 पार। क्या आपने भी ध्यान दिया कि इस बार मौसम का मिजाज थोड़ा अलग-सा है। जब अप्रैल में हल्की-हल्की गर्मी को दस्तक देनी थी तब अप्रैल-मई के पहले पखवाड़े के बाद तक कभी बादल, कभी पानी तो कभी ठंडी हवाओं के झोंकों ने सुकून पहुंचाया। लेकिन उसके बाद मौसम के बदलते रुख ने सबको हलकान कर दिया। महज मई आखिर से अब तक मौसम के बदले तेवर समझ नहीं आ रहे हैं कि आखिर हुआ क्या। धीर-धीरे बढऩे वाला तापमान ठीक उलट, एकदम ओवन के जैसे कुछ ही घंटों में झुलसाने वाली ऐसी स्थिति में कहां से कहां पहुंच गया? लोग छतों पर कहीं रोटी, कहीं पापड़, कहीं पूरी तो कहीं आमलेट बनाते हुए रील और वीडियो पोस्ट करने लगे। 

चिकित्सा शास्त्री भी मानते हैं कि मानव शरीर और पशु-पक्षी भी एक हद तक तापमान सह सकते हैं। उसके बाद शरीर खुद पर नियंत्रण नहीं कर पाता। कम से कम 48 से 50 डिग्री सैल्सियस में धूप में तो हरगिज नहीं। कुछ भी हो सकता है हृदयाघात से लेकर हृदयगति रुक जाने और गर्मी के दूसरे गंभीर दुष्प्रभाव भी जीवन के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं। सोचिए, जिनका पेट की खातिर भरी धूप या दोपहरी बाहर रहना विवशता है उनका क्या हाल होगा? दिल्ली के राज्यपाल का आदेश कि दिल्ली में मजदूरों को दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक सवैतनिक छुट्टी दी जाए, सराहनीय है। बस पालन सख्ती से हो और प्रचंड गर्मी वाली सारी जगहों पर यह लागू हो। लगता नहीं कि हीट स्ट्रोक और तापमान के बढ़ते रिकॉर्ड के बाद अब लू प्रभावित क्षेत्रों में भी दोपहर 12 बजे से 3 बजे बल्कि शाम 4-5 बजे तक तालाबंदी होनी चाहिए। दफ्तरों का भी मई से जून में बारिश आने तक का शैड्यूल बदलना जरूरी है। लेकिन स्कूली बच्चों के साथ पूरा इंसाफ  सबसे जरूरी है, जिस तरह से पहले 30 जून तक स्कूल बंद रहते थे और बच्चे पूरी तरह से धूप से सुरक्षित रहते थे वही रूटीन फिर से लागू करनी चाहिए। 

यही असली गर्मी की छुट्टी कहलाएगी। हुक्मरानों और माननीयों को मनन करना होगा कि पहले स्कूलों को लेकर 30 जून तक की छुट्टी क्यों की जाती थी। सभी चाहते हैं कि यह व्यवस्था पूरे देश में एक समान रूप से लागू होनी चाहिए। इधर जलवायु परिवर्तन पर आई.पी.सी.सी. यानी अंतर-सरकारी पैनल का दावा है कि बढ़ती हुई ग्लोबल वार्मिंग जो प्राकृतिक आपदा नहीं इंसानी करतूतें हैं, हर 10 वर्ष में आने वाली हीट वेव को वर्तमान से 2.8 गुना बढ़ा रही है। सच में आंकड़ा बेहद चौंकाने वाला व ङ्क्षचताजनक है। कहां हम थोड़ा पहले 1.5 डिग्री सैल्सियस पारा बढऩे को लेकर बेहद चिंतित थे और अब कहां यह डरावना आंकड़ा सामने है।

यदि अब भी तुरंत पर्यावरण विरोधी गैसों के उत्सर्जन को कम करने की दिशा में नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब जल्द ही यह 2 से 3 गुना बढ़ जाएगा। पहाड़ों के बढ़ते तापमान की भी यही वजहें हैं जो काफी चिंताजनक है। मौसम विज्ञानी मानते हैं कि देश में अल नीनो प्रणाली कमजोर हो रही है और ला नीना मजबूत होकर सक्रिय हो रही है। यह अच्छे मानसून की खातिर सुखद स्थिति है। इसी से भारत में मानसून ने कई जगह समय से पहले दस्तक दे दी। चलिए इस बार की गर्मी तो किसी कदर कट जाएगी लेकिन अगली बार के लिए अभी से ही सोचना होगा, वर्ना कहीं देर न हो जाए।-ऋतुपर्ण दवे