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स्पोर्ट्स डेस्क (राहुल): किसी ने सच ही कहा है- बात दूसरे की दिमाग में रखो पर सकारात्मक रूप से। ऐसा ही कुछ किया युवा पहलवान बजरंग पूनिया ने। कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो बड़ी उपब्धियां हासिल कर वो सम्मान हासिल नहीं कर सकते, जिसकी उन्हें उम्मीद होती है आैर वो फिर निराश होकर हार मान जाते हैं। सीधे ताैर पर यह कह लें कि अपनी गेम में नाराजगी के कारण ढीला पड़ जाना। यह बात हम यूं नहीं कह रहे। क्रिकेट के खेल में अक्सर खिलाड़ी ऐसा ही करते हैं। जब उनको सही वेतन ना मिले या फिर बोर्ड से सम्मान ना मिले तो वह खेल छोड़ देने की सीधी धमकी दे देते हैं। लेकिन पूनिया ने जो किया, वह काबिले तारीफ है। 

पूनिया भले ही विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में 'गोल्ड मेडल' जीतने से चूक गए, लेकिन 'सिल्वर मेडल' पाकर भी वह बहुत कुछ हासिल कर गए। उनके लिए 'सिल्वर' जीतना किसी 'गोल्ड मेडल' से कम नहीं। आज पूनिया विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में दो मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं। इससे पहले उन्होंने 2013 में फ्री-स्टाइल कुश्ती के 60 किलोग्राम वर्ग में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इस कामयाबी के पीछे पूनिया की मेहनत तो थी, पर साथ-साथ में खेल मंत्रालय ने भी उन्हें प्रोत्साहन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
  पहलवानी में अपना कद किया आैर बड़ा ...तो क्या अगले साल पूरी होगी पूनिया की इच्छा?, Bajrang Punia

खेल रत्न की मांग नहीं हुई पूरी, फिर की आैर मेहनत 
खिलाड़ियों के लिए बड़ी बात तब होती है, जब उन्हें सरकार द्वारा सम्मानित किया जाता है। खेल में उत्कृष्टता के लिए उन्हें राष्ट्रीय खेल पुरस्कार दिए जाते हैं। इस साल भी खिलाड़ियों को सम्मानित किया गया, पर हर बार की तरह इस बार भी राष्ट्रीय खेल पुरस्कार विवादित रहा। सितंबर महीने के अंत में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा खिलाड़ियों को अवाॅर्ड साैंपे गए। लेकिन पूनिया को करारा झटका लगा। उन्होंने खेल मंत्रालय के पास राजीव गांधी खेल रत्न अवाॅर्ड के लिए नाम भेजा था, पर उन्हें नजरअंदाज किया गया आैर सरकार ने विराट कोहली आैर मीराबाई चानू को खेल रत्न अवाॅर्ड देने की घोषणा कर दी। सूची में नाम नहीं आने पर पूनिया हैरान रह गए। यहां तक कि उन्होंने अदालत तक पहुंचने का मन बना लिया। लेकिन जब कुछ भी हाथ नहीं लगा तो उन्होंने खुद को आैर साबित करने की ठान ली। उन्होंने विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में दम-खम दिखाया आैर 'सिल्वर' जीतकर अपना कद आैर बड़ा कर लिया। 
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...तो क्या अगले साल पूरी होगी पूनिया की इच्छा?
खेल मंत्रालय जो एक खिलाड़ी से अपेक्षा रखता है, वो अब शायद पूनिया ने पूरी कर दी। अब देखना यह बाकी है कि जब अगले साल (2019 में) खिलाड़ियों के नामों की लिस्ट जारी की जाएगी, तो खेल मंत्रालय सरकार के समक्ष राजीव गांधी खेल रत्न अवाॅर्ड के लिए पूनिया के नाम की सिफारिश करती है या नहीं। पूनिया अभी 24 साल के हैं आैर वह अभी आैर भी बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। अगर उनकी इच्छा पूरी होती है तो 2020 में होने वाले टोक्यो ओलिंपिक को लेकर पूनिया के अंदर जो जज्बा दिखेगा, वह शायद माैजूदा समय से ज्यादा दिखाई देगा। वैसे भी पूनिया ने ट्वीट कर जाहिर कर दिया कि वह अब 2020 में देश का नाम राैशन करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
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एक नजर बजरंग की उपलब्धियों पर 
बजरंग पूनिया ने इस साल कॉमनवेल्थ गेम्स आैर एशियाई खेल में 'गोल्ड मेडल' आैर विश्व कुश्ती चैम्पियनशिप में 'सिल्वर' पर कब्जा जमाया था। वहीं, इससे पहले वह नई दिल्ली में हुए एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमा चुके हैं। उन्होंने 2013 वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी कांस्य पदक जीता था।