मैच जीतकर अंग्रेजों से लिया था बदला

Edited By pooja verma,Updated: 13 Aug, 2018 11:51 AM

took revenge after winning match from british

70 साल पहले पहली बार इंडिया से बाहर 12 अगस्त, 1948 को इंगलैंड में हुए ओलिम्पिक गेम्स में गोल्ड मैडल जीत भारतीय हॉकी प्लेयर्स ने इतिहास रचा था।

चंडीगढ़ (लल्लन): 70 साल पहले पहली बार इंडिया से बाहर 12 अगस्त, 1948 को इंगलैंड में हुए ओलिम्पिक गेम्स में गोल्ड मैडल जीत भारतीय हॉकी प्लेयर्स ने इतिहास रचा था। जीत इतनी शानदार थी कि इंगलैंड की महारानी ने खुद ग्राऊंड में आकर भारतीय खिलाडिय़ों को सैल्यूट किया था। रविवार को उसी ऐतिहासिक दिन के 70 वर्ष पूरे हुए। 

 

इस जीत के हीरो रहे हॉकी लीजेंड बलबीर सिंह सीनियर की पलकें उन पलों को याद करके आज भी भीग गई। प्रैस क्लब में मीट द प्रैस प्रोग्राम में उन्होंने वो लम्हे दोहराए जब हर भारतीय का सीना गर्व से फूला था। 70 साल पहले आज के दिन जब तिरंगा इंगलैंड की हवाओं में हिंदोस्तान की कामयाबी की कहानी कहते हुए लहरा रहा था तो खुश होकर आसमान ने बूंदें बरसार्ईं थीं। 

 

रविवार को भी जब बलबीर सिंह सीनियर ने यहां तिरंगा फहराया तो फिर बूंदें बरसने लगी। प्रैस क्लब में जब बलबीर सिंह सीनियर फतेह की दास्तां सुना रहे थे तो हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए था। फिल्म फ्लैश ब्लैक में चल रही थी और सबकी आंखों के आगे वही मंजर तैर रहे थे। 

 

आप भी उनके शब्दों में सुनिए उस महामुकाबले की कहानी। यकीनन लफ्जों में आपको इंडियन प्लेयर्स के जूतों की धमक, बॉल को गोल में बदलती हॉकी स्टिक्स की आवाजें, रगों में खून के साथ दौड़ते जज्बे और दर्शकों के दिलों की धड़कनें सुनाई देंगी...  

 

लंदन ओलिम्पिक हमारे लिए अग्नि परीक्षा थी
मुझे ऐसा लगता है कि यह कल की ही बात है। वैसे तो पहले तीन ओलिम्पिक (1928, 1932, 1936) में गोल्ड मैडल जीते थे लेकिन वे ब्रिटिश इंडिया और इंगलैंड के झंडे के नीचे जीते गए थे। 1947 में भारत विभाजन के साथ आजाद हुआ था। अगले ही वर्ष हमारी हॉकी टीम अंग्रेजों की धरती पर पहुंची। हमारी टीम को कोई भी देश गंभीरता से नहीं ले रहा था क्योंकि बंटवारे के बाद टीम टूट चुकी थी। 

 

कई खिलाड़ी पाकिस्तान चले गए थे। 1948 लंदन ओलिम्पिक हमारे लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं था। अर्जेंटीना उस समय की सबसे खतरनाक टीमों से एक हुआ करती थी। जब हम उसके खिलाफ उतरे तो सबने सोचा था कि हमारा सफर यहीं खत्म हो जाएगा लेकिन फिल्म बाकी थी। उस मैच को हमने 9-1 के अंतर से जीता। मैंने हैट्रिक सहित 6 गोल दागे थे। लीग के तीनों मैच जीतने के बाद टीम ने नीरदलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल खेला जिसमें हमने 2-1 से जीत हासिल की। 

 

जब ग्राऊंड में खेलने उतरे तो जहन में ताजा थी गोरों के जुल्म की दास्तां 
12 अगस्त, 1948 को लंदन ओलंपिक का फाइनल मुकाबले में हमें इंगलैंड से भिडऩा था। ग्राऊंड में कदम रखते वक्त अंग्रेजों के जुल्म की दास्तां जहन में ताजा थी। मैच के 7वें और 15वें मिनट में मैंने दो गोल कर अपनी टीम को 2-0 से बढ़त दिला दी। इसके बाद एक गोल टीम इंडिया को पैनल्टी कॉर्नर से मिला, जबकि एक गोल भारतीय टीम के खिलाड़ी जेनसन ने किया। 

 

हमने इंगलैंड को एक भी गोल नहीं करने दिया था। चौथा गोल करते ही हर भारतीय का सीना हॉकी का ग्राऊंड बन गया। इंगलैंड को उसी की सरजमीं पर 4-0 से धूल चटाकर हमने बदला पूरा कर लिया। तिरंगा शान से लहरा उठा। राष्ट्रीय गान गूंज रहा था और दुनिया बस आंखें फाड़कर हम भारतीयों के जादू को देखती रही। हमारी जीत के बाद खुद इंगलैंड की महारानी को हमारे सम्मान में खड़ा होना पड़ा था। इसे देखकर सीना और भी चौड़ा हो गया था। 

 

खेलों पर फिल्में बनना बेहद सराहनीय
खेलों पर फिल्म बनने से जहां खेल प्रोमोट हो रहे हैं, वहीं युवा खिलाडिय़ों को भी यह पता चलता है कि एक स्टार खिलाड़ी बनने के लिए कितनी मेहनत की जरूरत हैं। इस कार्यक्रम के बाद वे हॉकी पर बनी अक्षय कुमार की फिल्म की स्क्रीनिंग के लिए मुंबई रवाना हो गए। 

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