भारतीय चुनावों में ‘ए.आई.’ का प्रवेश और इसके खतरे

Edited By ,Updated: 08 Apr, 2024 05:25 AM

entry of ai in indian elections and its dangers

इन दिनों भारत में चुनावों का शोर है और समाचारों के अनुसार अनेक डीपफेक कंटैंट और फेक न्यूज आने के साथ ही आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) द्वारा बनाए गए विभिन्न राजनीतिज्ञों के वास्तविक और कृत्रिम डीपफेक भी आने शुरू हो गए हैं।

इन दिनों भारत में चुनावों का शोर है और समाचारों के अनुसार अनेक डीपफेक कंटैंट और फेक न्यूज आने के साथ ही आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस (ए.आई.) द्वारा बनाए गए विभिन्न राजनीतिज्ञों के वास्तविक और कृत्रिम डीपफेक भी आने शुरू हो गए हैं। ऐसे ही एक डीपफेक वीडियो में स्व. एम. करुणानिधि अपनी पार्टी के सदस्यों को संबोधित करते हुए दिखाई दे रहे हैं जबकि उनके पुत्र तथा तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन उन्हें निहार रहे हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा चेन्नई में एक जनसभा को संबोधित करने का तमिल ‘डब’ भी बनाया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश के नेताओं शिवराज सिंह चौहान और कमल नाथ के वीडियो भी छेड़छाड़ करके उनके साथ जोड़ी गई टिप्पणियों के साथ देखने में आ रहे हैं। इसी तरह की एक फेक वीडियो केजरीवाल की भी देखने में आ रही है जोकि उनकी गिरफ्तारी होने के बाद की है। 

चार वर्ष पहले, जब भाजपा नेता मनोज तिवारी ने एक वीडियो संदेश का कम रैजोल्यूशन वाला हरियाणवी डब जारी किया था, के बाद से ए.आई. द्वारा चुनाव प्रचार के लिए बनाए गए सिंथैटिक चित्र और वीडियो बनाना काफी सस्ता और बेहतर हो जाने के कारण चुनाव प्रचार में ए.आई. तथा डीपफेक को लेकर चिंता काफी बढ़ गई है। सस्ते मोबाइल डाटा और भारत में स्मार्टफोन की सबसे अधिक पहुंच के साथ-साथ यह ङ्क्षचता पैदा हो गई है कि व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से प्रसारित होने वाले वास्तविक जैसे महत्वपूर्ण डीपफेक मतदाताओं तथा उम्मीदवारों को भ्रमित करके उनके बीच कटुता पैदा कर सकते हैं या उन्हें इस हद तक विश्वास दिला सकते हैं कि उनका वोट निरर्थक हो सकता है। इसी कारण हाल ही में आई.टी. मंत्रालय ने ए.आई. कम्पनियों से कहा है कि उन्हें भारतीय उपयोगकत्र्ताओं को अंडर टेस्टिंग या अविश्वसनीय ए.आई. सिस्टम पेश करने से पूर्व अनुमति लेनी होगी और उस सामग्री बारे स्पष्ट रूप से बताना होगा कि अमुक सामग्री अविश्वसनीय है। उन्हें भारतीय कानून के अंतर्गत अवैध मानी जाने वाली या कोई ऐसी सामग्री भी पेश नहीं करनी होगी जिससे चुनावी प्रक्रिया की अखंडता खतरे में पड़ सकती हो। 

ऐसा इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि हाल ही में टैक्नोलॉजी कम्पनी माइक्रोसाफ्ट ने एक चेतावनी जारी करके कहा है कि चीन इस वर्ष उत्तर कोरिया की भागीदारी के साथ अपने साइबर समूहों द्वारा ए.आई. से निर्मित कंटैंट का इस्तेमाल करके भारत, दक्षिण कोरिया और अमरीका में होने वाले चुनावों में हेरफेर करने की कोशिश करेगा। इससे पहले ताईवान में वह ऐसा परीक्षण कर चुका है। जनवरी में चीन ने ताईवान के राष्ट्रपति के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश की थी जो किसी दूसरे देश द्वारा समर्थित इकाई के द्वारा विदेशी चुनाव को प्रभावित करने के लिए ए.आई. कंटैंट के इस्तेमाल का पहला उदाहरण है। ‘स्टोर्म 1376’ नाम से जाना जाने वाला बीजिंग समर्थित ग्रुप ताईवानी चुनाव के दौरान कुछ उम्मीदवारों को बदनाम करने के लिए ए.आई. द्वारा तैयार किए गए मीम्स तथा आडियो कंटैंट का प्रसार कर रहा था। ‘माइक्रोसाफ्ट’ को आशंका है कि चीन इन चुनावों को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए ए.आई. जैनरेटिड कंटैंट बनाकर इंटरनैट पर फैलाएगा जो आने वाले समय में प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है। 

यहां उल्लेखनीय है कि शुरू-शुरू में जब भी विश्व में कोई नई तकनीक आती है, तो यही कहा जाता है कि यह तो टिकेगी नहीं, जिस प्रकार विकीपीडिया या सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्मों के विषय में कहा गया था, परंतु वे आज भी कायम हैं। यही बात ए.आई. पर भी लागू होती है। यह एक बहुत अच्छी तकनीक है परंतु अभी तक पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई है, अत: पूर्णत: विकसित न होने के बावजूद इसके बारे में सबसे खतरनाक बात यह है कि इसके अंतर्गत क्या किया जा सकता है और क्या नहीं तथा इसका दुरुपयोग रोकने के लिए भी कोई मशीनरी अभी तक नहीं बनाई गई है। जैसा कि टेस्ला कंपनी के सह-संस्थापक और सी.ई.ओ. एलन मस्क ने कहा है कि यह तकनीक तो मानवता को नष्टï कर देगी। यदि हम इतने नकारात्मक ढंग से न भी सोचें तो इतना तो सोच ही सकते हैं कि यदि इस पर रोक नहीं लगी या इसके संबंध में कोई सिद्धांत नहीं बनाए गए तो यह सबके लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है। 

इसे इस तरह समझा जा सकता है कि आज तक अमरीकी चुनावों में जो गड़बड़ चीन की ओर से की गई, उसका आज तक खुलासा नहीं हो पाया है परंतु गड़बड़ तो हुई थी। पिछले एक वर्ष के दौरान पाकिस्तान और बंगलादेश में भी ए.आई. द्वारा विरोधी दल के राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया था और यहां तक कि जिस पर उन्हें खंडन जारी करने पड़े थे। एक चिंता की बात यह भी है कि आज अनेक सिंथैटिक मीडिया क्रिएटर कायम हो गए हैं जो बाकायदा स्टाफ रख कर विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी लैपटॉप पर ‘विश्वसनीय’ डीपफेक बना सकता है।

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