हौंसले को सलाम: ‘जग बाणी’ की खबरें सुन नेत्रहीन बन गया शतरंज का धुरंधर

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2015 11:43 AM

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शतरंज के खेल में हाथी-घोड़ों, राजा-वजीर व सैनिकों की सीधी व आड़ी-तिरछी चालों से शह-मात तक का खेल किसी सामान्य व्यक्ति के लिए भी आसान नहीं है

सोलन : शतरंज के खेल में हाथी-घोड़ों, राजा-वजीर व सैनिकों की सीधी व आड़ी-तिरछी चालों से शह-मात तक का खेल किसी सामान्य व्यक्ति के लिए भी आसान नहीं है लेकिन अगर कोई नेत्रहीन इस खेल में धुरंधर हो तो विश्वास करना मुश्किल है। ऐसा ही धुरंधर है नेत्रहीन शतरंज का माहिर संदीप मिन्हास जिसने हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में चल रहे राज्य स्तरीय मेले में आयोजित नार्थ जोन शतरंज प्रतियोगिता में सीनियर ओपन वर्ग में 2 खिलाडिय़ों को शिकस्त दी। 

‘पंजाब केसरी’ से बातचीत में खिलाड़ी ने बताया कि उसे शतरंज खेलने की प्रेरणा ‘जग बाणी’ समाचार पत्र से मिली। उसने बताया कि 10 वर्ष की उम्र में आंखें खोने के बाद उसके माता-पिता ‘जग बाणी’ में छपी स्पोटर्स की खबरें पढ़कर सुनाते थे और शतरंज पर आधारित खबरें उनकी प्रेरणा की स्रोत बनी हैं। वह फीडे रेटिड राष्ट्रीय खिलाड़ी है व राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी 5 खिलाडिय़ों को शिकस्त देकर यह उपलब्धि हासिल की थी। 
 
10 वर्ष तक ठीक थी आंखें 
चैस चैम्पियन संदीप मिन्हास लुधियाना (पंजाब) के रहने वाले हैं और 10 वर्ष तक उनकी आंखें ठीक थीं। इसके बाद नर्व सिस्टम डैमेज होने से धीरे-धीरे उनकी आंखें चली गईं। उस समय वह 5वीं कक्षा में पढ़ते थे। इसके बाद उन्होंने मालपुर लुधियाना स्थित नेत्रहीन संस्थान से पढ़ाई पूरी की व यहीं उन्होंने शतरंज की चालों में महारत हासिल की। मिन्हास ने बताया कि पिता प्रकाश सिंह मिन्हास आर्मी से सेवानिवृत्त हैं व माता संतोष गृहिणी हैं। वह नगर परिषद साहनेवाल में निरीक्षक के पद पर तैनात हैं। साथ ही साथ पंजाब विश्वविद्यालय के लुधियाना रीजनल सैंटर में ईवनिंग कालेज में पढ़ाई भी कर रहे हैं। 

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