अर्जुन के तीर: आप पर हमलावर इलैक्ट्रानिक मीडिया, जैसे ठोकने की सुपारी ले ली हो

Edited By ,Updated: 14 Mar, 2015 09:57 AM

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बीते रोज से जब पौने दो लाख करोड़ के कोल घोटाले के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न्यायालय ने निजी तौर पर तलब होने का आदेश दिया,

(अर्जुन शर्मा): बीते रोज से जब पौने दो लाख करोड़ के कोल घोटाले के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को न्यायालय ने निजी तौर पर तलब होने का आदेश दिया, तब इस खबर के इलैक्ट्रानिक मीडया में प्रसारित होने के बाद मुझे लगा कि टीवी वालों को बहुत बड़ा मुद्दा मिल गया है। मेरा अपने लंबे पत्रकारीय अनुभव के चलते यह अंदाजा था कि कमसे कम एक हफ्ता तो मनमोहन की बांसुरी बजेगी। इलैक्ट्रानिक मीडिया में इस विषय पर कई अड्डे जमेंगे, कई चर्चाएं होंगी व कई तरह की डिबेट चलती रहेगी। पर मेरा अंदाजा गलत निकला। उसके बाद एक ऐसी सरकार बनाने की कोशिशों पर सारे कार्यक्रम फोकस हो गए जो सरकार कभी बन ही नहीं पाई। एक ऐसे गोलू गवाह के बयान पर आम आदमी पार्टी की खाल उतारी जाने लगी जो पिछले छह महीने से एक स्टिंग का शोर मचा रहा है पर दिखा एक बार भी नहीं पाया। 

एक तरफ दो सौ के करीब मुफ्त में आबंटित की गई देश की कोयला संपदा का मामला जिसे रद्द किये जाने के बाद मात्र 18 ब्लाकों के आबंटन से राष्ट्र को दो लाख करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ। उस मुफ्त बांट पर फाईनल मोहर लगाने वाले देश के सबसे ईमानदार रहे प्रधानमंत्री को अदालत ने इस महांघोटाले में बराबर का जिम्मेवार माना हो डिबेट उस मामले पर होनी चाहिए कि एक ऐसी सरकार, जो कभी बन भी नहीं पाई। और उस कोशिश के बाद हुए दोबारा चुनावों का परिणाम भी आ चुका है तथा एक पार्टी ने सत्तर में से 67 सीटों को जीत भी लिया है। दफन हो चुके एक दौर के वो छिल्के उतारना जिसमें से कुछ भी नहीं निकलेगा। इसे इलैक्ट्रानिक मीडिया के कर्णधारों की मूर्खता माना जाए या ये माना जाए कि आप के छिलके उतारने की ली गई सुपारी का भुगतान हो रहा है। 

भारतीय समाज की एक मानसिकता है। पारंपरा वादी लोग बाकी चाहे जिसे भी बर्दाश्त कर लें पर परंपरा से हट कर नई लकीर खींचने वाले कभी परंपरावादियों को फूटी आंख भी नहीं भाते। आम आदमी पार्टी ने असल में राजनीति की स्थापित मान्यताओं व परंपराओं को कड़ी चुनौती पेश की। ऊपर से कोढ़ में खाज वाली बात ये हो गई कि आम जनमानस के मन की बात समझ कर चुनावी सर्वे जैसे तमाशे करने वाले जादूगर बने इलैक्ट्रानिक चैनलों के सारे सर्वे पिट गए। जिस भाजपा को दिल्ली में 25 से 30 सीटें दे रहे थे सर्वे वाले वो तीन तक सिमट गई। जिस कांग्रेस को सात से दस की संभावना पेश की जा रही थी उसे मिला काीरो अंडा वो भी 70 में से 63 सीटों पर जमानत जब्ती जैसे शर्मनाक सबक के साथ। जिस आप की मुश्किल से सरकार बनाते सर्वे आए थे वो 96 फीसदी सीटें ले उड़ी। ये इलैक्ट्रानिक चैनलों की धोखाधड़ी थी। चुनावी दौर में लोगों की उत्सुकता को वक्ती तौर पर संतुष्ट करने के मौके का फायदा उठाते हुए अपने अपने चैनल की टी.आर.पी बढ़ाने के लिए समाचारों को चटपटे व्यंजन बना कर बेचा गया। जब मेला खत्म हुआ तो सारे गप्पी साबित हुए। मैं किसी वकील से मश्विरा करना चाहता हूं कि क्या चैनलों का इस प्रकार का झूठ उपभोक्ता अदालत में चुनौती योज्य है? 

बहरहाल अब जब उन्हें स्पष्ट बहुमत मिल चुका है तो उन्हें काम करने दो। यदि आप के सारे नेता चैनलों के दफ्तरों में बैठ कर इन उथले सवालों के जवाब देने में अपना समय व ऊर्जा नष्ट करेंगे तो दिल्ली की जनता के लिए काम कैसे कर पाएंगे। सच तो ये है कि भाजपा व कांग्रेस के दिल्ली में सियासी युद्ध में जख्मी हुए योद्धाओं से ये बर्दाश्त ही नहीं हो रहा कि ये कल के छोकरे इतना बड़ा सियासी मैदान मार गए व उन्हें करारी हार का दंश झेलने को न केवल मजबूर कर गए अलबत्ता दूसरे प्रदेशों में भी भड़थू पाने की तैयारी कर रहे हैं। इलैक्ट्रानिक चैनलों से सही खबर की किसी को आशा नहीं करनी चाहिए क्योंकि जो दिखाया जा रहा है वो पत्रकारिता के दृष्टिकोण से नहीं एंटरटेनमेंट हैड के टी.आर.पी ग्रसित मनोविज्ञान पर आधारित है। खबर में खबर पांच फीसदी व एंटरटेनमेंट 95 फीसदी। ये फार्मूला है।                                                                                                                                                              

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