बच्चे का व्यक्तित्व निखारने में मदद करती है मां

Edited By ,Updated: 22 Jul, 2015 06:08 PM

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जब किसी सब्जी वाले का बेटा यू.पी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करता है या किसी अशिक्षित मजदूर मां की बेटी शिक्षिका बन जाती है, तो उसे उस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे ज्यादा भूमिका मां की ही रहती है ...

पढ़ाई में मां की भूमिका
जब किसी सब्जी वाले का बेटा यू.पी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करता है या किसी अशिक्षित मजदूर मां की बेटी शिक्षिका बन जाती है, तो उसे उस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे ज्यादा भूमिका मां की ही रहती है । सपने भले ही पिता की आंखें देखती हों परंतु अपने बच्चों को पढ़ने के लिए मां ही प्रेरित करती है ताकि  बच्चा परीक्षा में मात न खाए । बच्चों को हर रोज नियमित पढ़ाई के लिए टाइम टेबल भी तो एक मां ही बना कर देती है जो  धीरे-धीरे उसकी आदत बन जाता है कि उसे घर पर 4-5 घंटे पढ़ाई को देने हैं । यदि वह किसी विषय में उसकी मदद नहीं कर पाती तो उसके लिए ट्यूशन के पैसे बचाने के लिए वह ही तो घर के खर्च में कटौती करती है ।

नींव करती है मजबूत
एक समझदार मां अपने बच्चों की शुरू से ही पढ़ाई में मदद करती है । स्कूल में शिक्षिका के साथ-साथ वह घर पर उसे गृह कार्य कराते हुए प्यार और दुलार के साथ विषयों पर बच्चों की नींव मजबूत करती जाती है। अक्षरों की बनावट सिखाने के साथ-साथ वह उसे याद करना भी सिखाती है, ताकि उसका बच्चा पढ़ाई के क्षेत्र में आगे रहता हुआ हमेशा अव्वल ही आए ।

मित्र मंडली पर पूरी नजर
मां ही तो जानती है कि उसके किशोर उम्र के बच्चों की मित्र मंडली पर भी उसे पैनी नजर रखनी है क्योंकि उम्र के इसी दौर में होशियार बच्चे भी पिछड़ जाते हैं । इस  उम्र में दोस्तों से बिना वजह बातें करना तथा घूमने निकल जाना किशोरों को बेहद भाता है । पढ़ाई से दिल चुराना और फ्रैंड ग्रुप में स्टडी के नाम पर अपने अमूल्य समय को व्यर्थ गंवा देना या गलत आदतों में पड़ जाना किशोरों की मुख्य  समस्याएं होती हैं । ऐसे में एक मां ही यह देखती है कि बच्चों के कदम किस ओर उठ रहे हैं और उसे सही दिशा कैसे दिखानी है। यदि मां की समझदारी ने बच्चों को इस उम्र में संभाल लिया तो ऐसे बच्चे  सफलता की राह पर अग्रसर होते हुए अपना मुकाम सहजता से पा लेते हैं ।

नहीं देखती दिन और रात 
यह तो हम सभी जानते हैं कि आज स्कूलों की पढ़ाई उतनी आसान नहीं है । छोटी कक्षाओं से ही लंबे सिलेबस के कारण बच्चों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है । वह जानती है कि छोटे बच्चे रात को नहीं जाग सकते, इसलिए वह उन्हें शाम को ही उनका गृह कार्य कराने में मदद करती है । भले ही उसे उस समय कितने ही काम क्यों न हों, वह उन्हें दरकिनार करने में भी नहीं हिचकती । किशोर उम्र के बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए अक्सर रात्रि का वक्त चुनते हैं ताकि उन्हें  उस समय कोई डिस्टर्ब न करे परंतु मां ही ऐसी शख्सियत है, जो उस समय भी उन के साथ रात-रात भर जागती है पढऩे वाले बच्चों को कभी नींद भगाने के लिए वह मुंह-हाथ धोने की सलाह देती है, तो कभी चाय बना कर लाती है । किसी विषय पर अटके हुए देखती है तो कुछ देर के लिए आंखें बंद कर हर विषय पर सोचना बंद कर देने को कहती है, ताकि दिमाग को आराम मिले और बच्चा तरोताजा महसूस करते हुए नए सिरे से उस विषय को समझ सके । 

बच्चों को भी लगता है कि यदि मां उन के कारण अपनी नींद का त्याग कर पूरी तरह से फ्रैश नजर आते हुए उनके लिए जाग सकती है, तो  वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी नींद कुर्बान क्यों नहीं कर सकते ? वास्तव में मां ऐसा इसलिए भी करती है ताकि बच्चों को इस बात का एहसास रहे कि वह हर कदम पर उस के साथ है । स्कूल टाइम से पड़ी रात को पढ़ने की आदत उसे आगे चल कर बड़ी कक्षाओं में  कड़ी मेहनत करने को प्रेरित करती है । कॉलेज की परीक्षा से ले कर प्रतियोगी परीक्षाओं तक की तैयारी ऐसे बच्चे आसानी से कर लेते हैं जिनकी मांएं हर समय उनके साथ होती हैं ।

संवर जाती है हस्ती
यूं ही नहीं कहा जाता कि एक शिक्षित नारी ही आने वाली पीढ़ियों में शिक्षा का उजाला भरती है । यदि हम एक पीढ़ी पीछे जाकर देखें, तो कितनों की ही दादी-नानी ऐसी होंगी, जो स्वयं कभी स्कूल नहीं जा पाईं, परंतु शिक्षा के महत्व को समझते हुए उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए इस तरह से प्रेरित किया कि फिर उनके परिवार में डॉक्टर, वकील, इंजीनियर या फिर अन्य उच्च पदों तक बच्चेे पहुंच गए । उन्होंने अपने बच्चों की हस्ती को तो संवारा ही, साथ ही आने वाली पीढ़ियों को भी तरक्की का रास्ता दिखा दिया कि उन्होंने आगे अपने बच्चों के भविष्य को किस तरह से संवारना है। 

-हेमा शर्मा, चंडीगढ़

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