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नई दिल्ली : भारत ने अंडर-19 क्रिकेट विश्व कप मुकाबले में पाकिस्तान को 10 विकेट से करारी हार देकर फाइनल में जगह बना ली है। जहां गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान को 172 पर रोक दिया। वहीं भारत की तरफ से ओपनिंग करने वाले यशसवी जायसवाल ने 105 रन की शानदार पारी खेली। मैन आफ द मैच रहे जायसवाल के मुताबिक उनको ये पारी हमेशा यादगार रहेगी। हालांकि जायसवाल के लिए यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। क्रिकेट के क्षेत्र में संघर्ष करते हुए उन्होंने कई सातों तक भूूखे गुजारी हैं। यहां तक की इस क्षेत्र में कुछ कर दिखाने के लिए उन्होंने गोलगप्पे भी बेचे। लेकिन इसके बावजूद वह रूके नहीं और मेहनत करते गए, इसी का नजीता है कि उन्होंने आज पाकिस्तान के खिलाफ अपनी पारी को यादगार बना दिया। 

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तीन साल तक टेंट में रहा और भूूखे पेट गुजारी रातें 

यशस्वी मुंबई के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के गार्ड के साथ तीन साल तक टेंट में रहा। यशस्वी इससे पहले डेयरी में काम करता था जहां उसने भूखे पेट कई रातें गुजारीं लेकिन वहां से उसे भगा दिया गया। यशस्वी उस वक्त 11 साल का था। उसने ये मुश्किल वक्त सिर्फ एक सपने के सहारे काट लिया और वो सपना था एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलना। खैर, यह बात रही 6 साल पुरानी, लेकिन वह यशस्वी 17 साल का हो गया है आैर वह भारत की अंडर-19 के लिए खेलने के लिए तैयार है। 

मुंबई के अंडर-19 कोच सतीश समंत ने यशस्वी के बारे में बताते हुए कहा, "उसका फोकस और खेल की समझ कमाल की हैष "दो भाइयों में छोटा यशस्वी उत्तर प्रदेश के भदोही का रहने वाला है। उसके पिता वहीं एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। यशस्वी, कम उम्र में ही क्रिकेट का सपना लेकर मुंबई पहुंच गया था। उनके पिता के लिए परिवार को पालना मुश्किल हो रहा था इसलिए उन्होंने एतराज़ भी नहीं किया। मुंबई में यशस्वी के चाचा का घर इतना बड़ा नहीं था कि वो उसे साथ रख सकें। इसलिए चाचा ने मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से अनुरोध किया कि वो यशस्वी को टेंट में रहने की इजाज़त दें। 

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यशस्वी ने बताया, "इससे पहले मैं काल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और सो जाता था. एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता।" अगले तीन साल के लिए वो टेंट ही यशस्वी के लिए घर बन गया. पूरी कोशिश यही होती कि मुंबई में उनकी संघर्ष से भरी ज़िंदगी की बात मां-बाप तक नहीं पहुंचे। अगर उनके परिवार को पता चलता तो क्रिकेट करियर का वहीं अंत हो जाता। उनके पिता कई बार पैसे भेजते लेकिन वो कभी भी काफी नहीं होते। राम लीला के समय आज़ाद मैदान पर यशस्वी ने गोल-गप्पे भी बेचे। लेकिन इसके बावजूद कई रातों को उन्हें भूखा सोना पड़ता था। 

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यशस्वी ने संघर्ष के दिन याद करते हुए कहा, "राम लीला के समय मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी. मैं यही दुआ करता था कि मेरी टीम के खिलाड़ी वहां न आएं, लेकिन कई खिलाड़ी वहां आ जाते थे। मुझे बहुत शर्म आती थी।  सभी खिलाड़ी अपने घर से खाना लाते आैर मुझे टेंट से दो समय का खाना मिलता था। लेकिन कई बार भूखे भी सोना पड़ा क्योंकि खुद रोटियां बनानी पड़ती थीं।