नई दिल्लीः ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में जारी कॉमनवेल्थ गेम्स में गुरुवार को भारतीय कुश्ती दल के पहलवान राहुल अवारे ने 57 किग्रा वर्ग में गोल्ड जीता है। महाराष्ट्र के बीड़ जिले के छोटे से गांव पतारी से आने वाले राहुल का कॉमनवेल्थ तक का सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। कुश्ती के लिए राहुल को सिर्फ 10 साल की उम्र में अपना घर छोड़ना पड़ा और वे पुणे आ गए। एक साधारण किसान परिवार से आने वाले राहुल को हर महीने तकरीबन 5 से 10 हजार रुपए की जरुरत होती थी, जिसे उनके पिता ने बड़ी मुश्किलों से पूरा किया। राहुल की जीत के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल है।
राहुल का शानदार प्रदर्शन
27 साल के राहुल का यह पहला कॉमनवेल्थ गेम्स का पहला गोल्ड मेडल है। इससे पहले वे कॉमनवेल्थ यूथ गेम्स 2008 में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। राहुल ने मेलबर्न कॉमनवेल्थ रेसलिंग चैंपियनशिप में 57 किलो में गोल्ड मेडल जीता था। इसके अलवा एशियन रेसलिंग चैंपियनशिप में के 57 किलों में देश को ब्रॉन्ज मेडल दिला चुके हैं। इससे पहले राहुल ने साल 2004 के राष्ट्रीय ग्रामीण स्कूल कुश्ती प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक, साल 2005 और 2006 के महाराष्ट्र केसरी राज्य कुश्ती में स्वर्ण पदक। वे साल 2009 विश्व जूनियर कुश्ती में रजत पदक और 2010 एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम कर चुके हैं।
गांव में जश्न का माहौल
राहुल की जीत के बाद से उनके गांव में जश्न का माहौल है। उनके परिवार को बधाई देने के लिए दूर-दूर से लोग उनके घर आ रहे हैं। राहुल के भाई ने बताया कि जीत के बाद राहुल ने घर पर फोन किया था और पिताजी से बात भी की थी। पूरे परिवार ने उनके लौटने पर जश्न मनाने की बात कही है।
सिर्फ 7 साल की उम्र में शुरू हुआ कुश्ती का सफर
राहुल की जीत पर खुशी जताते हुए राहुल के बड़े भाई गोकुल अवारे ने उनके कुश्ती के सफर को विस्तार से बताया। गोकुल ने बताया, "हमारे पिता बालासाहब अवारे भी स्टेट लेवल कुश्ती चैंपियन थे। लेकिन वे ज्यादातर अखाड़े में ही कुश्ती लड़ा करते थे। उन्होंने अपने नाम कई देसी खिताब दर्ज किए। लेकिन उनका हमेशा से सपना रहा की उनके बच्चे देश के लिए मैडल लेकर आए। इसलिए उन्हें राहुल को 7 साल और मुझे 9 साल की उम्र में कुश्ती खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।"
आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा
गोकुल ने बताया, "राहुल के पुणे में रहने का हर महीने का खर्च 5 से 10 हजार के बीच आता था। हम एक ऐसे गांव से आते हैं जहां सालभर लगभग सूखे की स्थिति रहती है। इस कारण पानी के अभाव में फसल या तो बर्बाद हो जाती है या फिर बहुत कम होती है। इसलिए राहुल के पुणे में रहने का खर्च उठाना पिता जी के लिए बेहद कठिन रहा। कई बार तो उन्होंने लोगों से उधार लेकर राहुल का खर्चा भेजा। लेकिन राहुल ने परिवार की परेशानियों को समझा और हमें कभी निराश नहीं किया।"