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नई दिल्ली: विश्व कप 2019 के भारत के पहले मैच में महेंद्र सिंह धोनी के कीपिंग दस्तानों पर बलिदान प्रतीक चिन्ह को लेकर विवाद हो गया है।  आईसीसी ने बलिदान चिन्ह को लेकर आपत्ति जताते हुए बीसीसीआई से धोनी के दस्तानों से ‘बलिदान चिह्न’ को हटाने को कहा है। ऐसा पहली बार नहीं है कि धोनी ने इस चिह्न का इस्तेमाल किया हो। इससे पहले धोनी मैदान के बाहर इस चिह्न का इस्तेमाल करते रहे हैं। विवाद होने के बाद सोशल मीडिया पर जबर्दस्त प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। सभी यूजर्स ने पूर्व कप्तान एमएस धोनी की तारीफ की तो किसी ने आईसीसी पर भेदभाव करने का आरोप लगाया। किसी ने इसी बहाने अंपायरों को सही ढंग से अंपायरिंग करने की नसीहत दे दी। ट्विटर पर कई ट्रेंड चले। सबसे ज्यादा हैशटैग वो चला जिसमें धोनी से इन दस्तानों को पहने रखने की अपील (धोनी कीप द ग्लव) की गई थी। इस मामले पर कुछ खास लोगों द्वारा इस तरह टिप्पणी की गई:- 

क्रिकेट के बड़े विवाद   

हैंसी क्रोनिए का मामला 
1990 के दशक में हैंसी क्रोनिए दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट टीम का बड़ा चेहरा थे। वह टीम के कप्तान थे। उन पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे और इस घटना ने क्रिकेट की दुनिया को हिलाकर रख दिया था। पता चला था कि क्रोनिए ने बुकी से रकम ली थी। इस घटना से अपमानित होकर क्रोनिए ने कप्तानी छोड़ दी थी और 2000 में उन पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया था। 

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धोनी ने क्यों पहना बैज
धोनी को 2011 में पैराशूट रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट कर्नल की उपाधि से सम्मानित किया गया था। 2015 में उन्होंने पैरा ब्रिगेड की ट्रेनिंग ली थी। इसी वजह से उन्होंने सेना के सम्मान में बलिदान बैज का चिन्ह अपने दस्तानों पर लगाया हुआ था। पैरामिलिट्री कमांडो को यह चिन्ह का इस्तेमाल करने का अधिकार है।

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धोनी के दस्ताने से पाक मंत्री को लगी मिर्ची
धोनी के बलिदान चिन्ह वाले दस्ताने पाकिस्तान के मंत्री चौधरी फवाद हुसैन को भी रास नहीं आए। चौधरी फवाद हुसैन ने इस विवाद को लेकर एक ट्वीट किया। उन्होने ट्विटर पर लिखा कि धोनी मैच खेलने गए हैं न कि महाभारत के लिए। उन्होंने भारतीय मीडिया में इस मुद्दे को अधिक तुल दिए जाने को लेकर भी निशाना साधा।

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पहले भी विवादों में घिरे हैं धोनी  

  •  2009 में इंग्लैंड में ‘वल्र्ड टी 20’ के दौरान पूरी भारतीय टीम प्रेस कांफ्रेंस रूम में पहुंची। मामला चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मीडियाकर्मी इस बात से नाराज दिखे कि कप्तान ने एक महत्वपूर्ण मैच से पहले प्रेस कांफ्रेस में बोलने से मना कर दिया। 
  • धोनी ने एक बार वरिष्ठ खिलाडिय़ों सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर के बारे में कहा था कि वे सुरक्षित फील्डर हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के बड़े ग्राउंड में वे घायल हो सकते हैं। उनके इस बयान पर भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ खिलाडिय़ों ने नाराजगी प्रकट की थी। 


गैटिंग-शकूर राणा विवाद 
1987 में कराची (पाकिस्तान) में इंग्लैंड के कप्तान माइक गैटिंग व अंपायर शकूर राणा के बीच विवाद हो गया था। राणा ने कहा था कि जब गेंदबाज एडी हेमिंग्स गेंदबाजी की प्रक्रिया में थे तो गैटिंग एक फील्डर को बल्लेबाज के पीछे भेज कर चीटिंग कर रहे थे। इसे लेकर गैटिंग व शकूर राणा के बीच तू-तू मैं-मैं हो गई। अगले दिन अंपायरों ने तब तक फील्ड में उतरने से मना कर दिया जब तक कि गैटिंग ने माफी नहीं मांग ली। बाद में मैच चला, लेकिन इंग्लैंड व पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंध बिगड़ गए। इस घटना के 13 साल बाद तक इंग्लैंड ने पाकिस्तान का दौरा नहीं किया। 

बासिल डी ओलिवीरा का मामला 
बासिल डी ओलिवीरा बल्लेबाज व मध्यम तेज गेंदबाज थे। वह दक्षिण अफ्रीका से ताल्लुक रखते थे। चूंकि उन्हें दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद नीति वाली सरकार द्वारा ‘कलर्ड’ घोषित किया गया था, इसलिए उन्हें देश का प्रतिनिधित्व नहीं करने दिया गया। इस कारण वह खेलने के लिए इंग्लैंड चले गए। शीघ्र ही उनका चयन इंग्लैंड की क्रिकेट टीम में हो गया। लेकिन जब 1969 में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर जाने वाली टीम की घोषणा हुई तो उसमें उनका नाम नहीं था, जबकि इससे पहले के मैच में उन्होंने 158 रनों की पारी खेली थी। उस समय आरोप लगा था कि इंग्लैंड के अधिकारियों पर दक्षिण अफ्रीका का दबाव था। यदि ओलिवीरा को चुना जाता तो दक्षिण अफ्रीका नाराज हो सकता था।