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चेन्नई ( निकलेश जैन ) जब पूरी दुनिया में रूस और यूरोपियन शतरंज खिलाड़ियों का दबदबा था ओर शतरंज में एशिया के खिलाड़ियों को बेहद साधारण माना जाता था तब भारत के विश्वनाथन आनंद नें जूनियर शतरंज में अपने जीत के झंडे गाड़कर दुनिया को अचंभित तो भारत को गौरान्वित कर दिया था ।वह विश्व जूनियर का खिताब जीतने वाले पहले एशियन तो बने ही साथ ही भारत के पहले शतरंज ग्रांड मास्टर भी बनने का गौरव अपने नाम किया । 1983 में भारत का  क्रिकेट विश्व कप जीतना जहां देश में पहले ही खेल के प्रति नजरिया बदल रहा था तो 1987 में शतरंज जैसे खेल में विश्वनाथन आनंद का फिलीपींस के बुगिओ में विश्व जूनियर चैम्पियन बनना भी भारतीय खेल की बड़ी घटनाओं में से एक है और इसी का परिणाम है की आज भारतीय खिलाड़ियों का डंका दुनिया भर में माना जा रहा है ,गुकेश ,प्रग्गानंधा और निहाल सरीन जैसे कई नन्हें बच्चे कम उम्र में ही ग्रांड मास्टर बनकर दुनिया को अचंभे में डाल रहे है ।

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1987 में विश्व जूनियर चैंपियनशिप में आनंद खिताब के बड़े दावेदार नहीं थे फिर भी अपने शानदार खेल से उन्होने सभी को पीछे छोड़ते हुए इस खिताब को हासिल कर लिया । 13 राउंड के इस मुक़ाबले में आनंद नें 10 अंक बनाते हुए खिताब हासिल किया था इस प्रतियोगिता में आठवे राउंड में यूरोपियन जूनियर चैम्पियन सोवियत यूनियन के वेसली इवांचुक पर उनकी जीत आज भी याद की जाती है । इस प्रतियोगिता में आनंद गए तो इंटरनेशनल मास्टर की हैसियत से थे पर वापस लौटे थे भारत के पहले ग्रांड मास्टर के रूप में । प्रतियोगिता में 41 देशो के चुनिन्दा 52 खिलाड़ियों नें भाग लिया था । उस दौर में आनंद के जीतकर वापस आने पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन ने 50,000 रुपये के पुरस्कार की घोषणा की थी ।

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आज भी कायम आनंद का जलवा – कुछ वर्ष पूर्व ही 50 वर्ष के हुए आनंद आज भी भारत के शीर्ष सक्रिय शतरंज खिलाड़ी है और विश्व रैंकिंग में 15 वे स्थान पर कायम है , उनकी ऊर्जा और खेल के प्रति समर्पण का ही कमाल है की उनसे आधी उम्र के खिलाड़ी आज भी उन्हे पीछे नहीं छोड़ सके है । आनंद ना सिर्फ 5 बार के विश्व क्लासिकल चैम्पियन है बल्कि फटाफट शतरंज के 3 रैपिड विश्व खिताब भी उनके खाते में आते है । भारतीय शतरंज में निश्चित तौर पर आनंद महानतम शतरंज खिलाड़ी है जिनकी बराबर कभी कोई नहीं कर सकेगा ।