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जालन्धर (जसमीत सिंह) : क्रिकेट की पहचान पहले-पहले सिर्फ टेस्ट मैच थी। यानी सफेद कपड़़े पहने क्रिकेटर पांच दिन तक बड़े मैदान पर खेलते हैं। लेकिन 1978 में आज ही के दिन इस क्रिकेट का स्वरूप बदला। पहली बार खिलाडिय़ों ने सफेद कपड़े छोड़कर रंगीन कपड़े पहने। हालांकि रंगीन कपड़े पहनने की कहानी विद्रोह के बाद से शुरू हुई थी। दरअसल रंगीन क्रिकेट शुरू कराने वाले कैरी पैकर को इसके लिए दर्जनों मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। कारण यह था- जिस अथॉर्टी ने इस नए फॉर्मेट का लागू करना था, वह पहले ही पैकर के विरोध में खड़ी थी। ऐसे समय में पैकर ने दुनिया के दिग्गज क्रिकेटर अपने साथ लिए और ऐसी इबारत लिखी जिसका मजा हम अपने घर पर बैठकर टीवी सेट पर वनडे इंटरनैशनल मैच देखकर लेते हैं।

कैरी पैकर ऑस्ट्रेलिया के निजी चैनल ‘चैनल-9’ के मालिक थे। 1974 में उनके हाथ चैनल की बागडोर लगी थी। उन्होंने अपने चैनल को आगे बढ़ाने के लिए खेलों का सहारा लिया। सबसे पहले उन्होंने ऑस्ट्रेलियन गोल्फ के अधिकार लिए। लेकिन इस गेम से फायदा होता न देख उन्होंने खेलों के सबसे पॉपुलर फार्मेट क्रिकेट को छुआ। 1976 में उन्होंने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया से गुजारिश की वह उनके चैनल पर खेलों का लाइव टेलीकास्ट करें लेकिन क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इससे साफ इंकार कर दिया। पैकर इसके लिए करीब आठ गुणा कीमत देने को भी राजी थे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। इसके पीछे एक कारण क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का ऑस्ट्र्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से लंबे समय का रिश्ता भी माना गया। 

पैकर ने जब अपनी सारी कोशिशें असफल होती देखीं तो उन्होंने अपनी ही लीग शुरू करने का फैसला किया। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने मदद मांगी क्रिकेट के महान क्रिकेटर इयान चैपल से। चैपल का उन दिनों काफी नाम था। ऐसे में चैपल की मदद से उन्होंने लगभग पूरी ऑस्ट्र्रेलियन टीम को अपनी लीग के लिए अनुबंधित कर लिया। इंगलैंड से उन्होंने टोनी ग्रेग को अपने साथ जोड़ा जो उन दिनों अपनी टीम के कप्तान थे। दरअसल उन दिनों क्रिकेटरों का पैसे बहुत कम मिलते थे। चाहे लोग इसे खूब चांव से देखते थे लेकिन क्रिकेटरों को सिवाय तालियों के कुछ नहीं मिलता था। इस कारण क्रिकेटर लंबे समय से भरे हुए थे। इसी गुस्से ने पैकर के लिए लीग खड़े करने में मदद की।

पैकर ने इसके बाद मई 1977 में यह खबर मीडिया में दी कि वह एशेज से पहले आस्ट्रेलिया के 13 खिलाडिय़ों से करार कर चुके हैं। क्रिकेट आस्ट्रेलिया बोर्ड इसे सहन नहीं कर पाया। इसी चक्कर में इंग्लैंड टीम के कप्तान टोनी ग्रेग को कप्तानी से हटा दिया गया। मीडिया ने भी टोनी को टारगेट कर खूब चर्चाएं छेड़ी। तब मीडिया ने पैकर की हर खबर को ‘पैकर सर्कस’ के नाम से चलाया। वहीं, बोर्ड के फैसले से गुस्साए कई देशों के बड़े क्रिकेटर भी पैकर के साथ जा मिले। आईसीसी ने हस्तक्षेप कर मामला सुलझाना चाहा लेकिन बात नहीं बन पाई। आखिर आईसीसी ने पैकर को अनऑफिशियिल मैच करवाने की मंजूरी दे दी। इसके तहत पैकर फस्र्ट क्लास और टेस्ट क्रिकेट नहीं खिलवा सकते थे। टोनी ग्रेग, जॉन स्नो और माइक प्रॉक्टर तो फैसले के विरोध में कोर्ट चले गए। 

कोर्ट में मामला जाने के बाद सुनवाई पैकर के पक्ष में हुई लेकिन साथ में हिदायतें भी थीं कि वह अपनी टीम को ऑस्ट्रेलिया नहीं कह सकते। टेस्ट मैच भी नहीं करवा सकते। क्रिकेट रूलबुक का भी इस्तेमाल नहीं कर सकते। क्योंकि उसपर कॉपीराइट एमसीसी के पास था। पैकर ने इसके बाद सुपरटेस्ट नाम से मैच करवाने का फैसला लिया। क्रिकेट मैदान नहीं मिलीं तो फुटबॉल मैदान में आर्टिफिशियल पिच लगाकर मैच करवाए जाने लगे। टीवी पर प्रमोट करने के लिए एंथम सॉन्ग बनाया गया।

लोगों को आकर्षित करने के लिए रंगीन कपड़ों में खिलाड़ी दिखे।  पैकर की यह लीग इतनी पॉपुलर हो गई कि धीरे-धीरे विश्व क्रिकेट उनके साथ आ गई। फिर वहीं हुआ जो पैकर चाहते थे। 1978 का वो साल था। ऑस्ट्रेलिया और वैस्टइंडीज की टीमें एक दिवसीय मैच कलर्ड ड्रैस में दिखीं। इसी मैच के बाद से क्रिकेट का स्वरूप ही बदल गया। क्योंकि अब क्रिकेट जेंटलमैन ऐरा से निकलकर एट्ीट्यूट ऐरा में आ चुका था।