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नई दिल्ली : भारत के अनुभवी मुक्केबाज मनोज कुमार का कहना है कि राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन उन्हें एशियाई खेलों में मिलने वाली चुनौती से निपटने में मदद करेगा, जिससे उनकी निगाहें गोल्ड कोस्ट में सिर्फ स्वर्ण पदक पर लगी हैं। मनोज (69 किग्रा) सहित 12 सदस्यीय पुरूष और महिला मुक्केबाजी दल आस्ट्रेलियाई हालात के अनुरूप ढलने के लिए 15 दिन पहले ही गोल्ड कोस्ट रवाना हो गया। वह मानते हैं कि राष्ट्रमंडल खेलों का सफर आसान नहीं होने वाला लेकिन उन्हें तैयारियों को देखते हुए खुद से बेहतर का भरोसा है।

पहला स्थान हासिल करने से मनोबल में बढोतरी होगी 

उन्होंने बताया ‘‘इस बार स्वर्ण पदक से कम कुछ नहीं। पिछली बार क्वार्टरफाइनल में ही सफर खत्म हो गया था लेकिन इस बार ट्रेनिंग शानदार है और खुद के प्रदर्शन से सोने की उम्मीद है। ’’ दिल्ली 2010 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले मनोज भी सभी खिलाडिय़ों की तरह मानते हैं कि एक बार में सिर्फ एक ही टूर्नामेंट पर ध्यान लगाना चाहिए लेकिन वह इस बात में भी विश्वास करते हैं कि खिलाड़ी की प्रगति टूर्नामेंट दर टूर्नामेंट होती है जिससे मनोबल बढ़ता है। इसलिए अगर वह राष्ट्रमंडल खेलों में पहला स्थान हासिल करते हैं तो इससे उनके आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी और वह आने वाले महत्वपूर्ण प्रतियोगिता (एशियाई खेल) में अपना सर्वश्रेष्ठ दिखा सकेंगे।           

जो अायाम अाप ट्रनिंग में हासिल नहीं कर सकते वो मुकाबले में कर सकते हो 

इस साल जनवरी में नई दिल्ली में हुए इंडिया ओपन अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी टूर्नामेंट में कांस्य पदक जीतने मनोज ने कहा, ‘‘नए मुक्केबाजी संघ के आने के बाद हमने लगातार कई टूर्नामेंट खेले, जिससे मुक्केबाजों को काफी फायदा हुआ है। निश्चित रूप से टूर्नामेंट में खेलकर आप कई मुक्केबाजों से भिड़ते हो और आप रणनीति के नए आयाम सीखते हो जो आप सिर्फ ट्रेनिंग से हासिल नहीं कर सकते। किसी टूर्नामेंट में पहले स्थान पर रहने से आप अगले में और बेहतर होकर खेलते हो। अभी राष्ट्रमंडल खेलों के बाद हमें एशियाई खेल में भाग लेना है तो सभी मुक्केबाज इसमें अपना सर्वश्रेष्ठ करना चाहेंगे ताकि वे सकारात्मक बने रहें। ’’

हार खिलाड़ी को कुछ ना कुछ जरूर सिखाती है 

पिछले राष्ट्रमंडल खेलों में उनका सफर क्वार्टरफाइनल में ही थम गया था, लेकिन उनका मानना है कि हर हार खिलाड़ी को कुछ सिखा कर जाती और आगे के लिए बेहतर करती है। फरवरी में सोफिया में हुए स्ट्रेंड्जा मेमोरियल टूर्नामेंट के प्री क्वार्टरफाइनल तक पहुंचे मनोज ने कहा, ‘‘शुरू में चोट लगने से आगे के राउंड का सफर मुश्किल हो जाता है, आपको हर समय खुद को बचाकर राउंड खेलकर जीत दर्ज करनी होती है। बिना हेडगार्ड के खेलना बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है और पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश की मुक्केबाजी के हालात अच्छे नहीं थे लेकिन नए महासंघ के आने के बाद चीजें काफी सुधर गई है जिससे हम आत्मविश्वास से भरे हैं। ’’          

परफेक्शन से ही दूसरी चीज के लिए अागे बढ़ सकते हैं

नए महासंघ के आने से पहले कई वर्षों तक क्यूबाई कोच बी आई फर्नांडीज भारतीय मुक्केबाजी टीम के विदेशी कोच थे और अब यह जिम्मेदारी सांटियागो निएवा पर है। उनकी ट्रेनिंग के तरीके के बारे में पूछने पर अर्जुन पुरस्कार विजेता मनोज ने कहा, ‘‘वह काफी अनुभवी हैं, आप यह नहीं कह सकते कि उनका ट्रेनिंग का तरीका अलग है लेकिन यह थोड़ा सुनियोजित है और हमारे लिए काफी उपयोगी है। वे एक चीज में परफेक्शन करवाते हैं, तभी दूसरी चीज के लिए आगे बढ़ते हैं। ’’ भारतीय मुक्केबाजी कोच एस आर सिंह राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दल के साथ नहीं होंगे, इस पर उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय कोचों के साथ हम सहज होते हैं और विदेशी कोचों की बात अच्छी तरह समझ जाते हैं इसलिए हम निश्चित रूप से चाहते हैं कि वे टीम के साथ रहें, या फिर उन्हें साई द्वारा वहां रहने की अनुमति मिल जाए ताकि वे खेल गांव में आकर हमारी मदद कर सकें। ’’