Sports

नई दिल्लीः  कश्मीर की युवा पीढ़ी जहां गोलियों के साए में सहमी रहती है आैर पैसों की खातिर हाथों में पत्थर थाम लेती है, वहीं कुछ ऐसे युवा भी हैं जो इन चीजों से दूर होकर कुछ कर गुजरने की सोचते हैं। इन्हीं में से एक हैं फुटबाॅलर शाहनवाज बशीर। 

आई लीग में पदार्पण करने जा रही रियल कश्मीर एफसी का यह मिडफील्डर किसी भी सूरत में फुटबाल के मैदान पर कामयाबी हासिल करने का अपना सपना पूरा करना चाहता है। भले ही इसके लिए उन्हें अपने जीवन में छोटी-छोटी खुशियों से महरूम होना पड़े। स्कॉटलैंड के डेविड राबर्टसन के मार्गदर्शन में अभ्यास में जुटी रियल कश्मीर ने इस साल द्वितीय श्रेणी लीग जीतकर इतिहास रच दिया ।       

भारत में अक्सर खेल को सरकारी नौकरी पाने का जरिया माना जाता है, लेकिन बशीर को खेल में करियर बनाने से काफी पहले ही सरकारी नौकरी मिल चुकी थी। बशीर ने प्रेस ट्रस्ट से कहा, "मैं श्रीनगर में महालेखापाल के कार्यालय में वरिष्ठ लेखापाल हूं। ड्यूटी का समय 9 से 5 तक है, लेकिन मुझे कुछ रियायत मिल जाती है। मैं एक घंटा देर से जा सकता हूं। महालेखापाल ने मुझे इसकी अनुमति दी है, क्योंकि उन्हें कश्मीर में फुटबाल के क्रेज और इसके सकारात्मक असर का इल्म है।" उन्होंने कहा, "मैं टीम के साथ सुबह आठ से दस तक अभ्यास करता हूं और फिर दफ्तर आता हूं। शाम को साढे पांच या छह बजे तक रुकता हूं। यह कठिन है, लेकिन मैं खुश हूं।"   
Footballer Shahnawaz Bashir, गोलियां चलती रहीं, पत्थर बरसते रहे, पर शाहनवाज ने नहीं छोड़ा फुटबॉल खेलना  

दूसरों के घर से मांगने पड़ते थे जूते
बशीर की माली हालत अब ठीक है, लेकिन बचपन में उन्होंने काफी तंगी का सामना किया है। उन्होंने बताया, "मेरे वालिद छोटे व्यापारी हैं और मां गृहिणी हैं। मेरे पास अपना फुटबॉल या जूते नहीं थे। ये मुझे दूसरों से मांगने पड़ते थे। मेरे पिता ने मेरे फुटबॉल खेलने का विरोध नहीं किया, लेकिन मां को लगता था कि इससे मेरा कुछ भला नहीं होगा। मैंने जम्मू-कश्मीर बैंक की फुटबॉल अकादमी में खेलना शुरू किया। इसके बाद तीन साल तक लोनस्टार कश्मीर के लिए खेलता रहा।"