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नई दिल्ली : विश्व रिकॉर्ड के साथ तोक्यो पैरालम्पिक खेलों के लिए क्वालीफाई करने वाले दो बार के स्वर्ण पदक विजेता भालाफेंक एथलीट देवेंद्र झाझरिया ने इस बार पैरालम्पिक की तैयारी में ‘मानसिक मजबूती' को सबसे अहम बताते हुए कहा कि कोरोना महामारी के बीच परिवार से दूर बायो बबल में सतत अभ्यास के दौरान खुद को प्रेरित करते रहना सबसे बड़ी चुनौती थी।

एथेंस में 2004 और रियो में 2016 पैरालम्पिक के स्वर्ण पदक विजेता झाझरिया ने इंटरव्यू में कहा कि मैंने हर बार खेलों की तैयारी अलग ढंग से की है। इस बार तकनीकी तौर पर हर बारीकी पर काम किया लेकिन मानसिक रूप से भी खुद को मजबूत बनाये रखा। पैरालंपिक खेलों में पुरुषों की एफ-46 वर्ग में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले 40 वर्षीय झाझरिया ने गुरुवार को ट्रायल्स के दौरान 65.71 मीटर भाला फेंका।

अपने इस प्रदर्शन से उन्होंने न सिर्फ पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया बल्कि 63.97 मीटर के अपने पिछले विश्व रिकार्ड में भी सुधार किया। उन्होंने यह रिकार्ड रियो पैरालंपिक 2016 में बनाया था। उन्होंने कहा कि छह महीने परिवार से दूर भारतीय खेल प्राधिकरण के गांधीनगर केंद्र पर रोज एक सी दिनचर्या के बीच लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिये खुद को प्रेरित करते रहना चुनौतीपूर्ण था। मेरा परिवार जयपुर में है और छह साल का बेटा रोज रात को वीडियो कॉल पर कहता कि पापा कल घर आ जाओ। आप घर क्यों नहीं आते। मेरी पत्नी चूंकि राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी रह चुकी है तो वह चीजों को समझती है।

40 वर्ष के इस खिलाड़ी ने कहा कि मैं छह महीने बाद साइ केंद्र से बाहर निकाला हूं और कोरोना प्रोटोकॉल के बीच अभ्यास आसान नहीं था। रोज खुद को दिलासा देते रहते थे कि जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा। मेरे कोच सुनील तंवर और फिटनेस ट्रेनर लक्ष्य बत्रा ने मुझ पर काफी मेहनत की। मुझे क्वालीफिकेशन का यकीन था और लगभग पौने दो मीटर से रिकॉर्ड तोड़ा है। अब मैं चाहता हूं कि विश्व रिकॉर्ड के साथ ही पैरालम्पिक में स्वर्ण पदकों की हैट्रिक लगाऊं। 

40 बरस की उम्र में क्या यह संभव होगा, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि आप इसे ऐसे क्यो नहीं देखते कि मेरे पास ज्यादा अनुभव है। मैंने अपनी रफ्तार, दमखम और तकनीक पर काफी काम किया है। मैंने दो स्वर्ण पदक जीते हैं और यह मेरे पक्ष में जाता है। किन देशों के खिलाड़ियों से प्रतिस्पर्धा कड़ी होगी, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरा मुकाबला खुद से है। विश्व रिकॉर्ड मेरे नाम था और मैने उसे बेहतर किया। मैं अपनी ताकत पर मेहनत करने में विश्वास करता हूं।

अपने अब तक के प्रदर्शन का श्रेय कोच के साथ परिवार को देते हुए झाझरिया ने कहा कि हमारे देश में अपने बच्चे को डॉक्टर, इंजीनियर बनाने का माता पिता सपना देखते हैं लेकिन मेरे दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने मुझे खिलाड़ी बनाया जो काफी बड़ी बात है। मेरी पत्नी और बच्चों ने मेरा साथ दिया और अब मैं एक बार फिर तोक्यो में तिरंगा लहराता देखना चाहता हूं। तोक्यो पैरालंपिक खेल 24 अगस्त से शुरू होंगे।