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नई दिल्ली: हाल ही में महिला हॉकी एशिया कप में भारत ने अपना परचम लहराया और इस सफलता के पीछे सविता पूनिया का अहम योगदान रहा था। इस टूर्नामैंट में बढ़िया प्रदर्शन के लिए सविता को बेस्ट गोलकीपर के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। लेकिन उनका सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा है जिनहें पार कर वो इस मुकाम तक पहुंची है।

गौरतलब है कि भारत का नाम इतना रोशन करके तथा इतनी सफलता हासिल करने के बावजूद सविता आर्थिक रूप से कमजोर हैं। शुरू से अब तक अपने माता-पिता पर ही निर्भर रही हैं और करियर की शुरुआत में तो उनके पास ऑटो से जाने के पैसे तक नहीं होते थे।

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9 साल से नहीं मिली नौकरी
सविता पिछले 9 साल से नौकरी का इंतजार कर रही हैं और हर टूर्नामेंट के बाद उन्हें लगता है कि इस बार उनकी नौकरी लग जाएगी। उन्हें हरियाणा सरकार की योजना मेडल लाओ और नौकरी पाओ के तहत नौकरी का वादा किया गया था, लेकिन अभी भी उन्हें नौकरी नहीं मिली है।

साल 2008 में अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की 
भारतीय महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता हरियाणा की रहने वाली हैं और 18 साल की उम्र से ही उन्होंने भारत के लिए खेलना शुरू कर दिया था। हॉकी खेलने के लिए सविता के दादा जी महिंदर सिंह ने उन्हें प्रोत्साहित किया था।