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नई दिल्ली : अभावों में पली बढ़ी होने के बावजूद हॉकी के अपने जुनून से देश के सर्वोच्च खेल सम्मान तक पहुंची रानी रामपाल का मानना है कि यह पुरस्कार सिर्फ उनके लिए नहीं बल्कि खुद को साबित करने का सपना देखने वाली गरीब घर की हर लड़की के लिए मील का पत्थर साबित होगा। हरियाणा के शाहबाद जिले से ताल्लुक रखने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी इस साल राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के लिए चुने गए पांच खिलाडिय़ों में से है।

रानी के पिता रेहड़ी चलाते थे लेकिन उसने छह बरस की उम्र में हॉकी स्टिक थाम ली और 2009 में सिर्फ 14 साल की उम्र में भारतीय महिला टीम में चुनी गई। इसी साल ‘वल्र्ड एथलीट आफ द ईयर’ पुरस्कार जीतने वाली रानी अब तक 226 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 112 गोल कर चुकी हैं।

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रानी ने कहा- मैंने कभी सोचा नहीं था कि खेल रत्न मिलेगा लेकिन शुरू से लक्ष्य था कि मेहनत करनी है और पदक जीतेंगे तो पुरस्कार मिलेंगे ही। मुझे खुशी है कि मेरे प्रयासों को पहचान मिली। यह मेरे लिए ही नहीं, महिला हॉकी और सामान्य परिवार से बड़े सपने लेकर निकली हर लड़की के लिए महत्वपूर्ण है।

अपने अब तक के सफर के बारे में उन्होंने कहा- हरियाणा से और एक गरीब परिवार से निकलकर यहां तक पहुंचना एक सपने सरीखा रहा। मेरे माता-पिता भी पढ़े लिखे नहीं थे और उन्हें खेलों में कैरियर बनाने के लिए तैयार करना काफी चुनौतीपूर्ण था। उन्हें भी लोगों से काफी बातें सुननी पड़ी।

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वर्ष 2016 में अर्जुन पुरस्कार जीतने वाली रानी ने कहा- अब उन सभी लोगों को मुझ पर गर्व है और वे मेरे माता पिता को यह बात बोलते हैं। मैं उनकी शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे चुनौती दी। मैंने लड़कियों के हालात और अच्छी मिसाल कायम करने के लिए खेल चुना और मुझे खुशी है कि अब मानसिकता बदली है।

रानी के माता पिता को खेल रत्न पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं पता लेकिन अपनी बेटी की उपलब्धियों पर उन्हें फख्र है। धनराज पिल्लै और सरदार सिंह के बाद यह सम्मान पाने वाली तीसरी हॉकी खिलाड़ी और पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बनी इस अनुभवी स्ट्राइकर ने कहा- उन्हें इस पुरस्कार के बारे में कुछ नहीं पता था। मैंने उन्हें बताया कि मैं पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बनी हूं तो वे काफी भावुक हो गए और रोने लगी।

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रानी ने कहा- जब मैने हॉकी खेलना शुरू किया तो मुझे लगता था कि अगर मैंने कुछ नहीं किया तो हम जीवन भर गरीबी झेलते रहेंगे। खाने की दिक्कत हमने झेली है और मैं अपने परिवार को बेहतर जिंदगी देना चाहती थी। मुझे खुशी है कि मैं वह कर सकी और अब मेरे डैडी बोलते हैं कि तुम मेरी लड़की नहीं, लड़का हो तो मुझे गर्व होता है। 

तोक्यो ओलंपिक की तैयारियों में जुटी इस दिग्गज खिलाड़ी ने कहा-मुझे अच्छा लगता है कि इस तरह लड़कियों पर भरोसा बनना शुरू हुआ है कि वे भी कुछ कर सकतीं है। खेलों और महिला खिलाडिय़ों को लेकर रवैया भी बदला है। रानी ने इस सफलता के लिए कई कुर्बानियां भी दी है मसलन वह अपने दोनों भाइयों की शादी में नहीं जा सकी और ना ही उसने अपने रिश्तेदार कभी देखे लेकिन उसे कोई मलाल नहीं है।

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रानी ने कहा- मैंने बस हॉकी खेली और मुझे कोई दुख नहीं क्योंकि जब खेल के मैदान पर तिरंगा लहराता दिखता है तो सारे मलाल पीछे छूट जाते हैं। मेरा अधूरा सपना ओलंपिक पदक जीतने का है और मैं उसे अगले साल तोक्यो में पूरा होते देखना चाहती हूं।