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नई दिल्लीः ‘‘मैं एक सपना जी रही हूं’’, यह शब्द हैं हिमा दास के जिनके जरिए वह असम के एक छोटे से गांव में फुटबालर से शुरू होकर एथलेटिक्स में पहली भारतीय महिला विश्व चैंपियन बनने के अपने सफर को बयां करना चाहती है। नौगांव जिले के कांदुलिमारी गांव के किसान परिवार में जन्मी 18 वर्षीय हिमा कल फिनलैंड में आईएएएफ विश्व अंडर -20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर देशवासियों की आंख का तारा बन गई।            

देश के लिए कुछ करना चाहती हूं
हिमा ने फिनलैंड के टेम्पेरे से कहा , ‘‘ मैं अपने परिवार की स्थिति को जानती हूं और हम कैसे संघर्ष करते हैं। लेकिन ईश्वर के पास सभी के लिए कुछ होता है। मैं सकारात्मक सोच रखती हूं और मैं जिंदगी में आगे के बारे में सोचती हूं। मैं अपने माता पिता और देश के लिए कुछ करना चाहती हूं। ’’ उन्होंने कहा , ‘‘ लेकिन अब तक यह सपने की तरह रहा है। मैं अब विश्व जूनियर चैंपियन हूं। ’’ हिमा चार भाई बहनों में सबसे बड़ी है। उसकी दो छोटी बहनें और एक भाई है। एक छोटी बहन दसवीं कक्षा में पढ़ती है जबकि जुड़वां भाई और बहन तीसरी कक्षा में हैं। हिमा खुद अपने गांव से एक किलोमीटर दूर स्थित ढींग के एक कालेज में बारहवीं की छात्रा है।            
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हिमा  महिला और पुरूष दोनों वर्गों में ट्रैक स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय भी हैं।  वह अब नीरज चोपड़ा के क्लब में शामिल हो गई हैं जिन्होंने 2016 में पोलैंड में आईएएएफ विश्व अंडर -20 चैंपियनशिप में भाला फेंक (फील्ड स्पर्धा) में स्वर्ण पदक जीता था। उनके पिता रंजीत दास के पास दो बीघा जमीन है और उनकी मां जुनाली घरेलू महिला हैं। जमीन का यह छोटा सा टुकडा ही छह सदस्यों के परिवार की आजीविका का साधन है।