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नयी दिल्ली : कोविड-19 महामारी ने वह कर दिया जो द्वितीय विश्व युद्ध भी नहीं कर पाया था- रणजी ट्रॉफी के 87 साल की निर्बाध यात्रा पर रोक लगा दी। देश के शीर्ष घरेलू टूर्नामेंट का इस्तेमाल राष्ट्रीय टीम के जगह बनाने के लिए करने वाले अतीत के कई पूर्व खिलाड़ियों ने मौजूदा क्रिकेटरों से सहानुभूति जताई। लेकिन 1934-35 में शुरुआत के बाद से पहली बार रणजी ट्रॉफी का आयोजन नहीं करने के भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अभूतपूर्व फैसले पर सहमति जताई। पूर्व भारतीय विकेटकीपर और देश के सर्वश्रेष्ठ घरेलू कोचों में शामिल चंद्रकांत पंडित ने कहा कि खिलाड़ी जो महसूस कर रहे हैं उससे मुझे सहानुभूति है लेकिन मुझे लगता है कि बीसीसीआई ने जो फैसला किया है वह सभी के सर्वश्रेष्ठ हित में है। बोर्ड ने अपनी मान्यता प्राप्त इकाइयों को सूचित किया है कि संशोधित सत्र में विजय हजारे ट्रॉफी, सीनियर महिला एकदिवसीय टूर्नामेंट और अंडर-19 लड़कों के लिए वीनू मांकड़ ट्रॉफी का आयोजन किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि कम से कम दो टूर्नामेंटों का आयोजन हो रहा है। क्या कम मैचों के साथ रणजी ट्रॉफी का आयोजन विकल्प होता? मुझे नहीं पता लेकिन अंडर-19 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए बीसीसीआई को कम समय में वीनू मांकड़ ट्रॉफी का आयोजन भी करना था। पूर्वोत्तर के राज्यों के शामिल होने के बाद घरेलू टूर्नामेंट में 38 प्रथम श्रेणी टीमें हो गई हैं और कोच वसीम जाफर ने व्यावहारिक मुश्किलों का हवाला दिया।

घरेलू क्रिकेट में सबसे अधिक रन बनाने वालों में शामिल जाफर ने कहा कि आदर्श स्थिति में मैं चाहता कि रणजी ट्रॉफी का आयोजन हो, लेकिन बेशक 38 टीमों के साथ, इतने सारे खिलाड़ी, स्थल और बाकी चीजों को देखते हुए संभवत: साजो सामान के लिहाज से यह थोड़ा मुश्किल होता इसलिए मैं समझ सकता हूं। मुंबई और विदर्भ के साथ कई रणजी खिताब जीतने वाले जाफर हालांकि इस टूर्नामेंट का आयोजन नहीं होने से निराश भी हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि यह दुखद है कि इतने वर्षों में पहली बार रणजी ट्रॉफी नहीं हो रही है, इसलिए बेशक यह दुखद है, विशेषकर उन खिलाड़ियों के लिए जो सिर्फ लाल गेंद के प्रारूप में खेलते हैं, उन्हें लगभग 18 महीने तक प्रथम श्रेणी टूर्नामेंट खेलने को नहीं मिलेगा।

बीसीसीआई ने हालांकि घरेलू खिलाड़ियों को मुआवजे का वादा किया है और इससे उन्हें कुछ वित्तीय राहत मिल सकती है। घरेलू क्रिकेट के एक अन्य दिग्गज खिलाड़ी और भारतीय क्रिकेटर्स संघ (आईसीए) के अध्यक्ष अशोक मल्होत्रा का मानना है कि रणजी ट्रॉफी के आयोजन के लिए चार महीने तक जैविक रूप से सुरक्षित माहौल में रहना कभी भी व्यावहारिक विचार नहीं था। उन्होंने कहा कि बीसीसीआई पहले ही अपनी एजीम में चर्चा कर चुका है कि मुकावजे का पैकेज तैयार किया जाएगा। मैंने हाल में मुश्ताक अली ट्रॉफी में बीसीसीआई के लिए कमेंट्री की और मैं ढाई हफ्ते के लिए जैविक रूप से सुरक्षित माहौल में रहा।

मल्होत्रा ने कहा कि मेरी उम्र में भी वहां काफी मुश्किल जीवन था इसलिए मुझे लगता है कि क्या 800 घरेलू क्रिकेटरों को साढ़े तीन महीने के लिए जैविक रूप से सुरक्षित माहौल में रखना व्यावहारिक होता। बंगाल के गेंदबाजी कोच राणादेब बोस ने भी हाल में जैविक रूप से सुरक्षित माहौल में रहने का अनुभव किया। हर दूसरे दिन आपका परीक्षण होता है, आपकी नब्ज और आक्सीजन का स्तर जांचा जाता है और आपकी आवाजाही सीमित हो जाती है।

बोस ने कहा कि रणजी ट्रॉफी लगभग चार महीने का टूर्नामेंट है, अगर पूरा टूर्नामेंट हो तो। जैविक रूप से सुरक्षित माहौल का आपको पूरी तरह सम्मान करना होता है। कई क्रिकेटरों के उम्रदराज माता-पिता या छोटे बच्चे हैं और आप उनसे नहीं मिल सकते। आपको एक ही होटल में महीनों तक रहना होता है। यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है और मुझे लगता है कि बीसीसीआई ने विजय हजारे ट्रॉफी का आयोजन करके सही फैसला किया।