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जालन्धर (जसमीत सिंह) : गोल्डकोस्ट में आखिरकार भारत ने इतिहास रचते हुए 26 गोल्ड समेत कुल 66 मैडल अपने नाम कर लिए हैं। यह पिछले ग्लास्गो कॉमनवैल्थ गेम्स से दो ज्यादा है। ऐसा कर भारत मैडल टैली में ऑस्टे्रेलिया और इंगलैंड के बाद तीसरे नंबर पर आ गया है। हालांकि भारत 2010 में दिल्ली में हुई कॉमनवैल्थ गेम्स में अपना सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड (101 मैडल) तोड़ नहीं पाया लेकिन जिस तरह गोल्डकोस्ट में भारतीय खिलाडिय़ों ने प्रदर्शन किया इससे साफ हो गया है कि भारत में खिलाडिय़ों का भविष्य उज्ज्वल होने जा रहा है।
कॉमनवैल्थ ने कई नई उम्मीदें भी जगाईं। हमें लगभग हर गेम्स से नए चैंपियन मिले। पहलवानी, बॉक्सिंग, बैडमिंटन में हालांकि भारत पहले से बेहतर है लेकिन इस बार सबसे ज्यादा हैरान किया हमारी टेबल टेनिस टीम ने। खास तौर पर नई दिल्ली की मनिका बत्रा ने सबको चौंका दिया। मनिका कॉमनवैल्थ गेम्स के टेबल टैनिस वर्ग से अकेले ही चार मैडल जीतने वाली पहली भारतीय भी बन गई हैं। बता दें कि 1930 में शुरू हुई कॉमनवैल्थ गेम्स में भारत अब तक कुल मिलाकर 505 मैडल जीत चुका है।

आजादी से पहले भारत को मिले थे सिर्फ दो मैडल
कॉमनवैल्थ गेम्स की शुरुआत 1930 में हुई थी। हर चार साल बाद होने वाली यह गेम्स 1942 और 1946 में वल्र्ड वार के चलते हो नहीं पाई थी लेकिन उसके बाद से लगातार यह गेम्स हो रही हैं। इन गेम्स का कई बार नाम बदला गया। 1930 में इसे ब्रिटिश इम्पायर गेम्स के नाम से जाना जाता था। लेकिन 1954 में इसे बदलकर ब्रिटिश इम्पायर एंड कॉमनवैल्थ गेम्स रख दिया गया। 1970 में इसे ब्रिटिश कॉमनवैल्थ गेम्स कहा गया। लेकिन उसके बाद इसे सिर्फ कॉमनवैल्थ गेम्स कहा जाने लगा। फर्क सिर्फ इतना है कि जिस जगह पर यह गेम होती हैं, उस शहर का नाम अब कॉमनवैल्थ गेम्स के आगे लग जाता है। जैसे कि इस बार ऑस्ट्रेलिया में हुई इस गेम का नाम था गोल्डकोस्ट कॉमनवैल्थ गेम्स।

1990 के बाद भारतीय खिलाडिय़ों ने पकड़ी रफ्तार
1990 की कॉमनवैल्थ गेम्स भारत के लिए बेहद खास हैं, क्योंकि यह वह ही गेम थी जिसमें भारत ने पहली बार दहाई का आंकड़ा पार किया था। भारत ने इन गेम्स में तब 13 गोल्उ और 32 पदक हासिल किए थे, जोकि उस समय बड़ी उपलब्धि माना गया। बता दें कि भारत आाजादी से पहले भी दो बार कॉमनवैल्थ गेम्स में हिस्सा ले चुका था। लेकिन इनमें उन्हें सिर्फ दो ही पदक हासिल हुए थे। आजादी के बाद 1954 में भारत ने इन गेम्स में हिस्सा लिया लेकिन कोई भी भारतीय खिलाड़ी मैडल नहीं जीत पाया। 1958 में जाकर भारतीय खिलाडिय़ों ने आजाद भारत का कॉमनवैल्थ गेम्स में खाता खोला। तब भारतीय खिलाडिय़ों ने 2 गोल्ड समेत तीन मैडल जीते थे। 

दिल्ली कॉमनवैल्थ में किया था भारतीयों ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
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कॉमनवैल्थ गेम्स में भारतीय के लिए स्वर्णिम साल रहा था 2010 जब दिल्ली में यह गेम्स हुई थीं। भारतीय खिलाडिय़ों ने यहां कमाल का प्रदर्शन करते हुए 101 मैडल प्राप्त किए थे। इनमें सर्वश्रेष्ठ 38 गोल्ड भी थे। ऐसा कर भारतीय खिलाडिय़ों ने 2002 में मेनचेस्टर में हुई गेम्स में अपना 30 गोल्ड का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। भारत ने आजादी के बाद अब तक कुल 15 कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लिया है। इसमें उसने 181 गोल्ड, 175 सिल्वर और 148 ब्रॉन्ज के साथ 502 मेडल जीते हैं।

भारत के कॉमनवेल्थ में अब तक के 4 सबसे अच्छे प्रदर्शन
वर्ष       स्थान           गोल्ड    सिल्वर   ब्रॉन्ज    कुल

2010   दिल्ली          38        27        36        101
2002   मेनचेस्टर     30        22        17         69
2018   गोल्डकोस्ट   26        20        20         66
2014   ग्लास्गो       15        30        19          64

इंडियन आर्मी के एथलीट्स ने बढ़ाया मान
कॉमनवैल्थ गेम्स में इंडियन आर्मी के प्लेयर्स ने भी अच्छा प्रदर्शन करते हुए एक गोल्ड, तीन सिल्वर और एक ब्रॉन्ज जीता। गौरव सोलंकी ने 52 किग्रा. वर्ग में गोल्ड, सतीश ने 91 किग्रा. में सिल्वर, मनीष कौशिक ने 60 किग्रा. में सिल्वर, अमित ने 49 किग्रा. वर्ग में सिल्वर और मोहम्मद हुसुमुद्दीन ने 56 किग्रा. वर्ग में ब्रॉन्ज जीता।

आखिरी दिन इस तरह रहा भारतीय खिलाडिय़ों का प्रदर्शन
बैडमिंटन : महिला सिंगल्स में सायना नेहवाल और पीवी सिंधु आमने-सामने थीं। हाई वोल्टेज ड्रामे में साइना ने एक बार फिर अपनी श्रेष्ठता दिखाते हुए गोल्ड पर कब्जा जमाया। रियो ओलंपिक में सिल्वर मैडल विजेता पीवी सिंधु ने हालांकि फाइनल में साइना को कड़ी टक्कर दी लेकिन वह साइना के अनुभव से पार नहीं पा सकीं। साइना इससे कॉमनवैल्थ गेम्स में दो गोल्ड पाने वाली अकेली बैडमिंटन प्लेयर भी बन गई हैं। 56 मिनट तक चले फाइनल में उन्होंने सिंधु को 21-18, 23-21 से हराया।


कुछ दिन पहले ही पुरुष वर्ग में नंबर वन बने भारतीय शटलर किदांबी श्रीकांत पुरुष सिंगल में उलटफेर का शिकार हो गए। श्रीकांत को मलेशिया के दिग्गज ली चोंग वेई ने एक घंटे पांच मिनट चले मैच दौरान 19-21, 21-14, 21-14 से मात देकर गोल्ड पर कब्जा जमाया।

पुरुष डबल्स वर्ग में भी भारतीय जोड़ी सात्विक साईराज रंकीरैड्डी और चिराग शेट्टी फाइनल में पहुंचे थे। लेकिन वह इंग्लैंड की मार्कस एलिस और क्रिस लेंगरिज की जोड़ी को टक्कर नहीं दे पाए और सीधे सेटों में 13-21, 16-21 से हार गए। पूरा मुकाबला 38 मिनट चला जिसमें भारतीय शटलरों को सिल्वर से ही संतोष करना पड़ा।

टेबल टेनिस : अचंत शरत कमल ने पुरुषों की एकल वर्ग स्पर्धा का ब्रॉन्ज अपने नाम किया। शरत का ब्रॉन्ज के लिए इंग्लैंड के सैमुएल वॉकर से मुकाबला हुआ था जो उन्होंने 4-1 (11-7, 11-9, 9-11, 11-6, 12-10) से हराकर जीता।


मिक्सड डबल्स में मनिका बत्रा और साथियान गणाशेखरन ने भी ब्रॉन्ज मैडल अपने नाम किया। मनिका-साथियान की जोड़ी ने हमवतन शरथ-मौमा को एकतरफा मुकाबले में 3-0 (11-6, 11-2,11-4) से हराकर इन खेलों का पहला ब्रॉन्ज भी हासिल किया।

स्कवॉश : महिला डबल में दीपिका पल्लिकल कार्तिक और जोशना चित्नप्पा की जोड़ी को भी फाइनल में हार का सामना करना पड़ा। जोशना-दीपिका का फाइनल में न्यूजीलैंड की जोले किंग और अमांडा लैंडर्स मर्फी से मुकाबला था जो वह महज 21 मिनट तक चले मैच दौरान 11-9, 11-8 से हार गईं। इस तरह दोनों को सिल्वर मैडल से ही संतोष करना पड़ा।