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खेल डैस्क : भारतीय ऑलराऊंडर सुरेश रैना ने अपनी बायोग्राफी में कई चौकाने वाले खुलासे किए हैं। उन्होंने साफ लिखा है कि लखनऊ के स्पोर्ट्स हॉस्टल में उनके साथ हैवानियत की हदें पार की गईं। रैगिंग के नाम पर उन्हें गालियां दी गईं, पीटा गया। कई बार हॉकी स्टिक से भी मारा गया। रैना ने अपने बायोग्राफी में लिखा कि उन दिनों मैं 11-12 साल का था। सीनियर्स ने मेरी ड्यूटी लगाई थी कि मैं रोज उन्हें चाय दूं। इसके लिए रोज सुबह 4.30 बजे उठना पड़ता था। अनेकों बार सीढिय़ां चढऩा-उतरना मुश्किल होता था। 

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सुरेश रैना ने लिखा- सीनियर्स ऐसे बच्चों को खास निशाना बनाते थे जोकि पढ़ाई और खेलकूद में तेज होते थे। वह जूनियर खिलाडिय़ों से अपने निजी काम करवाते। रैगिंग के अलग-अलग हथकंडे अपनाते। कभी उन्हें मुर्गा बना देते तो कभी चेहरे पर गंदा पानी फेंक देते थे। रैना ने लिखा कि मैं सीनियर्स के व्यवहार से बेहद परेशान रहा। सीनियर्स हमारे कमरे में अपने कपड़े फेंक जाते थे। हमारी ड्यूटी होती थी कि इन कपड़ों को धोकर उनतक पहुंचाऊं। एक बार उन्होंने सर्दी के दिनों में सुबह 3.30 बजे मेरे ऊपर ठंडा पानी डाल दिया। कभी वह आधी रात को लॉन की घास काटने को बोल देते थे। 

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रैना ने लिखा- एक बार वह आगरा टूर्नामेंट में हिस्सा लेने जा रहे थे। सीट न मिलने के कारण वह दरवाजे के पास बैठे थे। इस बीच बत्ती बंद हुई तो सीनियर्स ने चप्पन और जूते फेंकने शुरू कर दिए। अंधेरा ज्यादा था तभी मेरे ऊपर एक मोटा लड़का बैठ गया और पेशाब करने लगा। मैं गुस्से में था और मैंने उसे घुसा जड़ दिया। वह ट्रेन से गिरते-गिरते बचा। मैंने पहली बार तब हिंसा का विरोध किया था। इस मामले में हॉस्टल ने जांच भी बिठाई थी। 

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सुरेश ने लिखा- मेरे साथ हैवानियत की हदें पार की गईं। कई सीनियर्स ने मेरी जिदंगी नरक बना दी थी। लेकिन आज वही, लोग मुझसे मिलते हुए खुश होते हैं। वह बातें करते हैं। फिर मैं सोचता हूं कि क्या मुझे उस रैगिंग को भूल जाना चाहिए क्योंकि इन दिनों में इसको लेकर कोई भी गलानी नहीं है। रैना लिखते हैं कि रैगिंग एक बुराई है जिसे खत्म करना जरूरी है। इसके आगे न झुकें। मजबूती से आवाज उठाएं।