गोदी मीडिया युग में प्रेस की आज़ादी पर उठते सवाल

Edited By Yaspal,Updated: 16 Nov, 2018 08:27 PM

हर वर्ष 16 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। वैसे तो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्ब कहा जाता है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका संदेस्पद हो गई है।  आज मोदी सरकार के दबाव के चलते अधिकतर मीडिया संगठन...

नई दिल्लीः (मनीष शर्मा) हर वर्ष 16 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। वैसे तो प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तम्ब कहा जाता है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की भूमिका संदेस्पद हो गई है।  आज मोदी सरकार के दबाव के चलते अधिकतर मीडिया संगठन 'गोदी मीडिया' में परिवर्तित हो चुके है। असूलन मीडिया को सरकार का आलोचक होना चाहिए लेकिन आज मीडिया जो भी रिपोर्ट जनता को दिखा  रहा  है वह खबर कम सरकारी विज्ञापन ज़्यादा लगता है। इस साल फरवरी में अमेरिका स्थित हावर्ड यूनिवर्सिटी में एनडीटीवी  के मशहूर एंकर रवीश कुमार ने मौजूदा समय में भारत में मेनस्ट्रीम मीडिया के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "इस वक्त भारत के लोकतंत्र को भारत के मीडिया से ख़तरा है। भारत का टीवी मीडिया लोकतंत्र के ख़िलाफ़ हो गया है। भारत का प्रिंट मीडिया चुपचाप उस क़त्ल में शामिल है जिसमें बहता हुआ ख़ून तो नहीं दिखता है, मगर इधर-उधर कोने में छापी जा रही कुछ काम की ख़बरों में क़त्ल की आह सुनाई दे जाती है।"

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गोदी मीडिया के चलते आज जनता को न्यूज़ की बजाय पेड न्यूज़ ज़्यादा देखने को मिल रही है। पेड न्यूज़ का इस्तेमाल मीडिया संगठन किसी नेता या राजनीतिक दल के पक्ष में हवा बनाने के लिए करता है । इसके बदले में मीडिया संगठन को भारी भरकम फीस के साथ साथ उस व्यक्ति और दल के एक्सक्लूसिव इंटरव्यूज का सौभाग्य मिल जाता है। चुनावों के दौरान तो देश भर में पेड न्यूज़ का मानो बाज़ार सा लग जाता है।

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चुनावी मौसम में पेड न्यूज़ की बारिश :

  • 2014 लोकसभा चुनाव में 829
  • 2017 पंजाब विधानसभा चुनाव में 80
  • 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव में 238
  • और 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 15 मामले सामने आए
  • लेकिन कहते हैं न ताली एक हाथ से नहीं बजती। इस समय पत्रकार अगर सरकार के साथ नहीं है तो समझ लीजिये सरकार उसके खिलाफ है। सरकार के खिलाफ लिखने और बोलने पर सरकार अपनी तरफ से कदम उठाती ही है साथ ही साथ सोशल मीडिया में उसकी ट्रोल आर्मी पत्रकार को ट्रोल करती है और कभी कभी तो जान से मारने की धमकी भी देती है। प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत का स्तर हर साल गिरता ही जा रहा है। 

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2018 के मुताबिक:

  • 180 देशों में भारत का स्थान 138 था जो
  • 2017 में 136वां था
  • पाकिस्तान का स्थान 139 है।

वहीं कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट 2018 की रिपोर्ट  के अनुसार,

  • दुनिया में सबसे ख़राब 15 देशों में भारत का स्थान14 वां है
  • भारत में पत्रकारों पर हमले से जुड़े 18 मामले पेंडिंग हैं।
  • 2017 में भारत का रैंक 12वां था।
  • 1992 से अब तक भारत में 48 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है।


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इतिहास गवाह है जहां प्रेस निडर और निष्पक्ष नहीं होता वहां नागरिकों की स्वतंत्रता भी सुरक्षित नहीं रहती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है। वे अपने मन की बात तो बताते हैं पर सवालों से परहेज करते हैं। यदि देश का मीडिया देश के प्रधानमंत्री से सवाल नहीं पूछ रहा तो यह देश के लोकतंत्र के लिए वाकई चिंता का विषय है।

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