नजरिया: PM मोदी के खिलाफ होने लगी बाबाओं की घेराबंदी

Edited By Anil dev,Updated: 18 Sep, 2018 12:04 PM

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हिंदुस्तान में जनता की याददाश्त जरा ज्यादा ही कमजोर है। इसलिए आपको याद दिलाना चाहते हैं कि वर्ष 2014 के चुनाव के कुछ नजारे। जब सारे देश में मोदी, मोदी, अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे नारे गुंजायमान थे, उस समय देश के सर्वाधिक फॉलो किए जाने वाले...

नेशनल डेस्क ( संजीव शर्मा): हिंदुस्तान में जनता की याददाश्त जरा ज्यादा ही कमजोर है। इसलिए आपको याद दिलाना चाहते हैं वर्ष 2014 के चुनाव के कुछ नजारे, जब सारे देश में मोदी, मोदी, अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे नारे गुंजायमान थे। उस समय देश के सर्वाधिक फॉलो किए जाने वाले अर्ध-भगवाधारी थे योग गुरु या कॉरपोरेट गुरु बाबा रामदेव। उस दौर में पूरा देश उनके साथ-साथ सुबह सांसें खींचकर और पेट अंदर-बाहर करके ताल मिलाता था। लोगों के स्वास्थ्य को लेकर रामदेव की इसी चिंता ने उन्हें देश के शुभचिंतक की छवि प्रदान कर दी थी और वही रामदेव चुनाव में पूरे जोर से यह कह रहे थे कि उनसे भी बड़ा कोई शुभचिंतक भारत वर्ष का है तो वे मोदी हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव में बिना शक मोदी और बीजेपी के पक्ष में एक हवा बनाई। रामदेव ने ही कहा था कि मोदी आएंगे तो काला धन लाएंगे। बाद मे यह दावा बीजेपी का हो गया। कुछ ने इसे मरोड़कर यूं कर दिया मानो हर किसी के निजी खाते में 15 लाख आने हैं। 

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मुफ्त की शराब काजी को हलाल की तर्ज पर यह सुनते ही सारा देश मोदी का दीवाना हो गया। होता भी क्यों नहीं, आखिर अभी भी सौ करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनकी पूरी जिंदगी की कमाई  या बचत 15 लाख नहीं होती। ये अलग बात है कि बाद में मोदी ने नोटबंदी कराकर लोगों के बैंक खाते तक होल्ड करवा डाले। काला धन तो दूर, लोगों को अपना हक हलाल का धन वसूलना तक मुश्किल हो रहा था और एक बार में हफ्ते भर के आटे-चावल के पैसे ही मिल रहे थे। उन्हीं बाबा रामदेव ने कुछ अन्य बाबाओं को भी ग्रुप में लिया और बीजेपी सत्तासीन हो गई। बीजेपी के सत्ता में आने के रामदेव ने पांच-सात ऐसी प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की, जिन्हें सुनने से लगता था कि साक्षात प्रधानमंत्री बोल रहा हो। और वहीं गड़बड़ हो गई। मोदी ने काम निकल जाने के बाद बाबा को पार्किंग में लगाना शुरू कर दिया। 

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रामदेव को भी एहसास हो गया कि सत्ता और सियासत की तासीर अलग रहती है। जरूरी नहीं कि जो आपके आगे-पीछे घूमता हो, सत्ता मिलने पर वो आपकी हर बात माने। इसलिए रामदेव ने पूरा ध्यान बिजनेस पर केंद्रित कर लिया। अपनी मर्जी की ज़मीनें और प्रोजेक्ट हासिल किए और पतंजलि रातोंरात देश की नामी कंपनियों की टक्कर में खड़ी हो गई। अब बारी बाबा की थी। उन्होंने मोदी से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी, ताकि कल को मोदी के सत्ताच्युत होने की स्थिति में उनकी कंपनी पर कोई आंच न आए। और अब जब चुनाव सिर पर हैं, मोदी के खिलाफ विरोध के स्वर ऊपर जा रहे हैं, तब बाबा रामदेव ने अपना आखिरी आसन शुरू कर दिया है। रामदेव ने साफ कहा है कि वे सरकार के काम-काज से खुश नहीं हैं और इस बार लोकसभा में बीजेपी या मोदी के लिए प्रचार नहीं करेंगे। यानी एक ही झटके में रामदेव ने खुद को बीजेपी से अलग कर बचा लिया। 

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हो सकता है, इसमें कांग्रेस के साथ कोई डील भी हो, क्योंकि जब आप बिजनेस में होते हैं तो आपको सभी जगह साथी रखने पड़ते हैं, ताकि सत्ता में कोई भी आए, बिजनेस पर फर्क न पड़े। इस लिहाज से बाबा रामदेव साफ निकल लिए हैं। यही नहीं, उन्होंने देश में 40 रुपए में पेट्र्रोल बेचने का सशर्त दावा भी कर दिया है। उधर, एक और बाबा उभरे हैं। कन्हैया के नाम जिंदगानी कर चुके प्रमुख कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर ने सवर्णों के हितों को लेकर और आरक्षण के विरोध में झंडा बुलंद कर डाला है। यह तमाम कवायद भी केंद्र सरकार के लिए ही समस्या बढ़ाने वाली है। एक तरफ, बीजेपी दलित और अब तो मुस्लिम वोटों को साधने में लगी है और दूसरी तरफ उसका अपना परम्परागत हिन्दू वोट बैंक इस तरह से खिसकने को है। बीजेपी निश्चित ही दोधारी तलवार पर है। अभी दो बाबाओं के तेवर सामने आए हैं। कुछ और बाबा लाइन में हैं। कुछ ऐसे बाबा जो गड़बड़झाले के चलते अंदर हैं और बाहर आने का रास्ता खोज रहे हैं, उनके  समर्थक भी कहीं लामबंद होंगे ही आगे चलकर। ऐसे में, बाबाओं की बाड़बंदी बीजेपी के लिए सिरदर्द बन सकती है।  

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