राफेल डील मामले में बड़ा खुलासा- अन‍िल अंबानी से पहले मुकेश अंबानी चाहते थे हिस्सेदारी

Edited By vasudha,Updated: 13 Sep, 2018 06:19 PM

mukesh ambani also wanted the share in rafale deal

राफेल डील के विवाद पर कांग्रेस और मोदी सरकार आमने-सामने है। भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई इस डील को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है। वहीं, इस डील को लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है...

नेशनल डेस्क: राफेल डील के विवाद पर कांग्रेस और मोदी सरकार आमने-सामने है। भारत और फ्रांस सरकार के बीच हुई इस डील को मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस मोदी सरकार पर हमलावर है। वहीं, इस डील को लेकर बड़ा खुलासा सामने आया है। सूत्रों के अनुसार, शुरुआती दौर में फ्रेंच कंपनी डसॉल्‍ट ने मुकेश अंबानी के स्‍वामित्‍व वाली रिलायंस इंडस्‍ट्रीज लिमिटेड (RIL) की एक सब्सिडियरी कंपनी के साथ गठजोड़ करने का फैसला किया था, लेकिन RIL के 2014 के बाद डिफेंस और ऐरोस्पेस बिजनेस से हटने के कारण यह योजना रद्द हो गई। 
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रिपोर्ट के अनुसार, शुरुआती करार में लड़ाकू विमान खरीद करार में ऑफसेट स्‍कीम का प्रावधान किया गया था, जिसके तहत फ्रेंच कंपनी डसॉल्‍ट को भारत में 1 लाख करोड़ रुपए का निवेश करना था। ऑफसेट रकम का निर्धारण डील के कुल मूल्‍य के आधार पर किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, इस डील में ऑफसेट्स इंडिया सॉल्‍यूशन्स ने भी दिलचस्‍पी दिखाई थी। कंपनी ने अरबों रुपए के करार में शामिल होने के लिए डसॉल्‍ट पर कथित तौर पर दबाव भी डलवाया था, लेकिन बात नहीं बन सकी थी। इस कंपनी के प्रमोटर संजय भंडारी के तार कथित तौर पर राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े थे। जांच एजेंसियों द्वारा शिकंजा कसने पर भंडारी फरवरी 2017 में लंदन भाग गया था, जिसके बाद ऑफसेट्स सॉल्‍यूशन्स बंद हो गई। 
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फाइटर विमान का ठेका हासिल करने वाली राफेल को निजी क्षेत्र से पार्टनर चुनने की छूट दी गई थी। फ्रेंच कंपनी ने शुरुआत में टाटा ग्रुप से पार्टनरशिप को लेकर बातचीत की थी। दो लाख करोड़ रुपए मूल्‍य के इस डील में अमेरिका की बोइंग और लॉकहीड मार्टिन जैसी कंपनियां भी शामिल थीं। टाटा ग्रुप के अमरीकी कंपनी के साथ जाने पर डसॉल्‍ट ने पार्टनरशिप को लेकर RIL के साथ बातचीत शुरू की थी। 
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राफेल और यूरोफाइटर को वायु सेना की ओर से से शॉर्टलिस्ट किए जाने के कुछ सप्ताह बाद मई 2011 में RATL ने पार्टनरशिप की तैयारी के मद्देनजर सीनियर एग्जीक्यूटिव्स की हायरिंग भी शुरू कर दी थी। जनवरी 2012 में दसॉ इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए सबसे कम बिड करने वाली कंपनी के तौर पर सामने आई थी और उसने डिफेंस मिनिस्ट्री के साथ प्राइस को लेकर मोल-भाव शुरू किया था। इसमें ऑफसेट प्लान और HAL के साथ कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें शामिल थी। 2014 में दूसरी सरकार आने के बाद मुकेश अंबानी की कंपनी ऐरोस्पेस सेक्टर में अपने हाथ आजमाने से पीछे हट गई। इसके बाद ऑफसेट्स सॉल्‍यूशन्स ने एक बार फिर से दसॉ से संपर्क साधा था, लेकिन प्रमोटर का तार रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े होने के कारण बात नहीं बन सकी थी।

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