राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता पर BJP ने दिया धोखा?

Edited By vasudha,Updated: 17 Nov, 2018 07:23 PM

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार देने वाला अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता, ये तीन ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जिनकी मदद से बीजेपी ने लोकसभा में 2 सीट से 282 सीटों तक का सफर तय किया...

नेशनल डेस्क (मनीष शर्मा): अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण, जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार देने वाला अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता, ये तीन ऐसे प्रमुख मुद्दे हैं, जिनकी मदद से बीजेपी ने लोकसभा में 2 सीट से 282 सीटों तक का सफर तय किया। इन्हीं तीन मुद्दों के कारण बीजेपी का हिंदू वोट बैंक संगठित हुआ। देश के अधिकतर हिंदू अभी भी मानते हैं कि सिर्फ बीजेपी ही इन मुद्दों का समाधान कर सकती है, लेकिन वह यह नहीं जानते कि बीजेपी ने 20 साल पहले ही इन मुद्दों से किनारा कर लिया था। 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने गठबंधन की राजनीति के चलते स्पष्ट कर दिया था कि वह लोकसभा चुनावों में उन्हीं मुद्दों को शामिल करेगी, जिन पर आम सहमति होगी। अनुच्छेद 370, समान नागरिक संहिता और राम मंदिर पर आम सहमति कभी भी नहीं बन पाई। बीजेपी के इसी रवैये के चलते आज ये मुद्दे सुलझने की बजाय और ज़्यादा उलझ गए हैं।
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पहला : राम मंदिर का निर्माण
AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से लेकर बीजेपी के पैतृक संगठन आरएसएस तक, सभी बीजेपी को राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने का अल्टीमेटम दे चुके हैं, लेकिन किसी समय हर हाल में मंदिर बनाने की बात करने वाली भारतीय जनता पार्टी अब कानून के दायरे में मंदिर निर्माण की संभावनाएं तलाश रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार कहा है कि जो सुप्रीम कोर्ट फैसला देगी, उनकी सरकार वही मानेगी। अध्यादेश लाने के लिए उन्होंने कभी ज़रा-सी रुचि नहीं दिखाई है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने साफ बता दिया है कि अयोध्या का मुद्दा उसके लिए प्राथमिकता वाला नहीं है। जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि अगली सुनवाई कब होगी। क्या प्रधानमंत्री मोदी यह गारंटी देंगे कि सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आएगा, उस पर सभी पक्ष सहमत होंगे? क्या मोदी यह नहीं जानते कि भारतीय न्याय प्रणाली ऐसी है, जिसमें केस कई दशकों तक चलते हैं ? लोकतंत्र में सरकार जवाबदेह होती है, न कि सुप्रीम कोर्ट। 

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दूसरा: अनुछेद 370
अनुच्छेद 370 पर ताजा स्थिति क्या है, उसे बाद में बताएंगे। पहले यह बता देते हैं कि अनुच्छेद 370 के चलते जम्मू-कश्मीर राज्य को जो विशेष अधिकार मिलता है, वह भारत की एकता और अखंडता के लिए कितना खतरनाक है?


अनुछेद 370 से मिलने वाले विशेषाधिकार

  • जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है।
  • जम्मू-कश्मीर के पास अपना संविधान है।
  • जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है।
  • जम्मू-कश्मीर के अंदर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं माना जाता।
  • भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
  • जम्मू-कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की वहां की नागरिकता समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत यदि वह पाकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस पाकिस्तानी को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है।
  • कश्मीर में आरटीआई (RTI) और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते हैं।
  • कश्मीर में अल्पसंख्यकों [हिंदू-सिख] को 16% आरक्षण नहीं मिलता।
  • कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते हैं।


क्या है अनुच्छेद 370 की ताज़ा स्थिति 
बीजेपी सरकार  के ढुलमुल रवैये के चलते अनुच्छेद 370 को हटाना अब नामुमकिन हो गया है। 3 अप्रैल, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 भारत में स्थाई मतलब परमानेंट हो गया है।

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तीसरा: समान नागरिक संहिता
शुरुआती दिनों में समान नागरिक संहिता बीजेपी का मुख्य एजेंडा होता था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह मुद्दा पीछे खिसकता गया। 13 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार से पूछा था कि वह देश में समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है कि नहीं या उसे कोर्ट लागू करे? 1 जुलाई, 2016 को केंद्र सरकार ने लॉ कमीशन से पूछा कि क्या भारत में समान नागरिक संहिता को लागू किया जा सकता है? इस पर 31 अगस्त, 2018 को लॉ कमीशन ने सरकार को बताया कि देश में न तो समान नागरिक संहिता आवश्यक है और न ही इसकी कोई ज़रूरत है।

इन तीनों मुद्दों में एक समानता है कि सुप्रीम कोर्ट का दखल इन तीनों पर बना हुआ है, लेकिन जब SC/ST ACT के समय मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करने के लिए संसद में कानून पास करा सकती है तो राम मंदिर, अनुछेद 370 और समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट की मोहताज क्यों है? 

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