Edited By pooja,Updated: 04 Jul, 2018 02:20 PM
दिल्ली उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक खंड के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन नहीं करने के न्यायिक आदेश का जानबूझकर पालन नहीं करने पर जेएनयू
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक खंड के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन नहीं करने के न्यायिक आदेश का जानबूझकर पालन नहीं करने पर जेएनयू छात्र संघ के पदाधिकारियों को जुर्माना लगाया।
न्यायमूर्ति वीके राव ने कहा कि छात्रों ने अपने आचरण को तर्कसंगत ठहराने का प्रयास किया और अदालत के 9 अगस्त 2017 के आदेश की अवज्ञा करने के लिए कोई अफसोस या पछतावा प्रकट नहीं किया। अदालत ने कहा कि जिस तरीके से छात्रों ने उसके आदेश की व्याख्या की यह उनके अवमानना कृत्य को दिखाता है। न्यायाधीश ने कहा, यह गलती से, भूलवश या किसी गलतफहमी की वजह से आदेश की अवज्ञा का मामला नहीं है। इसलिए, मेरा कहना है कि प्रतिवादी (छात्र संघ के सदस्य) पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रहे हैं। वे शिक्षित हैं, निश्चित तौर पर वे 9 अगस्त 2017 को इस अदालत द्वारा जारी आदेश को जानते होंगे जो कि बिल्कुल साफ और स्पष्ट है।
अदालत ने प्रत्येक छात्र नेताओं पर दो-दो हजार रुपए का जुर्माना लगाया। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की ओर से दायर की गयी अवमानना याचिका पर अदालत ने यह आदेश दिया। अवमानना याचिका में प्रशासनिक खंड तक पहुंच बाधित नहीं करने के उच्च न्यायालय के 9 अगस्त 2017 के आदेश के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था। अदालत ने जेएनयू की याचिका का निपटारा करते हुए निर्देश दिया कि दो हफ्ते में उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के पास जुर्माने की रकम जमा करायी जाए। केंद्र सरकार की स्थायी वकील मोनिका अरोड़ा के जरिए दायर याचिका में विश्वविद्यालय ने दावा किया था कि छात्र संघ के पदाधिकारियों ने इस साल 15 फरवरी को आवश्यक उपस्थिति नियमों के खिलाफ प्रदर्शन कर उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया। विश्वविद्यालय ने आरोप लगाया कि छात्रों ने कैंपस में ‘‘खौफ का माहौल’’ बना दिया और उपस्थिति अनिवार्य करने के मुद्दे के खिलाफ जन हस्ताक्षर अभियान चलाया। जेएनयू छात्र संघ के पदाधिकारियों ने आरोपों से इंकार किया है।