Kundli Tv- कुछ अलग अंदाज़ में होती है दुनिया के हर कोने में सूर्य पूजा

Edited By Jyoti,Updated: 14 Nov, 2018 12:20 PM

surya puja all over world

हिंदू धर्म में सूर्य पूजा का कितना महत्व है, इस बारे में तो लगभग सभी जानते हैं। मगर बहुत कम लोग जानते होंगे कि विश्व के लगभग हर कोने में सूर्य भगवान की पूजा होती है।

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हिंदू धर्म में सूर्य पूजा का कितना महत्व है, इस बारे में तो लगभग सभी जानते हैं। मगर बहुत कम लोग जानते होंगे कि विश्व के लगभग हर कोने में सूर्य भगवान की पूजा होती है। इतिहास की मानें तो विश्व का कोई एेसा कोना नहीं है जहां आदित्य देव यानि सूर्य देव की पूजा न होती हो। एेसा कहा जाता है कि पहले समय में मित्तनी, हित्ती, मिस्र के राजाओं के लिए सूर्य पूजा का सामान्य स्रोत भारत ही था। आपको बता दें कि ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य के बारे में जो कुछ दर्ज है, दूसरी सभ्यताओं में भी कुछ वैसा ही है। अंतर है तो बस नाम का। सूर्य के लिए लैटिन में ‘सो‘, ग्रीस में ‘हेलियोस’, मिस्र में ‘रा’ व ‘होरुस’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहां जानें दुनिया के देशों में सूर्य उपासना के तरीके-
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भारत
भारत में सूर्य की पूजा-अर्चना ऋग्वैदिक युग से ही होती रही है, जिनका ऋग्वैदिक नाम ‘सविता’ भी है। ऋग्वैदिक काल में वे जगत के चराचर जीवों की आत्मा हैं। वे सात घोड़े के रथ पर सवार रहते हैं और जगत को प्रकाशित करते हैं। इन्हें प्रकृति के सर्वश्रेष्ठ रूप में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार कालांतर में उनकी पूजा प्रारंभ हुई और कुषाण काल में इनकी प्रतिमाएं भी बननी शुरू हो गईं। कहा जाता है कि एक ऐसी प्रतिमा मथुरा के संग्रहालय में है, जिसकी बनावट और साज-सज्जा पूर्णत: मध्य-एशियाई है। कालिदास ने ‘रघुवंशम’ में सूर्य की उपस्थापन का वर्णन किया है। उन्होंने सूर्य के सात अश्वों यानि उनकी सवारी 7 घोड़ों का भी उल्लेख किया गया है। इतिहास के अनुसार गुप्त सम्राट कुमार गुप्त के शासनकाल में रेशम बुनकरों के संघ ने मंदसौर के निकट दशपुर में एक सूर्य मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। फिर इसके बाद युग की अनेकों सूर्य प्रतिमाएं मिली, जो मथुरा संग्रहालय में हैं। ऐतिहासिक रूप में सूर्य उपासक समुदाय के अनुयायी मस्तक पर लाल चंदन की सूर्य आकृति बनाते हैं और लाल पुष्पों की माला पहनते हैं।
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अमेरिका
अमेरिका में सूर्य को ताेनातिहू यानि वह जिसकी काया से प्रकाश बिखर रहा है और जो सभी आजटेक लोगों (मध्य अमेरीकी देशों के मूल वाशिंदे) का रखवाला है, वो मध्य अमेरिका के लोगों के सूर्य हैं। वो फसलों को खुशहाली देते हैं और इंसानों को जीवन। अमेरीकी गाथाओं में वर्णन है कि दुनिया में कई युगों तक अंधकार छाया था, इसपर जीवन संभव नहीं था और सूर्य स्वर्ग में निवास कर रहे थे, तब आजटेक लोगों ने अपने प्राणों की बलि देकर सूर्यदेव को प्रसन्न किया, उसके बाद सूर्य ब्रह्मांड में अवतरित हुए। स्थानीय मान्यता के अनुसार यह सूर्य का पांचवां रूप है और इससे पूर्व चार युगों में चार सूर्य आए और खत्म हुए। इस तरह धरती का भी संहार हो गया। वैज्ञानिक रूप से यह समुदाय सूर्य अथवा तारों की उत्पत्ति और विनाश की बात करता है।
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यूनान
कहा जाता है कि इस धर्म में सूर्य पूजा का अत्यधिक महत्व है। प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “रिपब्लिक’ में सूर्य पूजा की महिमा का वर्णन किया है। सूर्यदेव को यहां सांकेतिक रूप में हेलियोस के नाम से जाना जाता है। वह टाइटन हाइपेरियोन और हूसियोड के पुत्र हैं। वो घोड़े के द्वारा खींचे जा रहे रथ पर सवार होकर लोगों को उन्नति प्रदान करने निकलते हैं। हेलियोस के घोड़े आग के समान ज्वाला लेकर आगे बढ़ रहे हैं जो डर का कारण हैं। राेमन गाथाओं में हेलियोस के समतुल्य भगवान सोल हैं। ये भी सूर्य के ही सूचक हैं। यूनानी मान्यताओं में कहा गया कि एक बार हेलियोस का रथ उनका बेटा फेथॉन लेकर निकल पड़ा तो उसने अपना संतुलन खो दिया और पूरी धरती पर आग लग गई, तब अंतरिक्ष के देवता जियोस ने तत्काल वज्रपात कर फेथॉन को मारा और धरती पर जीवन को नष्ट हाेने से बचा लिया।
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जापान
जापान के बार में कहा जाता है कि स्वर्ग से चमक बिखेर रही अमतेरासू-ओमिकानी, जापानी गाथाओं में सूर्य माता हैं। वो संपूर्ण ब्रह्मांड की भी देवी हैं। जापान के होनशू द्वीप पर इनके मंदिर हैं। भारत में लगने वाले महाकुंभ की तरह इनकी अाराधना में भी प्रत्येक 20 सालों पर सिखिन सेंगू जैसे मेले लगते हैं और पूजा की जाती है जिसमें पूर्व मंदिर स्थल से सटे ही एक अन्य मंदिर का निर्माण किया जाता है। इस तरह इन मंदिरों में अमतेरासू (सूर्य) के अन्य रूप जिंगू, इस्ले-जिंगू आदि की स्थापना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं में जापान के सम्राट को सूर्य का वाहक माना जाता है और प्रजा की उनमें अपार श्रद्धा है।
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ईरान
ई.पू. 200-300 के बीच ईरानी लोगों के सूर्यदेव ‘मित्र’ के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। ये वहीं ‘मित्र’ हैं जिनकी जानकारी रोमन धर्मशास्त्राें में इसी के समकालीन सूर्य के एक सहयोगी देवता के रूप में मिलती है। मित्रदेव की छाया वहां के सम्राट पर भी पड़ती थी इसलिए उन्हें भी पवित्र माना जाने लगा। भारतीय गाथाओं और वैदिक साहित्य में ‘मित्र’ को सूर्य के सहयोगी देवता के रूप में मान्यता प्राप्त है। ग्रीक और रोमन लोग भी मित्रदेव को सूर्य का ही प्रतीक मानते हैं। एेसा माना जाता है कि ‘मित्र’ की उत्पत्ति ब्रह्मांड में स्वयं ही एक गुफा के भीतर 25 दिसंबर को हुई और उनपर किसी का वश नहीं चलता।
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मिस्र
यहां उगते सूर्य होरूस, दोपहर के सूर्य रा, जो सबसे महत्वपूर्ण हैं। अस्त होते सूर्य के रूप में वह ओसिरिस कहलाते हैंं। हालांकि मिस्री फराओ अमेनहोटेप चतुर्थ ने इन सभी सूर्य को खत्म कर नए सूर्य अटेन की पूजा करने को लोगों से कहा। हालांकि उसकी मृत्यु के बाद उसके दामाद तुतनखाटेन ने पुरानी परंपरा का अनुसरण करते हुए सूर्य रा की पूजा को प्राथमिकता दी। कुछ समय बाद होरूस सूर्य का रा सूर्य के साथ मिलन हो गया। हालांकि बाद में यहां एक अन्य सूर्य आमुन का भी प्रादुर्भाव हुआ लेकिन इनका भी एकात्म रा सूर्य में हो गया। मिस्र के लोगों के अनुसार दुनिया पर रा का ही राज है और यह बाज का सिर लिए पूरी दुनिया की चौकसी और इंसान का असुरों से संरक्षण कर रहे हैं।
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रोम
यूनानी गाथाओं में अपोलो को ईश्वर के समान तो दर्जा दिया गया लेकिन सूर्य के रथ के साथ वो दृष्टिगोचर नहीं हुए। दूसरी ओर रोमन लोगों ने अपालो की तुलना सूर्य से की और उनकी पूजा सूर्य रूप में ही की जाने लगी। यहां वो अश्वों के द्वारा खींचे जाने वाले गाड़ी में दिखे। इन्हें अन्य नाम “सोल’ से भी जाना जाने लगा। अपोलो जीयूस और लोटो के पुत्र थे। तीसरी सदी ई.पू. के आसपास सूर्य रूप अपोलो का तादात्म्य यूनान के हेलियोस से किया जाने लगा। रोमन साम्राज्य के आधिकारिक देवता सूर्य सोल ही थे। रोमन संस्कृतियों में सूर्य की माता रूप में फ्रायर, नोर्स आिद देवियों का जिक्र आता है। नोर्स को प्रजनन की देवी के रूप में पूजा जाता है। 
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