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रावण का नाम सुनते ही हम सबके मन में क्रोध उत्पन्न हो जाता है। इसका कारण उसका श्री राम चंद्र की पत्नी देवी सीता का अपहरण करना। कहने का भाव है कि रावण को सब क्रोध भरी नज़र से ही देखते हैं। परंतु आपको बता दें कि ऐसा नहीं रावण कोई आम राक्षस या दानव नहीं था। बल्कि रावण का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। जिसे हिंदू धर्म का सबसे उच्च कुल माना जाता है। तो चलिए आज रावण के जन्म से जुड़ी उन बातों से अवगत करवाते हैं जिनके बारे में आप शायद नहीं होंगे।
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बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण का जन्म एक श्राप के चलते हुआ था। जी हां, रावण अपने पूर्व जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल था। एक श्राप के कारण इन्हें पूरे तीन जन्मों तक राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ा। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि आख़िर ऐसी क्या बात हुई कि इसे तीन जन्मों तक राक्षस बनने का श्राप मिला और ये श्राप इसे मिला कैसे।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनक, सानंदन, सनातन और सनतकुमार भगवान विष्णु के दर्शन को बैकुंठ धाम पहुंचे। मगर उनके भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने उन्हें प्रवेश करने से मना कर दिया। इस पर ऋषि गण उन पर क्रोधित हो गए और उन दोनों को शाप दे दिया कि तुम राक्षस हो जाओ। जिसके बाद जय-विजय ने प्रार्थना की और अपने अपराध की क्षमा मांगी, फिर भी ऋषि-मुनियों का क्रोध शांत नहीं हुआ। आख़िर में जब भगवान विष्णु ने उन्हें क्षमा करने को कहा तब ऋषियों ने अपने श्राप की तीव्रता को कम करते हुए कहा कि तीन जन्मों तक तुम्हें राक्षस कुल में जन्म लेना पड़ेगा।
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इसके अलावा एक और शर्त रखी कि उन दोनों को भगवान विष्णु या उनके ही किसी अवतारी स्वरूप के हाथों मारना होगा। यह श्राप राक्षस राज रावण के जन्म की आदि गाथा है। शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु के द्वारपाल पहले जन्म में हिरण्यकश्यप राक्षस के रूप में जन्में हिरण्याक्ष राक्षस बहुत शक्तिशाली था, उसने अपनी शक्ति के बल से पृथ्वी को उठाकर पाताल लोक में पहुंचा दिया था। जिसके बाद पृथ्वी को बचाने के लिए श्री हरि विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उस राक्षस का वध कर पृथ्वी को उससे मुक्ति दिलवाई थी।

कहते हैं भगवान विष्णु हाथों अपने भाई हिरण्याक्ष का वध होने के कारण हिरण्यकश्यप विष्णु विरोधी बन गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

इसके बज त्रेता युग में दोनों भाई रावण और कुंभकरण के रूप में पैदा हुए और विष्णु अवतार श्रीराम के हाथों मारे गए।

तीसरे जन्म में द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया तब दोनों शिशुपाल और आनंदवक्त्र नाम के असुरों के रूप में पैदा हुए। इनका वध श्री कृष्ण के हाथों हुआ था।
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